होम > Blog

Blog / 27 Oct 2025

भारतीय न्यायालयों में लंबित निष्पादन याचिकाएँ – कारण व समाधान | Dhyeya IAS

संदर्भ:

हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने देशभर के जिला न्यायालयों में निष्पादन याचिकाओं (Execution Petitions) की बढ़ती और चिंताजनक संख्या पर गहरी चिंता व्यक्त की है।

निष्पादन याचिका के बारे में:

निष्पादन याचिका वह कानूनी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से अदालत के दिए गए निर्णय या आदेश को व्यावहारिक रूप से लागू कराया जाता है। यह किसी मुकदमे की अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण अवस्था होती है। अक्सर ऐसा होता है कि व्यक्ति अदालत से केस जीत तो जाता है, लेकिन फैसले के बाद भी उसे अपना अधिकार, संपत्ति या राशि वास्तविक रूप से प्राप्त नहीं हो पाती ऐसे में उसे अदालत में निष्पादन याचिका दाखिल करनी पड़ती है, ताकि अदालत स्वयं उस फैसले को लागू कराने की प्रक्रिया शुरू कर सके।

Pendency of Execution Petitions in Indian Courts

मुख्य तथ्य:

         8.82 लाख से अधिक निष्पादन याचिकाएँ लंबित: सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गई समीक्षा में सामने आया कि देशभर के जिला न्यायालयों में 8.82 लाख से अधिक निष्पादन याचिकाएँ लंबित हैं।

         निपटान में देरी: एक निष्पादन याचिका का निपटारा करने में औसतन 3.97 वर्ष का समय लग रहा है, जिससे पहले से ही लंबे चल रहे दीवानी मुकदमों की अवधि और बढ़ जाती है।

         देरी के कारण: देरी के प्रमुख कारण “वकीलों की अनुपलब्धता (38.9%), किसी उच्च अदालत द्वारा मुकदमे पर रोक लगना (17%) और जरूरी दस्तावेजों का इंतजार (12%) हैं।

प्रभाव:

         न्याय की विफलता: सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इतनी बड़ी संख्या में लंबित याचिकाएँ न्याय को निष्प्रभावी बना देती हैं, जिससे यह न्याय का मज़ाक (travesty of justice) बन जाता है।

         न्यायपालिका पर भरोसे में कमी: जो लोग वर्षों तक केस लड़कर फैसला जीतते हैं, उन्हें जब फैसले को लागू कराने के लिए भी कई वर्षो का इंतजार करना पड़ता है, तो इससे जनता का न्याय प्रणाली पर भरोसा कम होता है

आगे की राह:

         अतिरिक्त छह महीने का समय: सर्वोच्च न्यायालय ने सभी उच्च न्यायालयों को अपने अधीनस्थ जिला न्यायालयों के साथ समन्वय कर निष्पादन याचिकाओं के निपटारे में तेजी लाने के लिए छह महीने का अतिरिक्त समय दिया है।

         निगरानी और मूल्यांकन: सर्वोच्च न्यायालय इस प्रक्रिया की निगरानी करेगा तथा लंबित मामलों के संकट को दूर करने के लिए आवश्यकतानुसार आगे की कार्रवाई करेगा।

निष्कर्ष:

निष्पादन याचिकाओं की भारी लंबित संख्या एक जटिल और गंभीर समस्या है, जो न्याय व्यवस्था की कमियों और प्रक्रियागत कठिनाइयों को उजागर करती है। सर्वोच्च न्यायालय की पहल निश्चित रूप से सकारात्मक और आवश्यक कदम है, लेकिन इस समस्या के स्थायी समाधान के लिए लगातार निगरानी, प्रशासनिक सुधार और समयबद्ध कार्रवाई जरूरी है। न्याय तभी वास्तविक और सार्थक माना जा सकता है, जब वह समय पर और प्रभावी रूप से लागू हो।