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Blog / 20 Sep 2025

पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच सामरिक पारस्परिक रक्षा समझौता

संदर्भ
हाल ही में पाकिस्तान और सऊदी अरब ने रियाद में एक सामरिक पारस्परिक रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते का एक प्रावधान यह है कि किसी भी देश पर आक्रमण को दोनों देशों पर आक्रमण माना जाएगा। इस समझौते का उद्देश्य रक्षा सहयोग को बढ़ावा देना, संयुक्त प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करना और दोनों देशों के ऐतिहासिक साझेदारी को प्रगाढ़ करना है।

प्रमुख प्रावधान:

    • संयुक्त रक्षा दायित्व: मुख्य धारा का अर्थ है कि किसी एक हस्ताक्षरकर्ता पर हमला होने पर दूसरे पर भी रक्षा का दायित्व स्वतः लागू होगा।
    • सभी सैन्य साधन का उपयोग: समझौता आवश्यक सभी रक्षात्मक सैन्य साधनोंके प्रयोग की अनुमति देता है, जो खतरे की प्रकृति पर निर्भर करेगा। इससे व्याख्या की गुंजाइश काफी बढ़ जाती है।
    • स्पष्ट शत्रु का उल्लेख नहीं: समझौते में किसी भी देश का नाम नहीं लिया गया है कि किसका हमला इस धारा को सक्रिय करेगा। यह जानबूझकर रखी गई अस्पष्टता है, जिससे कूटनीतिक लचीलापन बना रहे।

Strategic Mutual Defence Agreement between Pakistan and Saudi Arabia

समझौते के पीछे सामरिक कारण:

परिवर्तनशील क्षेत्रीय व्यवस्था में प्रतिरोधक क्षमता

      • मध्य पूर्व में अमेरिकी सुरक्षा गारंटी पर बढ़ती अनिश्चितता। खाड़ी देश वैकल्पिक सुरक्षा साझेदारी की तलाश में हैं।
      • हाल की क्षेत्रीय तनावपूर्ण घटनाओं की प्रतिक्रिया, जैसे कतर में हमास पर इज़राइल का हमला, जिसने मुस्लिम देशों में सामूहिक सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ा दी।

मौजूदा अप्रत्यक्ष संबंधों को औपचारिक रूप देना

      • पाकिस्तान ने पहले से ही सऊदी अरब को प्रशिक्षण, परामर्श और रक्षा सहयोग प्रदान किया है, लेकिन बिना किसी औपचारिक संधि दायित्व के। यह समझौता उन अनौपचारिक व्यवस्थाओं को संधि स्तर पर स्थापित करता है।

अन्य शक्तियों को संदेश

      • ईरान, इज़राइल और वैश्विक शक्तियों की निगरानी में, यह समझौता संकेत देता है कि सऊदी अरब अपनी रक्षा साझेदारियों में विविधता ला रहा है।

धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक रिश्ते

      • समझौते को इस्लामी एकजुटता”, साझा रणनीतिक इतिहास और परस्पर हितों के आधार पर भी प्रस्तुत किया गया है।

क्षेत्रीय सुरक्षा एवं पड़ोसी शक्तियों पर प्रभाव:

भारत के लिए:

      • भारत ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि वह अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा पर इसके प्रभावों का अध्ययन कर रहा है।
      • भले ही समझौते में किसी प्रत्यक्ष शत्रु का नाम नहीं है, लेकिन भारत-पाकिस्तान तनाव को देखते हुए इसका अप्रत्यक्ष असर भारत पर पड़ सकता है। भारत को अपनी कूटनीतिक और रक्षा रणनीति को पुनः संतुलित करना पड़ सकता है।

खाड़ी और मध्य पूर्व के लिए:

      • इस क्षेत्र में, जो ऐतिहासिक रूप से अमेरिकी सुरक्षा पर निर्भर रहा है, पारस्परिक रक्षा संधियों की मिसाल स्थापित करता है।
      • एक नए सुरक्षा ढांचे को जन्म दे सकता है, जिसमें सऊदी-पाकिस्तान धुरी केंद्र में होगी।
      • यह सवाल उठाता है कि इज़राइल, ईरान और अमेरिका के हितों के साथ यह समझौता कैसे मेल खाएगा।

परमाणु आयाम:

      • पाकिस्तान एक परमाणु-संपन्न राष्ट्र है। कुछ बयानों में यह संकेत दिया गया है कि उसकी परमाणु प्रतिरोधक क्षमता रक्षा सहयोग में भूमिका निभा सकती है।
      • हालांकि, सार्वजनिक समझौते के पाठ में कहीं भी यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि सऊदी अरब की रक्षा के लिए परमाणु हथियारों का प्रयोग किया जाएगा। यह अब भी एक संवेदनशील अस्पष्टता बनी हुई है।

चुनौतियाँ और अस्पष्टताएँ:

    • परिधि में अस्पष्टता: संभावित आक्रमणकारी का नाम या खतरे की सीमा स्पष्ट न होने से इस धारा को व्यापक रूप से या विवादास्पद रूप से लागू किया जा सकता है।
    • कार्यान्वयन: संयुक्त रक्षा व्यवस्था जैसे सैनिकों की तैनाती, अड्डे, लॉजिस्टिक्स, परमाणु समन्वय आदि अभी स्पष्ट नहीं हैं।
    • अंतरराष्ट्रीय एवं कानूनी जोखिम: यदि परमाणु प्रतिरोधक क्षमता को साझा करने का पहलू स्पष्ट रूप से सामने आया तो वैश्विक अप्रसार मानकों के उल्लंघन की आशंका रहेगी।
    • सऊदी अरब के लिए कूटनीतिक संतुलन: सऊदी अरब भारत सहित अन्य क्षेत्रीय शक्तियों से भी मजबूत संबंध रखता है और उसे अपने वादों को संतुलित करना होगा ताकि अन्य देशों को अलग-थलग न करे।

निष्कर्ष:

पाकिस्तान-सऊदी अरब का पारस्परिक रक्षा समझौता क्षेत्रीय गठबंधनों और सुरक्षा समीकरणों के बदलते स्वरूप को रेखांकित करता है। जटिल भू-राजनीतिक परिस्थितियों के बीच यह समझौता क्षेत्रीय स्थिरता और वैश्विक सुरक्षा पर व्यापक असर डाल सकता है। भारत संतुलित रुख अपनाते हुए इन घटनाक्रमों पर करीबी नजर रखेगा और अपने राष्ट्रीय सुरक्षा हितों की रक्षा सुनिश्चित करेगा।