होम > Blog

Blog / 29 Aug 2025

स्पेसएक्स का स्टारशिप रॉकेट

संदर्भ:

27 अगस्त 2025 को स्पेसएक्स (SpaceX) के स्टारशिप रॉकेट ने एक महत्वपूर्ण परीक्षण उड़ान को सफलतापूर्वक पूरा किया। यह दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे शक्तिशाली रॉकेट है। यह उड़ान इसकी दसवीं कोशिश थी और नवंबर 2024 के बाद पहली बार कोई मिशन सफल हुआ। इस परीक्षण में बूस्टर और अंतरिक्ष यान (स्पेसक्राफ्ट) दोनों ने अपेक्षा के अनुरूप प्रदर्शन किया और अंतरिक्ष यान सुरक्षित रूप से हिंद महासागर तक पहुँचा।

स्टारशिप रॉकेट के बारे में:

स्टारशिप एक दो-चरणों वाला, पूरी तरह पुन: प्रयोज्य (दोबारा इस्तेमाल किया जा सकने वाला) सुपर हेवी-लिफ्ट लॉन्च वाहन है, जिसे स्पेसएक्स ने विकसित किया है। इसका लक्ष्य धीरे-धीरे फाल्कन 9 और फाल्कन हेवी रॉकेट की जगह लेना है।

·         इसमें दो मुख्य हिस्से होते हैं, सुपर हेवी बूस्टर और स्टारशिप ऊपरी चरण, जिन्हें मीथेन-ईंधन से चलने वाले रैप्टर इंजन शक्ति प्रदान करते हैं।

·         स्टारशिप का उद्देश्य पहला ऐसा कक्षीय (ऑर्बिटल) रॉकेट बनना है, जो पूरी तरह पुन: प्रयोज्य हो और जिसकी पेलोड क्षमता अब तक की सबसे अधिक हो।

·         अगस्त 2025 तक, स्टारशिप 10 बार प्रक्षेपित किया जा चुका है, जिनमें से 5 उड़ानें सफल रही हैं। दोनों चरणों को इस प्रकार डिज़ाइन किया गया है कि वे सीधा ऊर्ध्वाधर (Vertically) उतरकर फिर से उपयोग में लाए जा सकें।

मुख्य विशेषताएँ:

·         दो-चरणीय पुन: प्रयोज्य प्रणालीइसमें स्टारशिप (ऊपरी चरण) और सुपर हेवी बूस्टर शामिल हैं।

·         थ्रस्ट क्षमता – 74 मेगान्यूटन, जो 33 रैप्टर इंजनों से उत्पन्न होती है। यह क्षमता नासा के SLS रॉकेट से लगभग दोगुनी है।

·         पेलोड क्षमतापृथ्वी की निचली कक्षा तक 150 टन तक; चन्द्रमा/मंगल तक 100 टन तक पेलोड क्षमता।

·         कक्षा में ईंधन भरने की सुविधालंबी दूरी और अधिक प्रभावी मिशनों को संभव बनाती है।

·         पुन: उपयोग की क्षमतालागत को काफी घटा देती है। अनुमान के अनुसार, मंगल मिशन की लागत केवल 50 मिलियन डॉलर तक हो सकती है।

SpaceX’s Starship Rocket

वैज्ञानिक और रणनीतिक महत्व:

·         भारी पेलोड वहन क्षमताबड़े आकार की दूरबीनें, विशाल चंद्र रोवर्स और चाँद/मंगल पर गहराई तक ड्रिल करने वाली मशीनें भेजने में सक्षम।

·         वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावानमूना वापसी (Sample Return) मिशनों को संभव बनाकर ग्रह विज्ञान और खगोलजीवविज्ञान (Astrobiology) में नए आयाम जोड़ेगा।

·         मानव अंतरिक्ष अभियानों में भूमिकानासा के आर्टेमिस कार्यक्रम और भविष्य के मंगल मानव मिशनों का प्रमुख आधार।

·         भूराजनीतिक प्रभाववैश्विक स्तर पर अंतरिक्ष सहयोग या प्रतिस्पर्धा को तेज कर सकता है, विशेषकर चीन जैसे देशों के चंद्र अभियानों की चुनौती के संदर्भ में।

चुनौतियाँ और नैतिक चिंताएँ:

  • मानवयुक्त मिशनों में सुरक्षा और विश्वसनीयता अभी तक साबित नहीं हुई।
  • पिछले असफल प्रयास और बड़ी संख्या में श्रमिकों की चोटें, तेज़ विकास की प्रक्रिया पर नैतिक सवाल उठाती हैं।
  • आलोचक इसे स्पेस शटल की तरह ही लागत में बढ़ोतरी और रखरखाव के बोझ से जोड़ते हैं।

हैवी रॉकेट के बारे में:

भारी (हेवी-लिफ्ट) और सुपर हेवी-लिफ्ट रॉकेट गहरे अंतरिक्ष अभियानों, उपग्रह प्रक्षेपण तथा भविष्य के मानवयुक्त चंद्र और मंगल मिशनों के लिए अनिवार्य माने जाते हैं। अमेरिकी मानकों के अनुसार, कोई भी सुपर हेवी-लिफ्ट रॉकेट वह होता है जो 50 मीट्रिक टन से अधिक पेलोड को निम्न पृथ्वी कक्षा (Low Earth Orbit) तक ले जाने में सक्षम हो। ऐसे रॉकेट किसी भी देश की तकनीकी प्रगति और रणनीतिक अंतरिक्ष क्षमता का प्रतीक होते हैं।

शीर्ष हैवी रॉकेट:

·         स्पेसएक्स स्टारशिप: अब तक का सबसे बड़ा और सबसे शक्तिशाली रॉकेट, जिसकी ऊँचाई लगभग 400 फीट है। इसे पूरी तरह पुन: प्रयोज्य बनाया गया है और यह चाँद, मंगल तथा उससे आगे की यात्राओं के लिए डिज़ाइन किया गया है।

·         नासा का SLS (स्पेस लॉन्च सिस्टम) : नासा के आर्टेमिस कार्यक्रम का हिस्सा, जो एक ही प्रक्षेपण में मानव और कार्गो को चाँद पर पहुँचाने में सक्षम है।

·         फाल्कन हेवी:  पहले का सबसे शक्तिशाली परिचालन रॉकेट, जो आज भी व्यावसायिक और वैज्ञानिक मिशनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

·         इसरो का GSLV Mk III (LVM3): भारत का सबसे शक्तिशाली रॉकेट, जो गगनयान मिशन और भारी उपग्रह प्रक्षेपण में केंद्रीय भूमिका निभा रहा है।

निष्कर्ष:

स्टारशिप की यह सफलता निजी अंतरिक्ष नवाचार की दिशा में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। भारत के लिए यह संकेत है कि IN-SPACe जैसे प्रयासों के माध्यम से सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों की साझेदारी को और सशक्त बनाया जाए, पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यानों में निवेश को बढ़ावा दिया जाए और व्यावसायिक अंतरिक्ष क्षेत्र का दायरा विस्तृत किया जाए। यह उपलब्धि इस तथ्य को भी रेखांकित करती है कि 21वीं सदी की भू-राजनीति में अंतरिक्ष की भूमिका न केवल वैज्ञानिक बल्कि रणनीतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।