संदर्भ:
हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक अहम आदेश जारी करते हुए सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि वे मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के संबंधित प्रावधानों के तहत छह महीने के भीतर आवश्यक नियम तैयार कर उन्हें अधिसूचित करें।
पृष्ठभूमि:
यह कदम एक जनहित याचिका (PIL) के जवाब में लिया गया, जिसमें भारत में सड़क हादसों में होने वाली भयावह मौतों और राज्य अधिकारियों की निष्क्रियता पर प्रकाश डाला गया था। 2023 के सरकारी आंकड़ों के अनुसार:
· सड़क दुर्घटनाओं में 35,000 से अधिक पैदल यात्री मारे गए।
· हेलमेट न पहनने के कारण 54,000 से अधिक दोपहिया वाहन चालक और उनके साथी मारे गए।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि वे मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 138(1A) और 210-D के तहत छह महीने के भीतर व्यापक सड़क सुरक्षा नियम बनाएँ। इन नियमों में निम्नलिखित पहलुओं को शामिल करना अनिवार्य होगा:
· हेलमेट का पालन (सवार और पीछे बैठने वाले दोनों के लिए)
· लेन अनुशासन और गलत लेन में वाहन चलाने पर रोक
· पैदल यात्री सुरक्षा और क्रॉसिंग पर सुरक्षा उपाय
· चमकदार एलईडी हेडलाइट्स का नियंत्रण
· लाल-नीली स्ट्रोब (strobe) लाइट और हॉर्न के अनधिकृत उपयोग पर प्रतिबंध
न्यायालय ने विशेष रूप से पैदल यात्रियों और दोपहिया वाहन चालकों में होने वाली मौतों को रोकने की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया।
महत्व:
-
- मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम, 2019 ने सड़क सुरक्षा में सुधार के लिए कई प्रावधान लाए, जिनमें धारा 138(1A), 210C, 210D आदि शामिल हैं। लेकिन कई राज्यों ने अब तक इनके लिए नियम नहीं बनाए। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश इन कानूनी प्रावधानों को लागू करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
- पैदल यात्रियों की सुरक्षा का एक संवैधानिक पक्ष भी जुड़ा हुआ है। अनुच्छेद 21 के तहत 'जीवन के अधिकार' की व्याख्या करते हुए न्यायालयों ने यह स्पष्ट किया है कि सुरक्षित आवागमन, सुरक्षित फुटपाथ और सुरक्षित पैदल क्रॉसिंग भी इस अधिकार का हिस्सा हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश इसी न्यायिक दृष्टिकोण को आगे बढ़ाता है, जिसमें अधिकारों को केवल शब्दों तक सीमित न रखकर उन्हें वास्तविक अवसंरचना और प्रभावी नियमों के रूप में लागू करने की मांग की गई है।
- मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम, 2019 ने सड़क सुरक्षा में सुधार के लिए कई प्रावधान लाए, जिनमें धारा 138(1A), 210C, 210D आदि शामिल हैं। लेकिन कई राज्यों ने अब तक इनके लिए नियम नहीं बनाए। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश इन कानूनी प्रावधानों को लागू करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
चुनौतियाँ:
भारत के विभिन्न राज्यों में सड़क अवसंरचना, मौजूदा कानूनी ढांचा, प्रशासनिक क्षमता और बजट संसाधन एक समान नहीं हैं। ऐसे में भले ही सुप्रीम कोर्ट ने सभी को एक जैसी समयसीमा दी है, लेकिन वास्तविक क्रियान्वयन की गति और गुणवत्ता राज्यों के अनुसार अलग-अलग हो सकती है।
· समन्वय की चुनौती: धारा 138(1A) के अंतर्गत राष्ट्रीय राजमार्गों से जुड़े नियमों के निर्माण और क्रियान्वयन के लिए नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) के साथ समन्वय अनिवार्य होगा।
· अधिकार क्षेत्र में टकराव: सड़क सुरक्षा से जुड़े कामों में कई एजेंसियों “नगर निगम, शहरी स्थानीय निकाय, राज्य लोक निर्माण विभाग (PWD), यातायात पुलिस और सड़क प्राधिकरण” की भूमिका होती है। इन सभी के बीच भूमिकाओं का स्पष्ट निर्धारण और कार्य विभाजन न होने पर जिम्मेदारियों में भ्रम और काम में देरी हो सकती है।
परिणाम/प्रभाव:
· यदि इस निर्देश को सही तरीके से लागू किया जाए, तो यह आदेश सबसे कमजोर सड़क उपयोगकर्ताओं जैसे पैदल यात्री, साइकिल चालक, दिव्यांगों के बीच दुर्घटनाओं और चोटों को उल्लेखनीय रूप से कम कर सकता है।
· यह अधिक सुरक्षित, पैदल-हितैषी और समावेशी शहरों के निर्माण को प्रोत्साहित करेगा, जिससे शहरी डिजाइन और सार्वजनिक स्थानों की योजना अधिक मानव-केंद्रित हो सकेगी।
· कानूनी जवाबदेही में वृद्धि होगी, क्योंकि जो राज्य या केंद्र शासित प्रदेश समय पर नियम नहीं बनाएंगे, उन्हें न्यायिक हस्तक्षेप और अधिक सख्त समीक्षा का सामना करना पड़ सकता है।
· यह आदेश सड़क सुरक्षा संबंधी कानूनों के कार्यान्वयन पर न्यायपालिका की निगरानी और सक्रिय भूमिका के एक सशक्त उदाहरण के रूप में भी देखा जा सकता है।
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश भारत की सड़क सुरक्षा यात्रा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह कानूनी प्रावधानों और वास्तविक नियमावली और अवसंरचना के बीच के अंतर को कम करता है, जो कमजोर सड़क उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा करती है। हालांकि, नियम बनाना केवल पहला कदम है; असली चुनौती उनकी सही तरीके से लागू करने, प्रवर्तन करने और यह सुनिश्चित करने में होगी कि भारत की सड़कें सभी के लिए सुरक्षित और समावेशी बनें।