सन्दर्भ:
जनजातीय कार्य मंत्रालय (MoTA) ने औपचारिक रूप से भारत के महापंजीयक एवं जनगणना आयुक्त (RGI) से अनुरोध किया है कि आगामी जनगणना में विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (Particularly Vulnerable Tribal Groups - PVTGs) की पृथक गणना की जाए।
विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTGs) के बारे में:
विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह अनुसूचित जनजातियों (STs) की एक उपश्रेणी हैं, जिन्हें उनकी चरम संवेदनशीलता और सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन को ध्यान में रखते हुए पहचाना गया है। पीवीटीजी कई गहन समस्याओं का सामना करते हैं, जिनमें प्रमुख हैं:
- जनसंख्या में गिरावट या ठहराव: अनेक पीवीटीजी की जनसंख्या छोटी एवं घटती हुई है। स्वास्थ्य संकट, विस्थापन, और सांस्कृतिक क्षरण के कारण इनमें से कई समूहों की संख्या घट रही है।
- भौगोलिक एकांत: ये समूह दूरस्थ और अक्सर दुर्गम क्षेत्रों में बसे हुए हैं, जिसके कारण वे मुख्यधारा की अर्थव्यवस्था और समाज में सम्मिलित नहीं हो पाते।
- पूर्व- कृषि जीवनशैली: कुछ पीवीटीजी अब भी पारंपरिक निर्वाह पद्धतियों जैसे शिकार, संग्रहण और पशुपालन पर निर्भर हैं तथा कृषि में न्यूनतम या कोई भागीदारी नहीं रखते।
- आर्थिक पिछड़ापन: ये समूह सामान्यतः निर्धनता में जीवन यापन करते हैं और स्वास्थ्य, शिक्षा एवं आधारभूत ढाँचे जैसी बुनियादी सुविधाओं तक उनकी पहुँच सीमित होती है।
- न्यून साक्षरता दर: शैक्षिक अवसरों की कमी के कारण इनकी निरंतर सामाजिक-आर्थिक हाशिये पर स्थिति बनी रहती है।
पीवीटीजी श्रेणी की उत्पत्ति:
- पीवीटीजी की अवधारणा सबसे पहले 1960-61 की ढेबर आयोग (Dhebar Commission) की सिफारिशों से जुड़ी है, जिसके अध्यक्ष संसद सदस्य रहे यू. एन. ढेबर थे।
पाँचवीं पंचवर्षीय योजना (1974-1979) के दौरान 52 जनजातियों को प्रारंभ में प्रिमिटिव ट्राइबल ग्रुप्स (PTGs) के रूप में पहचाना गया। वर्ष 2006 में केंद्र सरकार ने इस सूची का विस्तार कर 75 समूहों तक कर दिया। वर्तमान में ये समूह 18 राज्यों और अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह में फैले हुए हैं।
पीवीटीजी की पृथक गणना का महत्व:
1. कल्याणकारी कार्यक्रमों का बेहतर लक्ष्यीकरण: सटीक आँकड़े प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महाअभियान (PM JANMAN) जैसे लक्षित कल्याण योजनाओं की बेहतर कार्यान्विति सुनिश्चित करेंगे।
2. संसाधनों का सटीक आवंटन: सही जनांकिकीय डाटा से सरकार संसाधनों का यथोचित आवंटन कर सकेगी और प्रत्येक पीवीटीजी की विशेष आवश्यकताओं के अनुसार कार्यक्रम तैयार कर पाएगी।
3. निगरानी और नीतियों का मूल्यांकन: पृथक गणना से नीति-निर्माताओं को पीवीटीजी की प्रगति का आकलन करने तथा नीतियों में आवश्यक संशोधन करने में सहायता मिलेगी।
4. सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण: अनेक पीवीटीजी पारिस्थितिकीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों में रहते हैं और विशिष्ट सांस्कृतिक परंपराओं को बनाए रखते हैं। सटीक गणना उनके आवास क्षेत्रों को शोषण से बचाने और उनकी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित रखने में सहायक होगी।
आँकड़ों में पीवीटीजी:
- प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महाअभियान (PM JANMAN) के अंतर्गत 2023 में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में लगभग 47.5 लाख लोग पीवीटीजी श्रेणी में आते हैं। इनका वितरण असमान है, जिसमें सबसे अधिक पीवीटीजी मध्य प्रदेश (13.22 लाख), इसके बाद महाराष्ट्र (6.7 लाख) एवं आंध्र प्रदेश (5.18 लाख) में पाए जाते हैं।
- 2011 की जनगणना के अनुसार 13 पीवीटीजी की जनसंख्या 1,000 से भी कम थी, जैसे– अंडमान एवं निकोबार की सेंटिनलीज़, जरावा और ओंगे। इनमें से कुछ जैसे सेंटिनलीज़ की जनसंख्या लगभग 15 व्यक्तियों तक सीमित है, जबकि अन्य जैसे मध्य प्रदेश की बैगा जनजाति की संख्या 4 लाख से अधिक है।
निष्कर्ष:
आगामी जनगणना में पीवीटीजी की पृथक गणना इन हाशिये पर खड़े समुदायों के कल्याण हेतु नितांत आवश्यक है। यह सटीक आँकड़े उपलब्ध कराएगी, जो प्रभावी नीतियों के निर्माण, संसाधनों के कुशल आवंटन, तथा उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति को सुनिश्चित करेंगे। इससे उनकी सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण होगा और उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार संभव होगा।