सन्दर्भ:
भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (IIA) के खगोलविदों ने कोडैकनाल सोलर ऑब्ज़र्वेटरी से प्राप्त 2015 से 2025 तक के 11 वर्षों के Ca-K स्पेक्ट्रोस्कोपिक डाटा का उपयोग करते हुए अक्षांशों के अनुसार सौर चुम्बकीय गतिविधि का मानचित्र तैयार किया है।
सौर चुम्बकीय गतिविधि का अध्ययन क्यों महत्वपूर्ण है?
-
-
- सूर्य लगभग 11-वर्षीय सौर चक्र से गुजरता है, जिसमें उसकी चुम्बकीय गतिविधि लगातार बदलती रहती है। इस दौरान होने वाले सौर व्यवधान (Solar Disturbances) पृथ्वी को कई तरीकों से प्रभावित करते हैं,जैसे- उपग्रह संचार में बाधा उत्पन्न होना, GPS और नेविगेशन प्रणालियों पर असर पड़ना, विद्युत ग्रिड को नुकसान पहुँचना तथा जलवायु और वायुमंडलीय परिवर्तनों पर प्रभाव डालना। इसलिए सौर चुम्बकीय गतिविधि का निरंतर अध्ययन पृथ्वी की तकनीकी और प्राकृतिक प्रणालियों की सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
- इस गतिविधि का मानचित्रण करने से अंतरिक्ष मौसम (Space Weather) की सटीक भविष्यवाणी में सहायता मिलती है जो भारत की बढ़ती अंतरिक्ष-आधारित अवसंरचना के लिए अत्यंत आवश्यक है।
- सूर्य लगभग 11-वर्षीय सौर चक्र से गुजरता है, जिसमें उसकी चुम्बकीय गतिविधि लगातार बदलती रहती है। इस दौरान होने वाले सौर व्यवधान (Solar Disturbances) पृथ्वी को कई तरीकों से प्रभावित करते हैं,जैसे- उपग्रह संचार में बाधा उत्पन्न होना, GPS और नेविगेशन प्रणालियों पर असर पड़ना, विद्युत ग्रिड को नुकसान पहुँचना तथा जलवायु और वायुमंडलीय परिवर्तनों पर प्रभाव डालना। इसलिए सौर चुम्बकीय गतिविधि का निरंतर अध्ययन पृथ्वी की तकनीकी और प्राकृतिक प्रणालियों की सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
-
अध्ययन से प्राप्त मुख्य निष्कर्ष:
-
-
- सूर्य की अधिकतर गतिविधि 40° उत्तर और 40° दक्षिण अक्षांशों के बीच पाई गई। इन क्षेत्रों में भी 15–20° अक्षांश के आसपास दोनों तरफ (उत्तर और दक्षिण) सबसे ज्यादा सौर गतिविधि देखी गई।
- गोलार्धों की तुलना में यह पाया गया कि दक्षिणी गोलार्ध में ऊँचे अक्षांशों की तरफ जाते हुए गतिविधि अधिक तेजी से बढ़ती है। यानी उत्तर और दक्षिण गोलार्ध में गतिविधि में स्पष्ट अंतर दिखाई देता है।
- स्पेक्ट्रल अवलोकनों से यह भी पता चला कि चुम्बकीय गतिविधि का पैटर्न सनस्पॉट (सूर्य के काले धब्बे) और चुम्बकीय क्षेत्र के फैलाव से मेल खाता है।
- यह अध्ययन सौर चक्र 24 के चरम से लेकर सौर चक्र 25 के चरम तक किया गया, जिससे यह सिद्ध होता है कि सूर्य की 11-वर्षीय गतिविधि नियमित और अनुमानित तरीके से बदलती रहती है।
- सूर्य की अधिकतर गतिविधि 40° उत्तर और 40° दक्षिण अक्षांशों के बीच पाई गई। इन क्षेत्रों में भी 15–20° अक्षांश के आसपास दोनों तरफ (उत्तर और दक्षिण) सबसे ज्यादा सौर गतिविधि देखी गई।
-
विज्ञान और प्रौद्योगिकी के लिए महत्त्व:
-
-
- सौर डायनेमो की बेहतर समझ: इस अध्ययन से सौर डायनेमो की बेहतर समझ विकसित होती है। यह तापमान में परिवर्तन, चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता में बदलाव तथा क्रोमोस्फीयर में चुम्बकीय संरचनाओं के विकास जैसे पहलुओं के विश्लेषण में सहयोग प्रदान करता है।
- अंतरिक्ष मौसम पूर्वानुमान में सुधार: यह अध्ययन अंतरिक्ष मौसम पूर्वानुमान में सुधार लाता है। इससे सौर तूफानों, कोरोनल मास इजेक्शंस (CMEs) तथा रेडियो ब्लैकआउट जैसी घटनाओं का पूर्वानुमान करने में मदद मिलती है, जो ISRO के उपग्रहों, संचार नेटवर्क, उड्डयन और रक्षा प्रणाली के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- संभावित उपयोग: इसके कई संभावित उपयोग सामने आते हैं, जिनमें शांत सौर काल में उपग्रह प्रक्षेपण का बेहतर निर्धारण, पावर ग्रिड संरक्षण हेतु पूर्व चेतावनी तंत्र विकसित करना और विकिरण-प्रतिरोधी अंतरिक्ष इलेक्ट्रॉनिक्स का डिज़ाइन शामिल है।
- सौर डायनेमो की बेहतर समझ: इस अध्ययन से सौर डायनेमो की बेहतर समझ विकसित होती है। यह तापमान में परिवर्तन, चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता में बदलाव तथा क्रोमोस्फीयर में चुम्बकीय संरचनाओं के विकास जैसे पहलुओं के विश्लेषण में सहयोग प्रदान करता है।
-
भारत के संदर्भ में प्रासंगिकता:
-
-
- यह अध्ययन भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि देश में उपग्रहों की संख्या तेजी से बढ़ रही है और डिजिटल संचार पर निर्भरता भी निरंतर बढ़ रही है। साथ ही, भारत की विद्युत ग्रिड प्रणाली अंतरिक्ष-आधारित व्यवधानों के प्रति संवेदनशील है, जिससे सौर गतिविधियों के दौरान संचार व ऊर्जा तंत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
- यह शोध भारत की अंतरिक्ष स्थिति जागरूकता (Space Situational Awareness) क्षमता को बढ़ाता है, सौर भौतिकी अनुसंधान (Solar Physics Research) को मजबूत करता है तथा स्वदेशी वैज्ञानिक उपकरणों के विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है।
- यह अध्ययन भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि देश में उपग्रहों की संख्या तेजी से बढ़ रही है और डिजिटल संचार पर निर्भरता भी निरंतर बढ़ रही है। साथ ही, भारत की विद्युत ग्रिड प्रणाली अंतरिक्ष-आधारित व्यवधानों के प्रति संवेदनशील है, जिससे सौर गतिविधियों के दौरान संचार व ऊर्जा तंत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
-
निष्कर्ष:
कोडैकनाल सौर वेधशाला के दीर्घकालिक Ca-K डाटा और नवीन अक्षांश-बैंड तकनीक ने सौर चुम्बकीय गतिविधि के अक्षांशीय विकास को बेहतर रूप से समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यह शोध अंतरिक्ष मौसम पूर्वानुमान, उपग्रह एवं संचार सुरक्षा तथा सूर्य के चुम्बकीय डायनेमो की वैज्ञानिक समझ को मजबूत करने में अत्यंत सहायक सिद्ध होगा।
