सन्दर्भ:
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड सरकार को पश्चिम सिंहभूम जिले के सारंडा जंगलों के 126 कम्पार्टमेंट्स को तीन महीने के भीतर वन्यजीव अभयारण्य के रूप में अधिसूचित करने का निर्देश दिया है ।
अभयारण्य के विषय में:
सारंडा जंगल भारत के सबसे घने साल वनों में से एक है, जो सिंहभूम–कोल्हान क्षेत्र में विस्तृत है और पारिस्थितिक रूप से अत्यंत समृद्ध माना जाता है। यहाँ एशियाई हाथी, तेंदुए, सांभर, भौंकने वाला हिरन, अनेक दुर्लभ सरीसृप व पक्षी पाए जाते हैं, साथ ही कई बारहमासी नदियाँ और जल–स्रोत भी हैं। यह क्षेत्र हो, मुंडा और उराँव जैसी जनजातियों का घर भी है, जिनकी आजीविका, परंपराएँ और संस्कृति इस जंगल से गहराई से जुड़ी हुई हैं।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य निर्देश:
1. अभयारण्य की अधिसूचना
· झारखंड को 1968 की बिहार सरकार की अधिसूचना में बताए गए 126 कम्पार्टमेंट्स को वन्यजीव अभयारण्य घोषित करना होगा।
2. छह कम्पार्टमेंट्स को बाहर रखने की अनुमति
· KP-2, KP-10, KP-11, KP-12, KP-13 और KP-14 को बाहर रखा जा सकता है क्योंकि ये खनन प्रबंधन योजना के तहत आते हैं।
3. खनन पर प्रतिबंध
· अभयारण्य की सीमा से 1 किमी के दायरे में किसी भी तरह का खनन नहीं किया जा सकेगा।
4. जनजातीय अधिकारों की सुरक्षा
· कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वन अधिकार अधिनियम (FRA) के तहत मिलने वाले अधिकार अभयारण्य बनने के बाद भी पूरी तरह सुरक्षित रहेंगे।
5. जन-जागरूकता का निर्देश
· राज्य सरकार को यह व्यापक रूप से बताना होगा कि अभयारण्य घोषित होने से लोगों के घर, स्कूल, सड़कें या सामुदायिक अधिकार प्रभावित नहीं होंगे।
कानूनी पहलू:
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972
· धारा 26A: राज्य सरकारें वन्यजीव अभयारण्य घोषित कर सकती हैं।
· धारा 24(2)(c): वनवासियों के अधिकार दर्ज और सुरक्षित रखने का प्रावधान।
वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006
· समुदाय और व्यक्ति के वन अधिकारों को मान्यता देता है।
· कोर्ट ने कहा कि FRA अधिकार अभयारण्य के अंदर भी बने रहेंगे।
संविधान के प्रावधान
· अनुच्छेद 48A: पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना राज्य का कर्तव्य।
· अनुच्छेद 51A(g): नागरिकों का दायित्व—वनों और वन्यजीवों की रक्षा।
महत्त्व और प्रभाव:
1. पर्यावरण संरक्षण
· अभयारण्य का दर्जा मिलने से साल वनों, वन्यजीव गलियारों और पूरे पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा और अधिक मजबूत होगी।
2. खनन पर नियंत्रण
· सारंडा में वर्षों से चल रहे लौह अयस्क खनन पर प्रभावी नियंत्रण होगा।
· अभयारण्य सीमा से 1 किमी तक खनन पर रोक पर्यावरणीय नुकसान को काफी हद तक कम करेगी।
3. अधिकार–आधारित संरक्षण
· यह फैसला स्पष्ट करता है कि जंगल संरक्षण और जनजातीय समुदायों के अधिकार दोनों को संतुलित तरीके से साथ–साथ सुरक्षित रखा जा सकता है।
1968 की अधिसूचना:
· 1968 में तत्कालीन बिहार सरकार ने 31,468.25 हेक्टेयर क्षेत्र को सारंडा गेम सैंक्चुअरी के रूप में अधिसूचित किया था।
· सुप्रीम कोर्ट ने इसी पुरानी अधिसूचना को आधार मानते हुए क्षेत्र की संरक्षित स्थिति को पुनः स्थापित करने और इसे वन्यजीव अभयारण्य के रूप में बहाल करने का निर्देश दिया।
निष्कर्ष:
सारंडा जंगल को वन्यजीव अभयारण्य घोषित करने का सुप्रीम कोर्ट का निर्देश भारत के पर्यावरण संरक्षण में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह भारत के महत्वपूर्ण साल वनों को बचाने में मदद करेगा और साथ ही यह सुनिश्चित करेगा कि जनजातीय समुदायों के FRA अधिकार पूरी तरह सुरक्षित रहें।
