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Blog / 09 May 2025

सुप्रीम कोर्ट की बिटकॉइन ट्रेडिंग पर टिप्पणी

सन्दर्भ:

हाल ही में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने बिना किसी नियमन और निगरानी के चल रही बिटकॉइन ट्रेडिंग पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। न्यायालय ने इसकी तुलना "हवाला कारोबार के परिष्कृत स्वरूप" से की। यह टिप्पणी उस दौरान की गई जब शैलेश बाबूलाल भट्ट की जमानत याचिका पर सुनवाई हो रही थी। उन्हें अवैध बिटकॉइन लेन-देन में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।

हवाला क्या है?

हवाला एक अनौपचारिक और बिना किसी कानूनी निगरानी के संचालित होने वाली धन प्रेषण प्रणाली है। इसका उपयोग अक्सर मनी लॉन्ड्रिंग (धन शोधन), आतंकवाद को वित्तीय सहायता देने और कर चोरी जैसी अवैध गतिविधियों में किया जाता है। इस प्रणाली में बिचौलियों का एक नेटवर्क कार्य करता है, जो बिना धन की वास्तविक आवाजाही के एक स्थान से दूसरे स्थान तक राशि का लेन-देन करवा देता है।

बिटकॉइन के बारे में:

बिटकॉइन दुनिया की पहली विकेंद्रीकृत क्रिप्टोकरेंसी है, जो मुक्त-बाजार की विचारधारा पर आधारित है। इसे वर्ष 2008 में "सातोशी नाकामोटो" नामक एक अज्ञात व्यक्ति या समूह द्वारा एक श्वेतपत्र (White Paper) के रूप में प्रस्तुत किया गया था। वर्ष 2009 में इसका ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर जारी किया गया, जिसके साथ ही इसका उपयोग एक डिजिटल मुद्रा के रूप में शुरू हुआ।

भारत में क्रिप्टोकरेंसी ट्रेडिंग से जुड़ा नियम:

वर्तमान में भारत में क्रिप्टोकरेंसी ट्रेडिंग अवैध नहीं है, लेकिन स्पष्ट नियामक ढांचे के अभाव में इसे लेकर काफी भ्रम की स्थिति बनी हुई है। वर्ष 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) का वह सर्कुलर रद्द कर दिया था, जिसमें बैंकों को क्रिप्टो से जुड़ी सेवाएं देने से मना किया गया था। हालांकि, इसके बाद केंद्र सरकार ने इस क्षेत्र के लिए कोई ठोस या व्यापक नीति लागू नहीं की।

  • वित्त अधिनियम, 2022 के अंतर्गत क्रिप्टोकरेंसी और NFT को आभासी डिजिटल परिसंपत्तियाँ (VDA) के रूप में परिभाषित किया गया है, लेकिन यह केवल कर उद्देश्यों के लिए है। इससे इन्हें कोई कानूनी मान्यता या नियामकीय दर्जा प्राप्त नहीं होता।
  • वित्तीय वर्ष 202223 से क्रिप्टो से होने वाली आय पर 30% का फ्लैट टैक्स लागू है, साथ ही कुछ निर्धारित सीमा से अधिक लेन-देन पर 1% टीडीएस भी काटा जाता है।
  • जहाँ शेयर बाजारों को सेबी और बैंकों को RBI नियंत्रित करता है, वहीं क्रिप्टोकरेंसी के लिए फिलहाल कोई समर्पित नियामक संस्था मौजूद नहीं है।
  • अभी तक क्रिप्टो लेन-देन के लिए न तो कोई विशेष उपभोक्ता सुरक्षा तंत्र है और न ही मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ी कोई स्पष्ट गाइडलाइन। एक्सचेंजों से अपेक्षा की जाती है कि वे सामान्य वित्तीय नियमों का पालन करें, लेकिन कोई समान या अनिवार्य अनुपालन प्रणाली नहीं है।

निष्कर्ष:

सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी भारत के लिए यह सोचने का एक ज़रूरी अवसर है कि वह अपनी क्रिप्टोकरेंसी नीति की खामियों को कैसे दूर करे। जब पूरी दुनिया में बिटकॉइन और डिजिटल संपत्तियाँ लोकप्रिय हो रही हैं, तब भारत को यह तय करना होगा कि वह इस तकनीक का लाभ कैसे उठाए और साथ ही आर्थिक अपराधों से सुरक्षा कैसे सुनिश्चित करे।