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Blog / 26 May 2025

सुप्रीम कोर्ट ने मातृत्व अवकाश को महिलाओं का मूल प्रजनन अधिकार घोषित किया

सन्दर्भ:

सुप्रीम कोर्ट ने मातृत्व अवकाश से संबंधित एक ऐतिहासिक निर्णय में कहा है कि यह न केवल एक कर्मचारी सुविधा है, बल्कि महिलाओं के मातृत्व लाभ और प्रजनन अधिकारों से गहराई से जुड़ा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के उस निर्णय को रद्द कर दिया, जिसमें एक सरकारी शिक्षिका को तीसरे बच्चे के लिए मातृत्व अवकाश देने से इनकार किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मातृत्व अवकाश महिला की गरिमा, स्वास्थ्य और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अभिन्न हिस्सा है, जिसे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित किया गया है।

निर्णय की मुख्य बातें:

1. प्रजनन अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता: सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मातृत्व अवकाश, मातृत्व लाभों का अभिन्न अंग है और यह महिलाओं के प्रजनन अधिकारों से गहराई से जुड़ा हुआ है। ये अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के रूप में संरक्षित हैं। कोर्ट ने सुचिता श्रीवास्तव बनाम चंडीगढ़ प्रशासन (2009) के फैसले का उल्लेख करते हुए कहा कि किसी महिला को अपने प्रजनन संबंधी निर्णय स्वयं लेने का अधिकार उसकी गरिमा और आत्मनिर्णय (स्वायत्तता) का हिस्सा है।

2. मानवाधिकारों का दृष्टिकोण: सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों से जोड़ते हुए कहा कि प्रजनन अधिकार, सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणा पत्र (UDHR) के तहत मान्यता प्राप्त हैं। इन अधिकारों में स्वास्थ्य, निजता, गरिमा और लैंगिक समानता शामिल हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि भारत की संवैधानिक प्रतिबद्धताएँ अंतरराष्ट्रीय दायित्वों से भी जुड़ी हुई हैं।

3. सामाजिक न्याय और लैंगिक समानता: न्यायालय ने माना कि महिलाएं कार्यस्थल पर कर्मचारी के रूप में और घर पर देखभालकर्ता के रूप में दोहरी भूमिका निभाती हैं। इस संदर्भ में, मातृत्व अवकाश का प्रावधान सामाजिक न्याय को सुदृढ़ करता है। इस अधिकार से वंचित करना न केवल किसी महिला के अधिकारों का हनन है, बल्कि यह कार्यस्थल पर समानता और लैंगिक संवेदनशीलता को भी प्रभावित करता है।

4. नीति और अधिकारों के बीच संतुलन: सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया कि जनसंख्या नियंत्रण एक वैध और आवश्यक उद्देश्य हो सकता है। हालांकि, यह उद्देश्य किसी भी स्थिति में महिलाओं के मौलिक अधिकारों पर हावी नहीं हो सकता। राज्य को चाहिए कि वह नीतियों और अधिकारों के बीच ऐसा संतुलन बनाए, जिससे न्याय, समानता और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा हो सके।

फैसले के प्रभाव:

  • मातृत्व अवकाश की स्वीकृति: सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को निर्देश दिया कि वह संबंधित शिक्षिका को तमिलनाडु सेवा नियमों के तहत, विशेष रूप से FR 101(a) के अनुसार, मातृत्व अवकाश प्रदान करे।
  • मातृत्व लाभों का शीघ्र वितरण: कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि राज्य सरकार शिक्षिका को सभी संबंधित मातृत्व लाभ दो माह की अवधि के भीतर उपलब्ध कराए, ताकि उसे समय पर आर्थिक और सामाजिक समर्थन प्राप्त हो सके।

मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के बारे में:

मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 (जिसमें 2017 में संशोधन किया गया), मातृत्व अवधि के दौरान कार्यरत महिलाओं को नौकरी की सुरक्षा और आर्थिक सहायता सुनिश्चित करता है। इसका उद्देश्य कार्यस्थलों पर महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करना और मातृत्व के समय उन्हें आवश्यक संरक्षण प्रदान करना है।

  • लागू होने की सीमा: यह अधिनियम उन सभी फैक्ट्रियों, खदानों, बागानों, सरकारी कार्यालयों और निजी प्रतिष्ठानों पर लागू होता है जहाँ 10 या अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं।
  • वेतन सहित मातृत्व अवकाश: इस अधिनियम के तहत, जिन महिलाओं के दो से कम जीवित बच्चे हैं, उन्हें 26 सप्ताह तक का पूर्ण वेतन सहित मातृत्व अवकाश प्रदान किया जाता है। वहीं, जिनके दो या अधिक जीवित संतानें हैं, उन्हें 12 सप्ताह का मातृत्व अवकाश प्राप्त होता है।
  • ईएसआई अधिनियम के अंतर्गत लाभ: जो महिलाएँ कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 (ESI Act) के अंतर्गत आती हैं, उन्हें मातृत्व लाभ उसी अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार प्रदान किए जाते हैं।

निष्कर्ष:

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय महिलाओं के प्रजनन अधिकारों की स्वतंत्रता को संविधानिक और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों से जोड़ता है। यह सुनिश्चित करता है कि मातृत्व अवकाश कोई रियायत नहीं, बल्कि एक कानूनी और नैतिक अधिकार है, जो कामकाजी महिलाओं की गरिमा, स्वास्थ्य और समानता के लिए अत्यंत आवश्यक है।