संदर्भ:
हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि उप-सहारा अफ्रीका ने औद्योगिक युग पूर्व की अवधि की तुलना में अपनी लगभग 24% जैव-विविधता खो दी है। जैव-विविधता पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं, सतत विकास और मानव कल्याण के लिए अत्यंत आवश्यक है। अध्ययन में जैव विविधता अक्षुण्णता सूचकांक (Biodiversity Intactness Index (BII)) तथा 200 अफ्रीकी जैव-विविधता विशेषज्ञों के प्रत्यक्ष इनपुट का उपयोग कर क्षेत्रीय स्तर पर व्यापक मूल्यांकन किया गया।
1. कुल जैव-विविधता की स्थिति
· उप-सहारा अफ्रीका का अनुमानित BII लगभग 76% है।
· स्थानीय कशेरुकी जीवों एवं वनस्पतियों की आबादी अपने औद्योगिक युग पूर्व के स्तर की तुलना में 76% तक घट चुकी है।
· नुकसान अलग-अलग समूहों में अलग दिखाई देता है:
o शाकीय पौधों में कमी 20% से कम।
o कुछ बड़े स्तनधारियों में कमी 80% तक।
2. देश के अनुसार स्थिति:
· सबसे कम अच्छी स्थिति: रवांडा और नाइजीरिया (BII 55% से कम)।
· सबसे अच्छी स्थिति: नामीबिया और बोत्सवाना (BII 85% से अधिक)।
· मध्य अफ्रीकी देशों में लगातार नमी वाले घने जंगलों के कारण जैव-विविधता अपेक्षाकृत बेहतर बनी रहती है।
· पश्चिम अफ्रीका में खेती के विस्तार और अत्यधिक कटाई से जंगल और सवाना का क्षरण अधिक, जिससे जैव-विविधता की स्थिति कमज़ोर है।

3. पारिस्थितिक तंत्र से जुड़े प्रमुख कारण
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- घास के मैदान और फिनबोस: यहाँ जैव-विविधता का नुकसान मुख्य रूप से खेती के लिए भूमि-परिवर्तन के कारण होता है।
- जंगल: खेती से इतर मानवीय गतिविधियों का प्रभाव यहाँ अधिक नुकसान पहुँचाता है।
- सवाना क्षेत्रों पर खेती और गैर-खेती दोनों तरह के दबाव देखे जाते हैं।
- उच्च उत्पादकता वाली कृषि भूमि अपेक्षाकृत कम सुरक्षित रहती है, जबकि कम उत्पादकता वाली छोटी खेती की भूमि में सीमित सुरक्षा बची रहती है जो यह दिखाता है कि गहन खेती का पर्यावरणीय प्रभाव अधिक होता है।
- घास के मैदान और फिनबोस: यहाँ जैव-विविधता का नुकसान मुख्य रूप से खेती के लिए भूमि-परिवर्तन के कारण होता है।
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4. मानव निर्भरता और संरक्षण की आवश्यकता
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- बची हुई 80% से अधिक जैव-विविधता, असुरक्षित प्राकृतिक जंगलों और चरागाहों में पाई जाती है, जहाँ मानव और वन्यजीव एक साथ रहते हैं।
- ये क्षेत्र 500 मिलियन से अधिक लोगों की आजीविका का आधार हैं, जिससे स्पष्ट है कि संरक्षण के लिए स्थानीय समुदायों की भागीदारी वाली टिकाऊ रणनीतियों की आवश्यकता है।
- बची हुई 80% से अधिक जैव-विविधता, असुरक्षित प्राकृतिक जंगलों और चरागाहों में पाई जाती है, जहाँ मानव और वन्यजीव एक साथ रहते हैं।
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5. भविष्य की संभावित स्थिति:
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- अनुमान है कि 2050 तक खेती के लिए उपयोग होने वाली भूमि दोगुनी और अनाज की मांग तीन गुना हो सकती है।
- कृषि प्रणालियों में बदलाव से जैव-विविधता पर अतिरिक्त दबाव पड़ने की संभावना है।
- कुल कृषि भूमि का 75% हिस्सा छोटे किसानों के पास है, जिनकी उत्पादकता कम है। यह स्थिति खाद्य सुरक्षा और संरक्षण दोनों के लिए समानांतर चुनौतियाँ पैदा करती है।
- अनुमान है कि 2050 तक खेती के लिए उपयोग होने वाली भूमि दोगुनी और अनाज की मांग तीन गुना हो सकती है।
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महत्व और उपयोगिता:
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- यह अध्ययन नीति-निर्माताओं के लिए तथ्य-आधारित और उपयोगी डेटा उपलब्ध कराता है।
- यह विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों के लिए विशेष संरक्षण रणनीतियों की आवश्यकता पर ज़ोर देता है।
- कृषि विस्तार और जैव-विविधता संरक्षण के बीच संतुलन बनाने की जरूरत को रेखांकित करता है।
- यह स्पष्ट करता है कि कार्यात्मक प्राकृतिक क्षेत्र जैसे जंगल और चरागाह की सुरक्षा सतत विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है।
- यह अध्ययन नीति-निर्माताओं के लिए तथ्य-आधारित और उपयोगी डेटा उपलब्ध कराता है।
सब-सहारा अफ्रीका के विषय में:
सब-सहारा अफ्रीका वह क्षेत्र है जो सहारा रेगिस्तान के दक्षिण में स्थित है। यह एक विस्तृत और अत्यंत विविध क्षेत्र है, जिसमें 48–49 देश, 1,000 से अधिक भाषाएँ और 1.1 बिलियन से अधिक आबादी शामिल है।
निष्कर्ष:
सब-सहारा अफ्रीका में जैव-विविधता का नुकसान देश और पारिस्थितिक तंत्र के अनुसार अलग-अलग है और इसका मुख्य कारण मानवीय गतिविधियाँ हैं। प्रभावी संरक्षण के लिए ऐसे समन्वित और संतुलित उपाय आवश्यक हैं, जो खाद्य सुरक्षा, स्थानीय समुदायों की ज़रूरतों, और पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा को साथ लेकर चलें विशेषकर वहाँ, जहाँ जैव-विविधता और लोगों की आजीविका आपस में गहराई से जुड़ी हुई है।
