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Blog / 11 Jun 2025

श्रीलंका में पोसोन पोया उत्सव मनाया गया

संदर्भ:

हाल ही में श्रीलंका में पोसोन पोया का पर्व मनाया गया, जो द्वीप राष्ट्र के बौद्ध पंचांग में सबसे पवित्र तिथियों में से एक माना जाता है। यह उत्सव प्रतिवर्ष जून माह की पूर्णिमा को आयोजित किया जाता है और यह उस ऐतिहासिक घटना की स्मृति में मनाया जाता है जब लगभग 2000 वर्ष पूर्व बौद्ध धर्म का आगमन श्रीलंका में हुआ था। यह केवल एक धार्मिक परिवर्तन नहीं था, बल्कि एक गंभीर सांस्कृतिक और सभ्यतागत बदलाव था, जिसने श्रीलंका की राष्ट्रीय पहचान और सामाजिक संरचना को गहराई से प्रभावित किया।

पोसोन पोया का ऐतिहासिक महत्व:

·        पोसोन पोया पर्व उस ऐतिहासिक उपदेश की स्मृति में मनाया जाता है, जो भारतीय सम्राट अशोक महान के पुत्र अरहात महिंद्र ने 247 ईसा पूर्व में श्रीलंका के तत्कालीन राजा देवनांपियतिस्स को दिया था। यह उपदेश श्रीलंका की प्राचीन राजधानी अनुराधापुर के निकट स्थित एक पर्वतीय वन क्षेत्र मिहिंतले में दिया गया था।

·        यह घटना केवल धार्मिक संवाद भर नहीं थी, बल्कि इसने श्रीलंका और भारत के बीच गहरे सांस्कृतिक एवं राजनीतिक संबंधों की नींव रखी, जो आज तक मजबूत बने हुए हैं। इसी क्षण को वह ऐतिहासिक मोड़ माना जाता है जब सिंहली साम्राज्य ने बौद्ध धर्म को औपचारिक रूप से स्वीकार किया, जिससे देश के धार्मिक विश्वास, नैतिक मूल्यों और शासन व्यवस्था में व्यापक परिवर्तन आया।
तभी से बौद्ध धर्म श्रीलंकाई समाज का आध्यात्मिक और नैतिक आधार बना हुआ है, जो आज भी जनजीवन को दिशा देता है।

बौद्ध धर्म की उत्पत्ति:

बौद्ध धर्म की उत्पत्ति छठी शताब्दी ईसा पूर्व में भारत के गंगा के मैदानी क्षेत्रों में हुई थी। यह वह दौर था जब समाज में गहन असंतोष और सामाजिक असमानताओं के चलते वैकल्पिक धार्मिक विचारों की आवश्यकता महसूस की जा रही थी।
इसी पृष्ठभूमि में सिद्धार्थ गौतम  (जिन्हें बाद में बुद्ध कहा गया) ने बौद्ध धर्म की स्थापना की। यह धर्म वैदिक कर्मकांडों, ब्राह्मणवादी वर्चस्व और जाति-आधारित सामाजिक व्यवस्था के विरोध के रूप में सामने आया।

बौद्ध धर्म की सफलता के कारण:

  • जाति व्यवस्था और कर्मकांड की अस्वीकृति
  • व्यक्तिगत नैतिकता, ध्यान और करुणा पर जोर
  • व्यापारियों और अशोक जैसे शासकों से संरक्षण
  • स्थानीय भाषा पाली का प्रयोग
  • संघ (मठवासी समुदाय) की स्थापना
  • व्यापार मार्गों और मठों के माध्यम से फैला

बौद्ध धर्म के प्रमुख संप्रदाय या शाखाएं:

1.        थेरवाद (हीनयान): यह बौद्ध धर्म की सबसे प्राचीन शाखा मानी जाती है, जो व्यक्तिगत मुक्ति (निर्वाण) और भिक्षु अनुशासन पर केंद्रित है। यह संप्रदाय पालि ग्रंथों पर आधारित है और मुख्य रूप से श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड, लाओस और कंबोडिया में प्रचलित है।

2.      महायान: इस शाखा में बोधिसत्व मार्ग को प्रमुख माना जाता है, जिसमें सभी प्राणियों के कल्याण के लिए कार्य करना सर्वोच्च उद्देश्य होता है। यह सार्वभौमिक मुक्ति और दयाकरुणा पर विशेष बल देती है। महायान बौद्ध धर्म का प्रचार चीन, कोरिया, जापान और वियतनाम जैसे देशों में हुआ।

3.      वज्रयान: यह शाखा महायान की एक विकसित और विशिष्ट शाखा है, जो तांत्रिक साधनाओं, मंत्रों, मूर्तिपूजन, और गूढ़ अनुष्ठानों पर आधारित है। वज्रयान का प्रभाव विशेष रूप से तिब्बत, भूटान, मंगोलिया और नेपाल में देखा जाता है। इसे कभी-कभी "तांत्रिक बौद्ध धर्म" भी कहा जाता है।

4.     नवयान: यह आधुनिक युग में विकसित बौद्ध धर्म की एक शाखा है, जिसे डॉ. भीमराव अंबेडकर ने सामाजिक न्याय, समानता और मानव गरिमा के उद्देश्य से पुनर्परिभाषित किया। नवयान विशेष रूप से भारत के दलित समुदायों में प्रचलित हुआ और यह जातिवाद के विरुद्ध एक सशक्त वैचारिक विकल्प के रूप में उभरा।