सन्दर्भ:
हाल ही में श्रीलंका की प्रधानमंत्री डॉ. हरिनी अमरासूरिया ने पदभार ग्रहण करने के बाद अपनी पहली आधिकारिक यात्रा के दौरान भारत आई।
यात्रा की प्रमुख विशेषताएँ:
- श्रीलंका की प्रधानमंत्री डॉ. हरिनी अमरासूरिया ने 1998 के मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को वर्तमान आर्थिक परिस्थितियों के अनुरूप अद्यतन करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि अब दोनों अर्थव्यवस्थाएँ काफी विविध हो चुकी हैं और व्यापार केवल वस्तुओं तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसमें सेवाएँ, प्रौद्योगिकी, डिजिटल वाणिज्य और हरित उद्योग भी शामिल हो गए हैं।
- भारत के प्रधानमंत्री के साथ बैठक के दौरान दोनों नेताओं ने शिक्षा, महिला सशक्तिकरण, नवाचार, विकास सहयोग और प्रौद्योगिकी जैसे विषयों पर चर्चा की। यह श्रीलंका की उस रुचि को दर्शाता है, जिसके तहत वह भारत के तीव्र सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन से सीखना चाहता है।
- दोनों देशों ने व्यापार, निवेश, पर्यटन और डिजिटल गवर्नेंस में सहयोग के नए अवसरों की भी तलाश की और विकास के लिए ज्ञान-आधारित तथा जन-केंद्रित दृष्टिकोण पर बल दिया।
- इस यात्रा के दौरान बुनियादी ढाँचा, शिक्षा एवं कौशल विकास, मछुआरों के कल्याण तथा विकास सहयोग से संबंधित कई समझौते और सहमति-पत्र (MoUs) हस्ताक्षरित या चर्चा के लिए प्रस्तुत किए गए।
यात्रा का महत्व:
1. पड़ोसी-प्रथम नीति का उदाहरण:
भारत के लिए श्रीलंका एक प्रमुख पड़ोसी है। यह यात्रा इस बात का संकेत है कि नई दिल्ली अपने पड़ोसी संबंधों को सार्थक रूप से सुदृढ़ करना चाहती है।
2. क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा में संतुलन:
श्रीलंका वर्तमान में कई बड़ी शक्तियों के साथ अपने संबंधों को साध रहा है। इस यात्रा ने भारत को रणनीतिक बढ़त बनाए रखने और श्रीलंका को अपनी साझेदारी के प्रति आश्वस्त करने का अवसर दिया है।
3. आर्थिक एवं सुरक्षा आयाम:
हाल के आर्थिक संकट से उबर रहे श्रीलंका की समुद्री स्थिति भारत के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। ऐसे में संपर्क, अवसंरचना और ऊर्जा सहयोग में साझेदारी दोनों देशों के लिए लाभकारी है।
मुख्य चुनौतियाँ:
1. मछुआरों और समुद्री चिंताएँ:
दोनों देशों के बीच एक स्थायी तनाव का विषय मछुआरों की भलाई और समुद्री सीमा विवाद रहा है। दोनों पक्षों ने इस पर सहयोगपूर्ण दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता स्वीकार की।
2. क्रियान्वयन की चुनौती:
जैसे कई उच्चस्तरीय दौरों में होता है, समझौतों को जमीनी स्तर पर लागू करना (विशेषकर अवसंरचना, निवेश, संपर्क परियोजनाओं में) वास्तविक परीक्षा होगी।
3. बाहरी दबाव और प्रतिस्पर्धी प्रभाव:
श्रीलंका अन्य वैश्विक शक्तियों के लिए भी एक रणनीतिक रुचि का क्षेत्र है। ऐसे में अपनी स्वायत्तता बनाए रखते हुए भारत के साथ संतुलन साधना एक संवेदनशील प्रक्रिया बनी रहेगी।
4. निरंतरता की स्थिरता:
ऐसी यात्राओं के बाद अक्सर उच्च अपेक्षाएँ बनती हैं, लेकिन अनुवर्ती कार्रवाई की कमी से गति कमजोर पड़ सकती है। दीर्घकालिक महत्व तभी रहेगा जब योजनाओं का निरंतर क्रियान्वयन और फॉलो-अप सुनिश्चित किया जाए।
निष्कर्ष:
अक्टूबर 2025 में श्रीलंकाई प्रधानमंत्री की भारत यात्रा दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों के लिए एक दूरदर्शी कदम है जिसमें शिक्षा, नवाचार और समुद्री सुरक्षा के साथ-साथ आर्थिक सहयोग पर भी बल दिया गया है। भारत और श्रीलंका संबंध की वास्तविक कसौटी निरंतर क्रियान्वयन और आपसी विश्वास के साथ निहित चुनौतियों के समाधान में निहित होगी।

