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Blog / 15 Sep 2025

सिकाडा (Cicada) की पुनर्वापसी

संदर्भ:

हाल ही में केरल के साइलेंट वैली नेशनल पार्क में लंबे समय बाद फिर से सिकाडा (Cicada) दिखाई दिए हैं। काफी समय से इस क्षेत्र में इस कीट की उपस्थिति नहीं मिल रही थी। भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण (Botanical Survey of India) के विशेषज्ञों का कहना है कि इनकी वापसी पर्यावरण में हो रहे बदलाव और उससे जुड़ी पारिस्थितिक गतिविधियों का नतीजा है।

सिकाडा (Cicada) के बारे में:

सिकाडा अर्धपंखी (Hemipteran) कीट होते हैं, जो अपनी ऊँची, जटिल और प्रजाति-विशिष्ट ध्वनियों के लिए जाने जाते हैं। ये ध्वनियाँ अपने पेट पर स्थित झिल्लियों (Membranes) को कंपन करके निकालते हैं। सिकाडा का जीवन चक्र बेहद अनोखा होता है, वे अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा जमीन के नीचे निम्फ (Nymph) अवस्था में बिताते हैं।

·         सिकाडा ज़्यादातर ऊँचे और परिपक्व पेड़ों वाली प्राकृतिक वनों की छतरी (Canopy) में रहते हैं।

·         ये गर्म और आर्द्र जलवायु पसंद करते हैं और दुनिया के उष्णकटिबंधीय व समशीतोष्ण वनों में पाए जाते हैं।

·         इन कीटों ने अपने आवास के अनुसार कई अनूठे व्यवहार विकसित किए हैं, जो उन्हें जीवित रहने में मदद करते हैं।

Cicadas are back in Kerala's Silent Valley; this might be a symbol of  recovery, or a warning sign of disruption, say experts

सिकाडा के प्रकार:

सिकाडा को उनके बाहर निकलने के पैटर्न के आधार पर दो प्रमुख श्रेणियों वार्षिक (Annual) और आवधिक (Periodical) में बाँटा गया है।

·         वार्षिक सिकाडा (Annual Cicadas): ये सिकाडा गर्मियों के अलग-अलग समय पर जमीन से बाहर निकलते हैं। इनका रंग आमतौर पर गहरा होता है और उन पर हरे रंग के निशान पाए जाते हैं। शिकारी पक्षियों और छछूंदरों से बचने के लिए ये पेड़ों में घुलमिल कर छिप जाते हैं (Camouflage) और उड़ान भरकर खुद को सुरक्षित करते हैं।

·         आवधिक सिकाडा (Periodical Cicadas):  ये बहुत दुर्लभ होते हैं। इनकी विशेषता यह है कि ये बड़ी संख्या में एक साथ 13 या 17 साल के अंतराल पर जमीन से निकलते हैं। इस श्रेणी में केवल 7 प्रजातियाँ आती हैं।

पारिस्थितिक महत्व:

  • वन पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को बनाए रखने में सिकाडा (Cicadas) की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। जैसे ही वे जमीन से बाहर निकलते हैं, वे परिपक्व पेड़ों की स्वाभाविक छंटाई में मदद करते हैं, जिससे सूर्य का प्रकाश आसानी से नीचे तक पहुँचकर युवा पौधों की वृद्धि को प्रोत्साहित करता है। उनकी बिल बनाने और मिट्टी खोदने की प्रक्रिया मिट्टी को हवादार बनाती है, उसकी संरचना में सुधार करती है और पौधों की जड़ों तक पानी व पोषक तत्वों के बेहतर अवशोषण को बढ़ावा देती है।
  • जब सिकाडा मरते हैं, तो उनके शरीर विघटित होकर मिट्टी में नाइट्रोजन मिलाते हैं। इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है, जो आसपास के पेड़ों और पौधों की वृद्धि के लिए लाभकारी होती है। इस प्रकार, सिकाडा पोषक चक्रण (Nutrient Cycling) को बनाए रखते हैं और जंगल की निरंतर सेहत व संतुलन को सुनिश्चित करते हैं।

साइलेंट वैली नेशनल पार्क के बारे में:

·         स्थान: यह राष्ट्रीय उद्यान केरल के नीलगिरि पर्वतों में स्थित है। इसका मूल क्षेत्र 89.52 वर्ग किमी है और यह नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व का हिस्सा है।

·         इतिहास: 1914 में इसे आरक्षित वन घोषित किया गया। 1984 में यह राष्ट्रीय उद्यान बना और 1986 में नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व का कोर क्षेत्र घोषित किया गया।

·         वन्यजीव: यहाँ 41 प्रकार के स्तनधारी, 211 पक्षी प्रजातियाँ, 49 सरीसृप और 47 उभयचर प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इनमें शेरमुख बंदर (Lion-tailed Macaque) प्रमुख हैं।

·         नदियाँ: भवानी, कुंथीपुझा और कडालुंडी नदियाँ यहीं से निकलती हैं।

·         आदिवासी समुदाय: यहाँ इरुला, कुरुबा, मुदुगा और कटनायक्कर जैसी जनजातियाँ निवास करती हैं।

·         आसपास के संरक्षित क्षेत्र: इसमें करिमपुझा अभयारण्य और मुकुर्थी राष्ट्रीय उद्यान शामिल हैं।