संदर्भ:
अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर टार्डीग्रेड्स (Tardigrades) पर एक विशेष प्रयोग करेंगे।
इस प्रयोग के उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
• अंतरिक्ष में टार्डीग्रेड्स के डीएनए मरम्मत के तरीकों की पहचान करना।
• शून्य गुरुत्वाकर्षण में इनकी प्रजनन क्षमता को समझना।
• इनके लचीलेपन (resilience) से जुड़े जीन या आनुवंशिक संकेतकों की खोज करना।
• अंतरिक्ष यात्राओं पर जाने वाले अंतरिक्ष यात्रियों को सुरक्षित रखने की रणनीतियाँ विकसित करना।
• मानव ऊतकों (tissues) और अंगों को संरक्षित करने की नई तकनीकों को विकसित करने में मदद करना।
यह अध्ययन पृथ्वी पर भी कई उपयोगी क्षेत्रों में सहायक हो सकता है, जैसे – ऐसी फसलों का विकास जो चरम जलवायु में भी जीवित रह सकें या जैव-संरक्षण (biopreservation) का विकास करना।
- टार्डीग्रेड्स की खोज 1773 में जर्मन जीवविज्ञानी योहान ऑगस्ट एफ्राइम गोएज़ (Johann August Ephraim Goeze) ने की थी। काफी लंबे समय तक इन्हें बस एक दिलचस्प और विचित्र जीव के रूप में देखा गया। लेकिन हाल के वर्षों में वैज्ञानिकों ने इनकी असाधारण सहनशीलता को लेकर गहरी रुचि दिखाई है।
- साल 2007 में पहली बार करीब 3,000 टार्डीग्रेड्स को यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के फोटोन-एम3 मिशन के जरिए अंतरिक्ष में भेजा गया। उन्हें एक विशेष शुष्क अवस्था में रखा गया, जिसे ‘टन’ (tun) कहा जाता है।
जब ये टार्डीग्रेड्स पृथ्वी पर लौटे और उन्हें फिर से जलयुक्त (rehydrate) किया गया, तो वैज्ञानिकों ने देखा कि कई जीवित थे और कुछ ने तो अंतरिक्ष यात्रा के बाद प्रजनन भी किया। - हालाँकि अंतरिक्ष की पराबैंगनी (UV) किरणों से कुछ नुकसान ज़रूर हुआ, लेकिन यह प्रयोग यह साबित करने के लिए काफी था कि अंतरिक्ष का निर्वात (vacuum) टार्डीग्रेड्स के लिए जानलेवा नहीं है।
- इस प्रयोग के ज़रिए टार्डीग्रेड्स पहले ऐसे ज्ञात जीव बन गए जो सीधे अंतरिक्ष के संपर्क में आने के बाद भी जीवित लौटे और यही बात उन्हें अंतरिक्ष अनुसंधान का एक अनोखा और मूल्यवान विषय बनाती है।
टार्डीग्रेड्स इतने सहनशील कैसे होते हैं?
- टार्डीग्रेड्स की अद्भुत सहनशीलता का रहस्य उनकी एक विशेष अवस्था में छिपा है, जिसे क्रिप्टोबायोसिस कहा जाता है। इस अवस्था में उनका चयापचय (metabolism) लगभग पूरी तरह रुक जाता है और वे अपने शरीर का लगभग 95% पानी खो देते हैं। यह सूखे की स्थिति एन्हाइड्रोबायोसिस (anhydrobiosis) कहलाती है।
- इस दौरान टार्डीग्रेड्स अपने शरीर को सिकोड़कर एक बेहद सघन और निर्जलित रूप ले लेते हैं, जिसे ‘टन’ (tun) कहा जाता है।
- 'टन’ अवस्था में वे कुछ खास तरह के प्रोटीन बनाते हैं, जैसे कि CAHS (Cytoplasmic-Abundant Heat Soluble) प्रोटीन। ये प्रोटीन कोशिकाओं के अंदर एक जैल-जैसी परत बना देते हैं, जो उन्हें सूखने, तेज़ विकिरण और अत्यधिक तापमान से होने वाले नुकसान से बचाती है।
निष्कर्ष:
टार्डीग्रेड्स का अध्ययन वैज्ञानिकों को कई बड़े और गहरे सवालों के उत्तर खोजने में मदद करता है –
क्या जीवन एक ग्रह से दूसरे ग्रह तक यात्रा कर सकता है? क्या हम मनुष्यों को भी इतनी सहनशीलता प्रदान कर सकते हैं कि वे लंबी अंतरिक्ष यात्राएँ सुरक्षित पूरी कर सकें? क्या कहीं और ब्रह्मांड में, ऐसे ही चरम हालातों में भी जीवन संभव है?