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Blog / 10 Jul 2025

पिघलते ग्लेशियर और ज्वालामुखी विस्फोटों के बीच संबंध

सन्दर्भ:
हाल ही में एक अध्ययन में यह स्पष्ट किया गया है कि पिघलते ग्लेशियरों और बढ़ती ज्वालामुखीय गतिविधियों के बीच संभावित संबंध हो सकता है। शोधकर्ताओं के अनुसार, ज्वालामुखियों पर जमी बर्फ की मोटी परत मौजूद मैग्मा कक्षों पर दबाव डालती है, जिससे विस्फोट दबे रहते हैं लेकिन जब ये ग्लेशियर पिघलते हैं, तो यह दबाव कम हो जाता है और मैग्मा आसानी से सतह की ओर उठ सकता है, जिससे विस्फोट की संभावना बढ़ जाती है

ग्लेशियर और ज्वालामुखी कैसे सम्बंधित हैं?

  • वैज्ञानिकों को पहले से संदेह था कि पिघलती बर्फ ज्वालामुखियों को प्रभावित कर सकती है। भारी बर्फ का दबाव मैग्मा को ऊपर उठने से रोकता है। लेकिन जब बर्फ पिघलती है, तो दबाव हटने से मैग्मा को बाहर निकलने का रास्ता मिल जाता है, जिससे तेज और विस्फोटक ज्वालामुखी गतिविधियाँ हो सकती हैं।
  • यह खतरा विशेष रूप से पश्चिम अंटार्कटिका के लिए चिंताजनक है, जहां करीब 100 ज्वालामुखी मोटी बर्फ की चादर के नीचे निष्क्रिय अवस्था में हैं। जैसे-जैसे वैश्विक तापमान बढ़ रहा है, ये बर्फ की परतें आने वाले दशकों और सदियों में तेज़ी से पिघल सकती हैं, जिससे ज्वालामुखी विस्फोटों का खतरा भी बढ़ सकता है।

जलवायु परिवर्तन की भूमिका:
दुनिया भर में ग्लेशियरों और बर्फ की चादरों के पिघलने में जलवायु परिवर्तन की बड़ी भूमिका है। जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, बर्फ तेजी से गायब हो रही है, जिससे ज्वालामुखीय गतिविधियों में वृद्धि की आशंका है।

बढ़ती ज्वालामुखीय गतिविधियों के दुष्परिणाम:
ज्वालामुखी विस्फोट पर्यावरण और मानव जीवन पर गंभीर असर डाल सकते हैं। एक ओर, विस्फोट से निकली राख और सल्फर डाइऑक्साइड अस्थायी ठंडक ला सकते हैं, लेकिन दूसरी ओर, बार-बार के विस्फोटों से कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है, जो धरती को और अधिक गर्म कर सकते हैं।

इस प्रकार, पिघलते ग्लेशियरों और बढ़ती ज्वालामुखीय गतिविधियों के बीच संबंध यह दर्शाता है कि धरती की प्राकृतिक प्रणालियाँ कितनी परस्पर जुड़ी हुई हैं। ग्लेशियरों के पिघलने से विस्फोट बढ़ सकते हैं और ये विस्फोट वातावरण में और अधिक गर्मी ला सकते हैं और यह एक दुष्चक्र है, जो जलवायु परिवर्तन को और तेज़ कर सकता है।

निष्कर्ष:
पिघलते ग्लेशियरों और ज्वालामुखीय विस्फोटों के बीच संबंध एक गंभीर और उभरती हुई चिंता है। जलवायु परिवर्तन से जुड़ी हर क्रिया का दूरगामी और जटिल प्रभाव हो सकता है इसलिए इस संबंध को समझना बहुत जरूरी है ताकि समय रहते भविष्य में होने वाले संभावित पर्यावरणीय और सामाजिक खतरों के लिए तैयारी और रोकथाम कर सकें।