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Blog / 04 Nov 2025

दुर्लभ पृथ्वी तत्व संबंधी अमेरिका–चीन समझौता

संदर्भ:

हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने दक्षिण कोरिया में एक शिखर बैठक की, जिसमें चीन से दुर्लभ पृथ्वी तत्वों के निर्यात को जारी रखने पर समझौता हुआ।

दुर्लभ पृथ्वी तत्व क्या हैं?

    • दुर्लभ पृथ्वी तत्व आवर्त सारणी (Periodic Table) के 17 धात्विक तत्वों का एक समूह हैं इनमें 15 लैंथेनाइड्स (Lanthanides) के साथ स्कैंडियम (Scandium) और इट्रियम (Yttrium) शामिल हैं। ये धातुएँ चमकदार सफेद, मुलायम और अत्यधिक अभिक्रियाशील (Reactive) होती हैं।
    • हालांकि ये तत्व भूगर्भीय रूप से दुर्लभनहीं हैं, लेकिन ये पृथ्वी की पर्पटी (Crust) में बहुत कम मात्रा में मौजूद हैं। इस कारण इनका निष्कर्षण और पृथक्करण जटिल और महंगा हो जाता है।

दुर्लभ पृथ्वी तत्वों की सूची:

स्कैंडियम (Scandium), यिट्रियम (Yttrium), लैंथेनम (Lanthanum), सेरियम (Cerium), प्रसीओडाइमियम (Praseodymium), नियोडाइमियम (Neodymium), प्रोमेथियम (Promethium), समेरियम (Samarium), यूरोपियम (Europium), गैडोलिनियम (Gadolinium), टर्बियम (Terbium), डिस्प्रोसियम (Dysprosium), होल्मियम (Holmium), एर्बियम (Erbium), थुलियम (Thulium), यिटरबियम (Ytterbium) और ल्यूटेटियम (Lutetium)

Rare Earth Elements in India

उपयोग:

दुर्लभ पृथ्वी तत्वों के विशिष्ट चुंबकीय, प्रकाशीय और विद्युरासायनिक गुणों के कारण ये आधुनिक तकनीकों में अत्यंत आवश्यक हैं।

1.        इलेक्ट्रॉनिक्स: स्मार्टफोन, लैपटॉप और टेलीविज़न स्क्रीन में इनका उपयोग होता है।

2.      नवीकरणीय ऊर्जा: नियोडाइमियम और डिस्प्रोसियम का उपयोग उच्च-प्रदर्शन स्थायी चुंबकों में होता है, जो पवन टरबाइन और इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) के मोटरों में लगते हैं।

3.      रक्षा और अंतरिक्ष: लड़ाकू विमानों (जैसे F-35), मिसाइलों, रडार सिस्टम और सैटेलाइट संचार के लिए ये आवश्यक हैं।

4.     चिकित्सा और औद्योगिक उपयोग: एमआरआई मशीनों, तेल परिशोधन (Oil Refining) और प्रदूषण नियंत्रण हेतु उत्प्रेरक (Catalysts) में इनका प्रयोग किया जाता है।

हालाँकि इन तत्वों की मात्रा बहुत कम लगती है, लेकिन इनकी अनुपस्थिति से पूरी आपूर्ति श्रृंखला रुक सकती है। हाल ही में जब चीन ने निर्यात पर नियंत्रण लगाया, तो विश्वभर की उत्पादन प्रक्रियाएँ प्रभावित हुईं।

वैश्विक उत्पादन और चीन की प्रभुत्वता:

1950 के दशक में अमेरिका ने सबसे पहले दुर्लभ पृथ्वी तत्वों को निकालने और शुद्ध करने की तकनीक विकसित की थी। लेकिन 1980 के दशक के बाद से चीन इस क्षेत्र में अग्रणी बन गया, इसके पीछे प्रमुख कारण हैं:

         कम उत्पादन लागत

         पर्यावरण नियमों में ढील

         सरकारी प्रोत्साहन और सहायता

वर्तमान समय में चीन वैश्विक खनन उत्पादन का लगभग 60% तथा शोधन एवं चुंबक उत्पादन का 90% से अधिक उत्पादन करता है।

भारत और दुर्लभ पृथ्वी तत्व:

भारत के पास भी दुर्लभ पृथ्वी तत्वों के पर्याप्त भंडार मौजूद हैं, जो मुख्यतः केरल, तमिलनाडु, ओडिशा और आंध्र प्रदेश के तटीय इलाकों की मोनाज़ाइट रेत में पाए जाते हैं।

    • इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड (आईआरईएल) और भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बीएआरसी) जैसे संगठन खनन और प्रसंस्करण में शामिल हैं।
    • हालाँकि भारत के पास अच्छे भंडार हैं, लेकिन शुद्धिकरण (Refining) क्षमता की कमी, तकनीकी सीमाएँ और कड़े नियामक ढाँचे के कारण भारत अभी तक इस क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर अग्रणी देश नहीं बन सका है।

निष्कर्ष:

दुर्लभ पृथ्वी तत्व 21वीं सदी की डिजिटल और हरित अर्थव्यवस्था की आधारशिला हैं। इनकी रणनीतिक, आर्थिक और तकनीकी महत्ता इन्हें आधुनिक विकास का आवश्यक स्तंभ बनाती है, वहीं इन पर अत्यधिक निर्भरता इन्हें भू-राजनीतिक संवेदनशीलता का कारण भी बनाती है। जैसे-जैसे विश्व स्वच्छ ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहनों और उन्नत इलेक्ट्रॉनिक्स की ओर अग्रसर हो रही है, वैसे-वैसे टिकाऊ, विविध और सुरक्षित आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुनिश्चित करना, साथ ही पर्यावरणीय संतुलन और संसाधनों के जिम्मेदार उपयोग को बनाए रखना, वैश्विक स्थिरता और तकनीकी प्रगति के लिए अत्यंत आवश्यक होगा।