प्रसंग:
हाल ही में टाइप 5 डायबिटीज़ को इंटरनेशनल डायबिटीज़ फेडरेशन (IDF) द्वारा आधिकारिक रूप से मान्यता दी गई है। यह डायबिटीज़ का एक अलग प्रकार है, जो खासकर कम वजन और कुपोषण से पीड़ित किशोरों और युवाओं में, खासकर निम्न और मध्यम आय वाले देशों (LMICs) में पाया जाता है। यह मान्यता वैश्विक स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि यह स्थिति लंबे समय से नजरअंदाज की जाती रही है और अक्सर सही पहचान नहीं हो पाती थी।
टाइप 5 डायबिटीज़ को समझना:
- सबसे पहले यह स्थिति 1955 में जमैका में “J-type diabetes” के रूप में सामने आई थी। 1985 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इसे कुपोषण संबंधी मधुमेह (Malnutrition-related diabetes mellitus) के रूप में वर्गीकृत किया था। लेकिन सबूतों की कमी के कारण 1999 में इसे हटा दिया गया। यह बीमारी भारत, श्रीलंका, बांग्लादेश, युगांडा, इथियोपिया, रवांडा और कोरिया जैसे देशों में देखी गई है। माना जाता है कि दुनियाभर में करीब 2.5 करोड़ लोग इससे प्रभावित हो सकते हैं।
- टाइप 5 डायबिटीज़ में शरीर में इंसुलिन का उत्पादन बहुत कम होता है, जो लंबे समय तक कुपोषण के कारण होता है, खासकर तब, जब व्यक्ति का शरीर विकास के महत्वपूर्ण चरणों से गुजर रहा होता है। यह टाइप 1 (जो ऑटोइम्यून होती है) और टाइप 2 (जो इंसुलिन रेजिस्टेंस के कारण होती है) से अलग है। इसमें अग्न्याशय (पैंक्रियास) की बीटा कोशिकाएं (beta cells) कुपोषण के कारण सही तरीके से काम नहीं कर पातीं।
लक्षण:
टाइप 5 डायबिटीज़ आमतौर पर उन लोगों में पाई जाती है जिनमें ये विशेषताएं होती हैं:
- बॉडी मास इंडेक्स (BMI) 18.5 किलोग्राम/मी² से कम।
- इंसुलिन का स्तर टाइप 2 से भी कम, लेकिन टाइप 1 से थोड़ा अधिक।
- शरीर में कोई ऑटोइम्यून या अनुवांशिक (genetic) संकेत नहीं होते।
- लिवर से ग्लूकोज़ का उत्पादन भी कम होता है।
- भोजन में प्रोटीन, फाइबर और जरूरी सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी।
- शरीर में फैट की मात्रा टाइप 2 डायबिटीज़ वाले व्यक्ति की तुलना में काफी कम होती है।
ये लक्षण टाइप 5 डायबिटीज़ को बाकी प्रकारों से अलग करते हैं और ये खासकर गरीब देशों की कुपोषित आबादी में ज्यादा देखे जाते हैं।
शारीरिक विकास से संबंध
इस बीमारी की शुरुआत गर्भ में ही हो सकती है। अगर गर्भवती मां को पर्याप्त पोषण नहीं मिलता है, तो भ्रूण का विकास प्रभावित होता है, खासकर अग्न्याशय का विकास, जिससे आगे चलकर इंसुलिन की कमी हो सकती है। अगर जन्म के बाद भी पोषण की कमी बनी रहती है, तो इस बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। वहीं, कुछ बच्चे जो जन्म के समय कुपोषित होते हैं लेकिन बाद में अत्यधिक वजन बढ़ाते हैं, उनमें टाइप 2 डायबिटीज़ होने की संभावना ज्यादा होती है।
इलाज और प्रबंधन
टाइप 5 डायबिटीज़ का इलाज मुख्य रूप से पोषण सुधार पर केंद्रित होता है। इसमें प्रोटीन युक्त भोजन बहुत जरूरी होता है, साथ ही कार्बोहाइड्रेट और वसा का संतुलित सेवन भी जरूरी है ताकि वजन बढ़ सके। खासतौर पर उन लोगों के लिए जिनका BMI कम है और जो शारीरिक रूप से अधिक सक्रिय हैं। ब्लड शुगर के स्तर और उपचार के असर के अनुसार मरीजों को इंसुलिन या अन्य दवाएं दी जाती हैं।
निष्कर्ष-
टाइप 5 डायबिटीज़ को औपचारिक पहचान मिलना वैश्विक स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि है। यह दर्शाता है कि लंबे समय तक कुपोषण भी गंभीर मेटाबॉलिक बीमारियों का कारण बन सकता है, खासकर गरीब देशों में। इससे निपटने के लिए मातृ और शिशु पोषण को मजबूत बनाना, जागरूकता फैलाना और स्वास्थ्य सेवाओं को सक्षम बनाना बहुत जरूरी है।