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Blog / 19 Jul 2025

वैवाहिक विवादों में गुप्त रिकॉर्डिंग पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सन्दर्भ:
सुप्रीम कोर्ट के एक महत्वपूर्ण फैसला में अब पति-पत्नी के बीच गुप्त रूप से रिकॉर्ड की गई बातचीत वैवाहिक ( matrimonial) विवादों, जैसे तलाक के मामलों में, सबूत के रूप में स्वीकार की जा सकती है। यह फैसला भारतीय कानून में "
दांपत्य विशेषाधिकार" (Spousal Privilege) की परिभाषा को नया रूप देता है।

क्या होता है दांपत्य विशेषाधिकार (Spousal Privilege)?

  • यह भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 122 के तहत आता है।
  • इसके अनुसार, विवाह के दौरान पति-पत्नी के बीच हुई गोपनीय बातचीत को अदालत में जबरन उजागर नहीं कराया जा सकता, जब तक कि उस बातचीत को करने वाला जीवनसाथी खुद सहमति न दे।

दांपत्य विशेषाधिकार के प्रमुख पहलू:

  • गोपनीय संचार की सुरक्षा: पति-पत्नी को विवाह के दौरान किए गए गोपनीय बातचीत को बताने से सुरक्षा प्रदान की जाती है।

इस नियम के कुछ अपवाद (Exceptions):

1.        यदि दोनों पति-पत्नी एक-दूसरे के खिलाफ मुकदमा कर रहे हों, तो ये गोपनीय बातचीत कोर्ट में बताई जा सकती है।

2.      अगर एक जीवनसाथी दूसरे के खिलाफ अपराध में आरोपी हो, तो बातचीत का उपयोग किया जा सकता है।

3.      यदि जिस व्यक्ति ने बातचीत की है, वह स्वयं इसकी अनुमति दे, तो इसे सबूत के रूप में पेश किया जा सकता है।

4.     अगर किसी तीसरे व्यक्ति ने बातचीत सुनी हो, तो वह अदालत में गवाही दे सकता है।

हालिया सुप्रीम कोर्ट का फैसला:

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पति-पत्नी के बीच गुप्त रूप से रिकॉर्ड की गई बातचीत वैवाहिक विवादों में मान्य सबूत (admissible evidence) हो सकती है।
  • इससे पहले एक हाई कोर्ट ने इस तरह की रिकॉर्डिंग को निजता का उल्लंघन बताया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निजता का अधिकार पूर्ण नहीं होताउसे निष्पक्ष सुनवाई (fair trial) के अधिकार के साथ संतुलित किया जाना चाहिए।
  • अदालत ने 1973 के एक पुराने फैसले का हवाला दिया जिसमें रिश्वतखोरी के मामले में पुलिस द्वारा रिकॉर्ड की गई टेलीफोनिक बातचीत को सबूत माना गया था।
  • उसी तर्क के आधार पर अब वैवाहिक मामलों में भी अगर कोई सबूत जरूरी, सत्यापनीय और कानूनी अपवादों के दायरे में आता है, तो उसे स्वीकार किया जा सकता है, भले ही वह गुप्त रूप से रिकॉर्ड किया गया हो।

निष्कर्ष:

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से वैवाहिक विवादों में प्रमाण जुटाने में मदद मिल सकती है लेकिन इसके साथ कुछ चिंताएँ भी हैं, जैसे कि विवाह के भीतर निगरानी (surveillance) और रिकॉर्डिंग के दुरुपयोग की संभावना। इसके अतिरिक्त, भारत में तकनीक और स्मार्टफोन तक महिलाओं की पहुंच पुरुषों की तुलना में कम है, जिससे यह फैसला महिलाओं के लिए निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार पर असर डाल सकता है। कुल मिलाकर, यह फैसला कानून, निजता और न्याय के बीच संतुलन बनाने की एक नई दिशा दिखाता है।