संदर्भ:
हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (NBWL) ने सुंदरबन टाइगर रिज़र्व (STR) के विस्तार के पश्चिम बंगाल सरकार के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी है। विस्तार के बाद, सुंदरबन टाइगर रिज़र्व (STR) का क्षेत्रफल 1,044 वर्ग किलोमीटर बढ़ जाएगा, जिससे यह देश का दूसरा सबसे बड़ा टाइगर रिज़र्व बन जाएगा। वर्तमान में सातवें स्थान पर स्थित STR, क्षेत्रफल की दृष्टि से केवल नागार्जुनसागर-श्रीशैलम टाइगर रिज़र्व (आंध्र प्रदेश) से छोटा रहेगा।
बाघ अभयारण्य घोषित करने या उसमें परिवर्तन करने की प्रक्रिया:
· बाघ अभयारण्यों का प्रबंधन भारत में वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के प्रावधानों के अंतर्गत किया जाता है। अधिनियम की धारा 38V के अनुसार, किसी क्षेत्र को बाघ अभयारण्य घोषित करने की प्रक्रिया में राज्य सरकार द्वारा प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाता है, जिसके बाद राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) द्वारा सैद्धांतिक अनुमोदन दिया जाता है। तत्पश्चात, NTCA द्वारा आवश्यक परीक्षण और मूल्यांकन कर राज्य सरकार को अनुशंसा भेजी जाती है, जिसके आधार पर राज्य सरकार उस क्षेत्र को अधिसूचित करती है।
· वहीं, अधिनियम की धारा 38W(1) के तहत, किसी बाघ अभयारण्य की सीमा में परिवर्तन के लिए NTCA तथा राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (NBWL) की पूर्व स्वीकृति आवश्यक होती है। इस प्रकार का कोई भी प्रस्ताव केवल राज्य सरकार द्वारा ही प्रस्तुत किया जा सकता है, तथा अंतिम निर्णय NBWL द्वारा लिया जाता है।
सुंदरबन बाघ अभयारण्य (STR) के बारे में:
· सुंदरबन टाइगर रिज़र्व पश्चिम बंगाल के तटीय जिलों में स्थित है और यह दुनिया का एकमात्र मैंग्रोव आवास है जहाँ बाघों की उल्लेखनीय उपस्थिति दर्ज की गई है। इसे 1973 में ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ के तहत स्थापित किया गया था। यह क्षेत्र यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध है तथा इसका एक भाग सुंदरबन बायोस्फीयर रिज़र्व में भी सम्मिलित है।
· पारिस्थितिक दृष्टि से, सुंदरबन क्षेत्र चक्रवातों से सुरक्षा, लुप्तप्राय प्रजातियों के लिए सुरक्षित आवास और समृद्ध मैंग्रोव जैव विविधता के लिए जाना जाता है। इसकी भौगोलिक सीमाएँ स्पष्ट रूप से परिभाषित हैं, पूर्व में यह बांग्लादेश की अंतर्राष्ट्रीय सीमा से जुड़ा है (मुख्य नदियाँ: हरिनभंगा, रायमंगल, कालिंदी), दक्षिण में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में मतला नदी, तथा उत्तर-पश्चिम में बिद्या और गोमदी नदियाँ इसकी सीमाएँ निर्धारित करती हैं।
विस्तार का महत्व:
· प्रस्तावित विस्तार का उद्देश्य महत्वपूर्ण बाघ आवासों को संरक्षित करना है। इससे बेहतर प्रबंधन संभव होगा और मानव-वन्यजीव संघर्ष में कमी आएगी। यह बाघों और अन्य प्रजातियों के आवागमन को भी बढ़ावा देगा। साथ ही, मैंग्रोव संरक्षण के ज़रिए जलवायु लचीलापन मजबूत होगा। यह कदम प्रोजेक्ट टाइगर और वैश्विक बाघ संरक्षण प्रयासों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
भारत में बाघ अभयारण्य:
· भारत ने अपनी घटती बाघ आबादी की रक्षा के लिए 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर शुरू किया था। तब से, बाघ अभयारण्य भारत के वन्यजीव संरक्षण प्रयासों का केंद्र बन गए हैं। ये अभ्यारण्य वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के अंतर्गत राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) द्वारा शासित हैं। मार्च 2025 तक, भारत में 58 बाघ अभ्यारण्य हैं।
बाघ अभ्यारण्य की संरचना:
· प्रत्येक बाघ अभयारण्य में एक मुख्य क्षेत्र होता है, जिसे आमतौर पर राष्ट्रीय उद्यान या वन्यजीव अभयारण्य कहा जाता है, साथ ही एक बफर ज़ोन भी होता है, जिसमें वन और गैर-वन भूमि दोनों शामिल हो सकती हैं। जहाँ मुख्य क्षेत्र बाघों और सह-शिकारियों के लिए सुरक्षा प्रदान करता है, वहीं बफर ज़ोन में स्थायी मानवीय गतिविधियाँ अनुमति प्राप्त होती हैं, जो संरक्षण और स्थानीय समुदाय की आवश्यकताओं के बीच संतुलन बनाए रखती हैं।
बाघ जनसंख्या का रुझान:
· 2006 में भारत में केवल 1,411 बाघ थे, जोकि 2022 तक बढ़कर 3,682 हो गए हैं। यह वैश्विक जंगली बाघ आबादी का लगभग 75% है। इस वृद्धि का श्रेय कड़े सुरक्षा उपायों, वैज्ञानिक निगरानी और बाघ परिदृश्यों में समुदाय की सक्रिय भागीदारी को जाता है।
निष्कर्ष:
सुंदरबन बाघ अभयारण्य का विस्तार न केवल क्षेत्रफल के लिहाज से, बल्कि पारिस्थितिक और रणनीतिक दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण संरक्षण प्रयास है। बड़े और जुड़े हुए आवास के निर्माण से भारत बाघ संरक्षण में अपनी अग्रणी भूमिका को सुदृढ़ करता है, साथ ही यह देश के सबसे नाजुक पारिस्थितिक क्षेत्रों में जलवायु लचीलापन और तटीय संरक्षण को भी बढ़ावा देता है।