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Blog / 05 Dec 2025

रुपया नई गिरावट पर पहुँचा

सन्दर्भ:

भारतीय रुपया (₹) हाल ही में पहली बार प्रति अमेरिकी डॉलर 90 रुपए के स्तर से नीचे फिसल गया है, जो अब तक का ऐतिहासिक निम्न स्तर है। यह गिरावट वैश्विक वित्तीय दबावों, घरेलू व्यापक आर्थिक (मैक्रोइकॉनॉमिक) चुनौतियों और बदलते पूँजी प्रवाह के सम्मिलित प्रभाव को दर्शाती है।

पृष्ठभूमि:

    • रुपये का अवमूल्यन पूरे वर्ष लगातार जारी रहा, जिसका मुख्य कारण थामजबूत अमेरिकी डॉलर, कच्चे तेल के ऊँचे दाम, भू-राजनीतिक अनिश्चितताएँ तथा विदेशी पोर्टफोलियो निवेश में कमजोरी।
    • 90 रुपए का स्तर एक महत्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक और बाज़ार-संवेदनशील सीमा माना जाता है, जो स्टॉप-लॉस आदेशों, हेजिंग दबावों तथा सट्टा गतिविधियों को बढ़ावा देता है।

रुपये के अवमूल्यन के प्रमुख कारण:

1. वैश्विक कारक

श्रेणी

कारक

व्याख्या

वैश्विक कारक

मजबूत अमेरिकी डॉलर

अमेरिकी केंद्रीय बैंक की कड़ी मौद्रिक नीति और सुरक्षित परिसंपत्तियों की वैश्विक माँग से डॉलर और मजबूत हुआ।

भू-राजनीतिक तनाव

वैश्विक संघर्षों तथा आपूर्ति-शृंखला बाधाओं ने निवेशकों को डॉलर आधारित परिसंपत्तियों की ओर मोड़ा।

वैश्विक वस्तु-मूल्य दबाव

कच्चा तेल, खाद्य-सामग्री और धातुओं के बढ़ते दामों से भारत का आयात बिल बढ़ा, जिससे रुपये पर दबाव पड़ गया।

2. घरेलू कारक:

श्रेणी

कारक

व्याख्या

घरेलू कारक

उच्च आयात निर्भरता

भारत 85% कच्चा तेल आयात करता है, इसलिए तेल कीमतों में उतार-चढ़ाव का सीधा प्रभाव रुपये पर पड़ता है।

चालू खाता दबाव

महंगे आयातों के कारण चालू खाते का घाटा बढ़ा, जिससे रुपया कमजोर हुआ।

विदेशी पूँजी का प्रवाह कम होना

वैश्विक अनिश्चितता के कारण एफआईआई ने शेयर एवं ऋण बाज़ारों से पूँजी निकाली।

सीमित आरबीआई हस्तक्षेप

आरबीआई ने रुपये को प्राकृतिक रूप से समायोजित होने दिया और केवल अत्यधिक अस्थिरता को नियंत्रित करने हेतु हस्तक्षेप किया, किसी विशेष स्तर को बचाने के लिए नहीं।


रुपये के अवमूल्यन के आर्थिक प्रभाव

प्रभाव क्षेत्र

उप-घटक

विवरण

मुद्रास्फीति पर प्रभाव

पेट्रोलियम उत्पाद, खाद्य तेल, इलेक्ट्रॉनिक्स, उर्वरक

महंगे आयातों के कारण आयातित मुद्रास्फीति बढ़ती है, जिससे घरेलू मूल्य-स्तर में वृद्धि होती है।

बाह्य क्षेत्र पर प्रभाव

आयात

ऊँचे आयात मूल्य उपभोक्ताओं और उद्योगों दोनों पर भार बढ़ाते हैं।

निर्यात

निर्यातकों को रुपये में अधिक कमाई का अस्थायी लाभ मिलता है, परंतु यदि कच्चा माल आयातित हो तो लाभ घट जाता है।

व्यवसायों पर प्रभाव

विनिर्माण, सूक्ष्म-लघु-मध्यम उद्योग

जिन उद्योगों में आयातित सामग्री अधिक होती है, उनकी उत्पादन लागत बढ़ जाती है; एमएसएमई को विनिमय दर की अस्थिरता से अधिक कठिनाइयाँ होती हैं।

विद्यार्थी एवं यात्री

शिक्षा, यात्रा, प्रेषण

विदेशी शिक्षा, विदेश यात्रा तथा धन भेजना भारतीय परिवारों के लिए और महँगा हो जाता है।

बाज़ार भावना

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, पोर्टफोलियो निवेश, उधार लागत

निरंतर अवमूल्यन से निवेशकों का भरोसा कमजोर हो सकता है तथा भारत की बाहरी उधारी की लागत बढ़ सकती है।

 

उपलब्ध नीति-उपाय:

1. मौद्रिक नीति उपकरण

·         ब्याज दरों में संतुलित समायोजन

·         बाज़ार संचालनों के माध्यम से तरलता प्रबंधन

2. आरबीआई की विदेशी मुद्रा प्रबंधन रणनीति

·         विदेशी मुद्रा भंडार बेचकर अत्यधिक उतार-चढ़ाव को कम करना

·         भंडार क्षय से बचने हेतु रुपये को लचीले रूप से चलने देना

3. सरकारी उपाय

·         प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करना

·         निर्यात-उन्मुख क्षेत्रों को बढ़ावा देना

·         आयात निर्भरता कम करना (ऊर्जा संक्रमण, इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण पहलें)

निष्कर्ष:

अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 90 के स्तर तक पहुँचना भारत के बाह्य क्षेत्र और आर्थिक प्रबंधन के लिए एक निर्णायक मोड़ है। हालाँकि मुद्रा का अवमूल्यन स्वभावतः नकारात्मक नहीं होताकई बार यह निर्यात को बढ़ावा देता हैलेकिन वर्तमान गिरावट भारत की गहरी संरचनात्मक कमजोरियों की ओर संकेत करती है।