संदर्भ:
झारखंड के कोल्हान क्षेत्र में हो आदिवासियों द्वारा हाल ही में किए गए विरोध प्रदर्शनों ने मानकी-मुंडा व्यवस्था के भविष्य पर बहस छेड़ दी है, जो इस क्षेत्र के आदिवासी प्रशासन का एक पारंपरिक स्वशासन मॉडल है।
वर्तमान संघर्ष और विरोध:
पश्चिमी सिंहभूम जिले में हाल ही में विरोध प्रदर्शन तब शुरू हुए जब यह अफवाह फैली कि उपायुक्त (डीसी) कुछ मुंडाओं को हटाकर मानकी-मुंडा व्यवस्था में हस्तक्षेप कर रहे हैं। जिला प्रशासन के स्पष्टीकरण के बावजूद, कई हो आदिवासियों को अपनी सांस्कृतिक स्वायत्तता और शासन संरचना खोने का डर है।
मानकी-मुंडा व्यवस्था के बारे में:
मानकी-मुंडा व्यवस्था झारखंड के कोल्हान क्षेत्र में हो जनजाति द्वारा अपनाई जाने वाली शासन व्यवस्था का एक विकेन्द्रीकृत, समुदाय-संचालित मॉडल है।
- इस प्रणाली में, गांव का मुखिया मुंडा स्थानीय विवादों को सुलझाता है, जबकि मानकी गांवों के समूह की देखरेख करते हुए मुंडा स्तर के अनसुलझे मुद्दों को संभालता है।
- राज्य द्वारा लगाए गए करों से स्वतंत्र रूप से संचालित, इस प्रणाली ने ऐतिहासिक रूप से सामुदायिक रीति-रिवाजों के आधार पर आंतरिक व्यवस्था बनाए रखी।
मानकी-मुंडा व्यवस्था का इतिहास:
- ब्रिटिश काल से पहले: हो जनजाति स्वायत्त रूप से शासन करती थी, मानकी और मुंडा बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के पारिवारिक और सामाजिक मामलों में नेतृत्व करते थे।
- ब्रिटिश काल: ईस्ट इंडिया कंपनी के आगमन ने इस व्यवस्था को बाधित कर दिया। स्थायी बंदोबस्त अधिनियम (1793) ने भूमि कर लगाया, जिसके कारण जनजातीय विद्रोह हुए। प्रतिरोध को दबाने के लिए, अंग्रेजों ने मानकी-मुंडा प्रणाली को अपनाया और स्थानीय स्वायत्तता बनाए रखते हुए क्षेत्र को नियंत्रित करने के लिए इसे मध्यस्थ के रूप में इस्तेमाल किया। 1833 में, कैप्टन थॉमस विल्किंसन ने विल्किंसन नियमों के साथ इस प्रणाली को औपचारिक रूप दिया, तथा इसे ब्रिटिश शासन में एकीकृत कर दिया।
स्वतंत्रता के बाद:
भारत की स्वतंत्रता के बाद, विल्किंसन के नियम कोल्हान में आदिवासी मामलों को नियंत्रित करते रहे। हालाँकि पटना उच्च न्यायालय ने 2000 में इन नियमों को पुराना माना, फिर भी ये आज भी प्रचलन में हैं।
- राजस्व संबंधी कार्यों के लिए न्याय पंच प्रणाली 2021 में शुरू की गई थी, लेकिन मानकी-मुंडा प्रणाली अभी भी जारी है, खासकर ग्रामीण इलाकों में जहाँ पारंपरिक शासन अभी भी सामुदायिक जीवन का अभिन्न अंग है।
युवाओं द्वारा सुधार की माँग:
मानकी-मुंडा प्रणाली में सुधार की माँग बढ़ रही है, खासकर युवा पीढ़ी की ओर से। कई लोगों का तर्क है कि नेतृत्व की वंशानुगत प्रकृति अब आधुनिक प्रशासनिक आवश्यकताओं के अनुकूल नहीं है, क्योंकि कई मानकी और मुंडा औपचारिक शिक्षा से वंचित हैं।
- रिक्त पदों को भरने और प्रणाली को सरल बनाने के प्रयास जारी हैं, लेकिन तनाव बना हुआ है क्योंकि समुदाय परंपरा और आधुनिकता के बीच संतुलन बनाने पर बहस कर रहा है।
हो जनजाति के बारे में:
हो जनजाति एक ऑस्ट्रोएशियाटिक मुंडा जातीय समूह है जो मुख्य रूप से भारत के झारखंड के छोटा नागपुर पठार क्षेत्र में निवास करता है।
- उनकी आबादी ओडिशा, पश्चिम बंगाल और बिहार के कुछ हिस्सों में भी फैली हुई है। इस स्वदेशी समुदाय की एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है और जिस भूमि पर वे रहते हैं, उससे उनका एक स्थायी संबंध है।
निष्कर्ष:
मानकी-मुंडा व्यवस्था आदिवासी स्वशासन का प्रतीक है, लेकिन जैसे-जैसे झारखंड आधुनिक होता जा रहा है, इस व्यवस्था पर दबाव बढ़ रहा है। हालाँकि कुछ लोग परंपरा के संरक्षण की वकालत करते हैं, लेकिन सुधार की आवश्यकता से इनकार नहीं किया जा सकता। सांस्कृतिक विरासत और समकालीन शासन के बीच संतुलन बनाना ही इस प्राचीन व्यवस्था के भविष्य को आकार देगा।