सन्दर्भ:
हाल ही में विश्व बाल दिवस (20 नवंबर 2025) पर यूनिसेफ ने अपनी प्रमुख रिपोर्ट, "द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रेन 2025: एंडिंग चाइल्ड पोवर्टी – आवर शेयर्ड इंपेरेटिव” जारी की। रिपोर्ट चेतावनी देती है कि विश्वभर में 400 मिलियन से अधिक बच्चे बहुआयामी गरीबी में जी रहे हैं, जो कम से कम दो बुनियादी आवश्यकताओं जैसे पोषण, स्वच्छता या शिक्षा, से वंचित हैं।
मुख्य निष्कर्ष:
1. अभाव की तीव्रता
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- यूनिसेफ के अनुसार, 130 से अधिक निम्न और मध्यम आय वाले देशों में 417 मिलियन बच्चे कम से कम छह मापदंडों में से दो में "गंभीर अभाव" झेल रहे हैं।
- ये छह आयाम हैं: शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, पोषण, स्वच्छता और सुरक्षित पानी।
- इसके अतिरिक्त, 118 मिलियन बच्चे तीन या अधिक आयामों में अभाव का सामना करते हैं और 17 मिलियन बच्चे चार या अधिक आयामों से वंचित हैं।
- यूनिसेफ के अनुसार, 130 से अधिक निम्न और मध्यम आय वाले देशों में 417 मिलियन बच्चे कम से कम छह मापदंडों में से दो में "गंभीर अभाव" झेल रहे हैं।
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2. स्वच्छता सबसे व्यापक अभाव
· स्वच्छता (Sanitation) बच्चों में सबसे आम समस्या है:
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- निम्न-आय वाले देशों में 65% बच्चे शौचालय की पहुँच से वंचित हैं।
- निचले-मध्य आय वाले देशों में यह आंकड़ा 26% है।
- जबकि उच्च-मध्य आय वाले देशों में भी 11% बच्चे स्वच्छ शौचालय से वंचित हैं।
- निम्न-आय वाले देशों में 65% बच्चे शौचालय की पहुँच से वंचित हैं।
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3. मौद्रिक गरीबी
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- भौतिक अभावों के अतिरिक्त, आर्थिक गरीबी भी गंभीर है:
- विश्वभर में 19% से अधिक बच्चे प्रतिदिन 3 अमेरिकी डॉलर से कम पर जीवन यापन करते हैं, जिसे अत्यधिक मौद्रिक गरीबी की श्रेणी में रखा जाता है।
- इन अत्यंत गरीब बच्चों में से लगभग 90% उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया में रहते हैं।
- विश्वभर में 19% से अधिक बच्चे प्रतिदिन 3 अमेरिकी डॉलर से कम पर जीवन यापन करते हैं, जिसे अत्यधिक मौद्रिक गरीबी की श्रेणी में रखा जाता है।
- भौतिक अभावों के अतिरिक्त, आर्थिक गरीबी भी गंभीर है:
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क्षेत्रीय पैटर्न एवं प्रभाव:
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- भौगोलिक एकाग्रता: बहुआयामी बाल गरीबी की सबसे अधिक दरें उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया में केंद्रित हैं।
- सामाजिक-आर्थिक प्रभाव: अनेक आयामों में वंचित बच्चे दीर्घकालिक प्रतिकूल परिणामों का सामना करने की अधिक संभावना रखते हैं, जिसमें खराब स्वास्थ्य, कमजोर सीखने की क्षमता, विकास में रुकावट (Stunting) और मानसिक तनाव शामिल है।
- पीढ़ीगत असर: निरंतर बहुआयामी गरीबी भविष्य की आर्थिक उत्पादकता को कम करती है, असमानता बढ़ाती है और गरीबी के चक्र को बनाए रखती है। इसलिए यह सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए एक दीर्घकालिक चुनौती है।
- भौगोलिक एकाग्रता: बहुआयामी बाल गरीबी की सबसे अधिक दरें उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया में केंद्रित हैं।
नीति सुझाव:
रिपोर्ट के अनुसार, बहुआयामी बाल गरीबी का समाधान करने हेतु सरकारों को निम्न कदम उठाने चाहिए:
1. बाल गरीबी को राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाना
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- इसे राष्ट्रीय विकास योजनाओं, बजट निर्धारण और दीर्घकालिक नीति ढांचे में स्थान दिया जाए।
- इसे राष्ट्रीय विकास योजनाओं, बजट निर्धारण और दीर्घकालिक नीति ढांचे में स्थान दिया जाए।
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2. सामाजिक सुरक्षा में निवेश
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- बच्चों वाले परिवारों के लिए नकद सहायता कार्यक्रमों का विस्तार।
- ऐसी लचीली सामाजिक सुरक्षा प्रणालियाँ विकसित की जाएँ जो संकट (जलवायु, ऋण, संघर्ष) की स्थिति में तेजी से प्रतिक्रिया दे सकें।
- बच्चों वाले परिवारों के लिए नकद सहायता कार्यक्रमों का विस्तार।
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3. आवश्यक सेवाओं की उपलब्धता को मजबूत करना
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- शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छ जल, स्वच्छता, पोषण और आवास जैसी बुनियादी सेवाओं की सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित की जाए।
- उपेक्षित समुदायों में अवसंरचना और सरकारी सेवाओं में निवेश को प्राथमिकता दी जाए।
- शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छ जल, स्वच्छता, पोषण और आवास जैसी बुनियादी सेवाओं की सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित की जाए।
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4. कमजोर समूहों पर ध्यान केंद्रित करना
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- छोटे बच्चों, दिव्यांग बच्चों और संघर्ष या संकटग्रस्त क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों को प्राथमिकता।
- उच्च जोखिम वाले समूहों की पहचान और सहायता के लिए विभाजित (disaggregated) डेटा का उपयोग।
- छोटे बच्चों, दिव्यांग बच्चों और संघर्ष या संकटग्रस्त क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों को प्राथमिकता।
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निष्कर्ष:
यह रिपोर्ट सीधे तौर पर सतत विकास लक्ष्य (SDGs) से जुड़ी है —
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- SDG 1: गरीबी समाप्त करना,
- SDG 3: अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण,
- SDG 6: स्वच्छ पानी और स्वच्छता,
- SDG 4: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा।
- SDG 1: गरीबी समाप्त करना,
भारत जैसे देशों में जहाँ बड़ी जनसंख्या में बच्चे शामिल हैं, यह रिपोर्ट सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों, सार्वजनिक सेवा और कल्याणकारी नीतियों की प्राथमिकता निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। यह गरीब और संवेदनशील वर्गों के बच्चों के लिए लक्षित हस्तक्षेपों की आवश्यकता को पुनः रेखांकित करती है।
