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Blog / 27 Nov 2025

डॉलर के मुकाबले रुपये की मामूली लेकिन महत्वपूर्ण मजबूती

सन्दर्भ:

हाल ही में 21 नवंबर को रुपया डॉलर के मुकाबले गिरकर अपने ऐतिहासिक निचले स्तर ₹89.41 प्रति डॉलर पर पहुँच गया। इसके बाद कुछ दिनों में इसमें सीमित लेकिन महत्वपूर्ण सुधार देखा गया और 26 नवंबर तक यह लगभग ₹89.22–89.23 के स्तर पर स्थिर हुआ, करीब 20 पैसे की मजबूती दर्ज की गई। रुपये में इस सुधार के पीछे मुख्य रूप से नीतिगत हस्तक्षेप, वैश्विक वित्तीय परिस्थितियों में सकारात्मक बदलाव और विदेशी मुद्रा बाजार में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की सक्रिय भूमिका रही, जिसने बाजार में अस्थिरता को नियंत्रित करते हुए निवेशकों के विश्वास को पुनर्स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

रुपये में सुधार के प्रमुख कारण:

    • आरबीआई का हस्तक्षेप: रुपये की मजबूती मुख्य रूप से RBI के सक्रिय हस्तक्षेप का परिणाम थी, जिसमें उसने ऑनशोर और ऑफशोर बाजार में डॉलर बेचकर मुद्रा की उपलब्धता बढ़ाई और सट्टेबाज़ी को रोका, जिससे रुपये पर दबाव कम हुआ और निवेशकों का भरोसा बढ़ा।
    • वैश्विक डॉलर में नरमी: अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर कमजोर होने और अमेरिका में ब्याज दरें स्थिर रहने की उम्मीद के कारण निवेशकों ने डॉलर से दूरी बनाई, जिससे रुपये जैसी उभरती मुद्राओं को मजबूती मिली।
    • बाहरी क्षेत्र की स्थिति: कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में अस्थायी कमी से भारत का आयात खर्च कम हुआ और डॉलर की मांग घट गई। साथ ही, सेवाओं के निर्यात और विदेश से प्राप्त प्रेषण स्थिर रहने से रुपये को अतिरिक्त मजबूती मिली।
    • विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI): हालांकि पहले FPIs बड़ी मात्रा में पैसा निकाल रहे थे, लेकिन सुधार के दौरान निकासी धीमी हुई। RBI के संकेतों और नीतिगत स्थिरता ने निवेशकों का भरोसा बढ़ाया।

भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:

    • आर्थिक स्थिरता: रुपया स्थिर रहने से समग्र अर्थव्यवस्था में संतुलन बना रहता है। यदि मुद्रा में तेज़ उतार-चढ़ाव आए, तो यह व्यापार, निवेश और मौद्रिक नीतियों पर नकारात्मक असर डाल सकता है। इसलिए रुपये में मामूली सुधार भी बाजार में भरोसा और संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।
    • बाहरी क्षेत्र की मजबूती: मजबूत रुपया कच्चे तेल जैसे महत्वपूर्ण आयातों की लागत को कम करता है, जिससे चालू खाता पर दबाव घटता है और व्यापार घाटे के बढ़ने की संभावना कम हो जाती है।
    • मुद्रास्फीति पर नियंत्रण: भारत कई जरूरी वस्तुओं, जैसे तेल, रसायन और इलेक्ट्रॉनिक्स का आयात करता है। रुपया कमजोर होने पर ये वस्तुएँ महंगी हो जाती हैं। रुपये की सुधार से आयातित मुद्रास्फीति पर नियंत्रण रखने में मदद मिलती है।
    • निवेशकों का विश्वास: मुद्रा की स्थिरता घरेलू और विदेशी निवेशकों, दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। तेज़ और अनियंत्रित गिरावट अर्थव्यवस्था की कमजोरी का संकेत देती है। RBI की त्वरित कार्रवाई से निवेशकों को संदेश मिला कि भारत बाहरी झटकों को संभालने में सक्षम है।

निष्कर्ष:

रुपये में यह सुधार मुख्य रूप से RBI के रणनीतिक हस्तक्षेप, वैश्विक परिस्थितियों में सकारात्मक बदलाव और घरेलू आर्थिक दबावों में कमी का परिणाम है। हालांकि यह अल्पकालिक राहत प्रदान करता है, फिर भी व्यापार घाटा और वैश्विक वित्तीय अनिश्चितताओं जैसी संरचनात्मक चुनौतियाँ बनी हुई हैं। इसलिए मुद्रा प्रबंधन भारत की आर्थिक नीति का एक अहम और निरंतर आवश्यक हिस्सा बना रहेगा।