संदर्भ:
हाल ही में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिब्यूनल सुधार अधिनियम, 2021 के प्रमुख प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा की ये प्रावधान ट्रिब्यूनलों की स्वतंत्रता, उनकी निष्पक्षता और उनके संचालन से जुड़े संवैधानिक मानकों का उल्लंघन करते हैं।
विवाद की पृष्ठभूमि:
• यह विवाद वर्ष 2017 में शुरू हुआ जब वित्त अधिनियम (Finance Act) के माध्यम से केंद्र सरकार को ट्रिब्यूनलों से जुड़े नियम बनाने का अधिकार दिया गया। परंतु सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में इन नियमों को रद्द कर दिया, यह कहते हुए कि ये न्यायिक स्वतंत्रता को कमजोर करते हैं।
• इसके बावजूद, केंद्र सरकार ने अप्रैल 2021 में एक अध्यादेश जारी किया, जिसमें ट्रिब्यूनल सदस्यों का कार्यकाल 4 वर्ष तय किया गया और न्यूनतम आयु सीमा 50 वर्ष निर्धारित की गई।
मुख्य न्यायिक निष्कर्ष:
1. कार्यपालिका का अत्यधिक नियंत्रण न्यायिक स्वतंत्रता के खिलाफ:
• सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यह अधिनियम:
o ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति पर सरकार को अत्यधिक अधिकार देता है,
o वेतन और सेवा-शर्तें तय करने में सरकार को मनमानी शक्ति प्रदान करता है,
o सदस्यों के कार्यकाल में बिना किसी उचित कारण के कटौती की अनुमति देता है।
• कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसे प्रावधान ट्रिब्यूनलों की स्वतंत्रता, निष्पक्षता और उनके संवैधानिक स्वरूप को सीधे प्रभावित करते हैं।
2. विधायी अवहेलना अस्वीकार्य
• सरकार ने तर्क दिया कि संसद सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के बावजूद नए कानून बना सकती है।
o लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा “संसद किसी अमान्य घोषित प्रावधान को तभी दोबारा लागू कर सकती है जब वह कोर्ट द्वारा पहचानी गई संवैधानिक कमी को दूर करे”।
• इस मामले में, सरकार ने उसी प्रकार के प्रावधान दोबारा शामिल कर दिए, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट पहले ही असंवैधानिक घोषित कर चुका था, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने इसे “विधायी अधिरोहण” (legislative override) माना, जो न्यायिक समीक्षा और इस प्रकार संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन है।
राष्ट्रीय न्यायाधिकरण आयोग (एनटीसी) की स्थापना:
• कोर्ट ने कहा कि लंबे समय से ट्रिब्यूनल्स को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा है, जैसे—
o असंगत और अस्पष्ट नियुक्ति प्रक्रियाएँ
o प्रशासनिक स्वतंत्रता की कमी
o सेवा-शर्तों में असमानता
• इन कमियों को दूर करने के लिए कोर्ट ने केंद्र सरकार को चार महीने के भीतर राष्ट्रीय न्यायाधिकरण आयोग (NTC) की स्थापना का निर्देश दिया और इसे एक आवश्यक और दीर्घकालिक संरचनात्मक सुधार बताया।
NTC की भूमिका:
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- नियुक्ति प्रक्रिया की निगरानी
- चयन प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना
- पूरे देश में सभी ट्रिब्यूनलों की सेवा-शर्तों में समानता बनाए रखना
- ट्रिब्यूनलों का केंद्रीय प्रशासनिक निकाय बनना
- नियुक्ति प्रक्रिया की निगरानी
ट्रिब्यूनल्स के बारे में:
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- ट्रिब्यूनल्स अर्द्ध-न्यायिक संस्थाएँ होती हैं, जिन्हें विशेष प्रकार के विवादों के निपटारे के लिए पारंपरिक न्यायालयों के मुकाबले तेज, विशेषज्ञतापूर्ण और कम खर्चीला विकल्प प्रदान करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया है।
- इनकी शुरुआत भारत में 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से की गई थी, जिसके तहत संविधान में अनुच्छेद 323A और 323B जोड़े गए।
- ट्रिब्यूनल्स अर्द्ध-न्यायिक संस्थाएँ होती हैं, जिन्हें विशेष प्रकार के विवादों के निपटारे के लिए पारंपरिक न्यायालयों के मुकाबले तेज, विशेषज्ञतापूर्ण और कम खर्चीला विकल्प प्रदान करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया है।
मुख्य विशेषताएँ:
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- उद्देश्य: न्यायालयों पर बढ़ते बोझ को कम करना और विशेष विषयों में त्वरित एवं विशेषज्ञ न्याय सुनिश्चित करना।
- स्वरूप: ट्रिब्यूनल्स के पास न्यायिक शक्तियाँ होती हैं, लेकिन ये पूर्ण न्यायालय नहीं माने जाते। इनके सदस्यों में प्रायः न्यायिक अधिकारी और तकनीकी विशेषज्ञ दोनों शामिल होते हैं।
- विशेषता: हर ट्रिब्यूनल किसी विशेष क्षेत्र से संबंधित विवादों को सुनता है — जैसे प्रशासनिक मामले, कर (Taxation), या पर्यावरण संबंधी विवाद।
- संवैधानिक आधार:
- उद्देश्य: न्यायालयों पर बढ़ते बोझ को कम करना और विशेष विषयों में त्वरित एवं विशेषज्ञ न्याय सुनिश्चित करना।
o अनुच्छेद 323A – प्रशासनिक ट्रिब्यूनल्स (जैसे सरकारी सेवाओं से जुड़े मामलों के लिए)
o अनुच्छेद 323B – अन्य ट्रिब्यूनल्स (जैसे कराधान, औद्योगिक विवाद, भूमि सुधार आदि के लिए)
निष्कर्ष:
ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट, 2021 की कई धाराओं को रद्द करने का सुप्रीम कोर्ट का निर्णय, भारत में संवैधानिक सर्वोच्चता और न्यायिक स्वतंत्रता की निर्णायक पुष्टि है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अत्यधिक कार्यपालिका-नियंत्रित ट्रिब्यूनल संरचना, भारत के संवैधानिक दृष्टिकोण के अनुरूप नहीं हो सकती। नेशनल ट्रिब्यूनल कमीशन की स्थापना का निर्देश देकर, कोर्ट ने दीर्घकालिक संस्थागत सुधार की दिशा में एक मजबूत आधार तैयार किया है। यह कमीशन सुनिश्चित करेगा कि ट्रिब्यूनल आगे भी स्वतंत्र, निष्पक्ष और प्रभावी न्यायिक संस्थाओं के रूप में कार्य करते रहें।
