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Blog / 30 Apr 2025

सिपरी (SIPRI) रिपोर्ट

संदर्भ:

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2024 में वैश्विक सैन्य व्यय रिकॉर्ड $2,718 अरब तक पहुँच गया, जो वास्तविक रूप से 9.4% की वृद्धि है जो शीत युद्ध के बाद से यह सबसे तेज़ सालाना वृद्धि है। शीर्ष पाँच व्यय करने वाले देश, अमेरिका, चीन, रूस, जर्मनी और भारत है जो  कुल वैश्विक रक्षा व्यय का 60% हिस्सा रखते हैं और संयुक्त रूप से $1,635 अरब व्यय किए।

वैश्विक सैन्य व्यय में भारत की स्थिति:

  • भारत दुनिया का पाँचवां सबसे बड़ा रक्षा व्यय करने वाला देश है। भारत से आगे अमेरिका ($997 अरब), चीन ($314 अरब), रूस ($149 अरब), और जर्मनी ($88 अरब) हैं। भारत का रक्षा व्यय 2024 में $86 अरब रहा, जो यूनाइटेड किंगडम ($82 अरब) और सऊदी अरब ($80 अरब) से थोड़ा अधिक है। इसके मुकाबले पाकिस्तान 29वें स्थान पर है और उसका रक्षा बजट $10 अरब है, जो भारत से लगभग नौ गुना कम है।
  • हालांकि यह व्यय काफ़ी बड़ा है, फिर भी भारत अपनी जीडीपी का केवल 1.9% रक्षा पर व्यय करता है, जिसे विशेषज्ञ भारत की सुरक्षा स्थितियों के मद्देनज़र अपर्याप्त मानते हैं। भारत को दो परमाणु शक्ति वाले पड़ोसियों, पाकिस्तान और चीन से दो मोर्चों पर खतरा है। विशेषज्ञों का मानना है कि विश्वसनीय प्रतिरोधक क्षमता और रणनीतिक तैयारी के लिए कम से कम 2.5% GDP रक्षा पर व्यय किया जाना चाहिए।

रणनीतिक संदर्भ और सीमा तनाव:

भारत एक कठिन स्थिति में है। उसके दो सक्रिय सीमाएं परमाणु शक्तियों के साथ हैं:
पाकिस्तान के साथनियंत्रण रेखा (LoC) पर युद्धविराम कमजोर हो गया है, विशेषकर पहलगाम नरसंहार जैसे हालिया आतंकी हमलों के बाद।
चीन के साथवास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर अभी भी 1 लाख से अधिक सैनिक तैनात हैं, भले ही पूर्वी लद्दाख में कुछ जगहों पर सेनाएं पीछे हटी हों।

भारत के रक्षा व्यय की संरचनात्मक सीमाएं:

भारत के ₹6.8 लाख करोड़ ($80 अरब) के रक्षा बजट (वित्त वर्ष 2025–26) में एक प्रमुख चिंता इसकी व्यय संरचना है। केवल 22% पूंजीगत खरीद के लिए है, जिससे नए हथियार और सैन्य प्लेटफॉर्म खरीदे जाते हैं। अधिकांश बजट वेतन, संचालन व्यय और 34 लाख से अधिक पूर्व सैनिकों और रक्षा कर्मचारियों की पेंशन में चला जाता है, जिससे सैन्य आधुनिकीकरण सीमित हो जाता है।

इसके अलावा, भारत की रक्षा उत्पादन क्षमता कमजोर है, जिससे वह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा हथियार आयातक बना हुआ है। दीर्घकालिक रणनीतिक योजना की कमी के कारण सैन्य क्षमताओं का भू-राजनीतिक लक्ष्यों से मेल नहीं बैठता।

इसका परिणाम यह हुआ है कि भारत के पास कई अहम क्षेत्रों में उपकरणों की कमी है, जैसे:
लड़ाकू विमान
पनडुब्बियाँ
हेलीकॉप्टर
वायु रक्षा प्रणालियाँ
एंटी-टैंक मिसाइलें
रात्रि युद्ध उपकरण

चीन और पाकिस्तान की वर्तमान क्षमताएँ:

जहाँ भारत को प्रणालीगत कमज़ोरियों का सामना करना पड़ रहा है, वहीं चीन तेजी से अपने सैन्य ढाँचे का आधुनिकीकरण कर रहा है। 2024 में चीन ने अपने रक्षा बजट में 7% की वृद्धि कर इसे $314 अरब कर दिया। यह लगातार 30वां वर्ष है जब चीन ने रक्षा व्यय बढ़ाया है। विश्लेषकों का मानना है कि चीन का वास्तविक रक्षा व्यय आधिकारिक आँकड़ों से भी अधिक हो सकता है।

2024 में चीन के सैन्य आधुनिकीकरण की प्रमुख बातें:
नई स्टेल्थ लड़ाकू विमानों की तैनाती
एडवांस ड्रोन और पानी के नीचे चलने वाले उपकरणों का विकास
परमाणु हथियारों के जखीरे में तेज़ी से विस्तार
अंतरिक्ष और साइबर बलों का गठन
स्पेस और साइबर युद्धक क्षमताओं को मजबूत करना

वहीं पाकिस्तान का रक्षा बजट तुलनात्मक रूप से कम है, फिर भी वह विशेष रूप से कश्मीर और नियंत्रण रेखा पर असममित और प्रॉक्सी युद्ध के माध्यम से भारत के लिए लगातार सुरक्षा चुनौती बना रहता है।

निष्कर्ष:
भारत की रक्षा चुनौतियाँ केवल बजट की नहीं, बल्कि संरचनात्मक और रणनीतिक भी हैं। वह भले ही शीर्ष रक्षा व्यय करने वाले देशों में हो, लेकिन व्यय की दिशा और संस्थागत कमियों के कारण उसका पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा। अपने शत्रुतापूर्ण पड़ोस, परमाणु तनाव और युद्ध तकनीकों में तेजी से हो रहे बदलावों को देखते हुए भारत को तत्काल आवश्यकता है कि वह:
पूंजीगत व्यय बढ़ाए
देशी रक्षा उत्पादन को प्रोत्साहन दे
दीर्घकालिक क्षमता निर्माण की योजना बनाए
रक्षा-GDP अनुपात को कम से कम 2.5% तक बढ़ाए

ऐसे व्यापक सुधारों के माध्यम से ही भारत अपनी संख्यात्मक ताकत को रणनीतिक प्रभावशीलता में बदल सकता है और एक अनिश्चित एवं सैन्यीकृत वैश्विक व्यवस्था में खुद को तैयार रख सकता है।