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Blog / 25 Aug 2025

लिपु-लेख दर्रे को लेकर भारत-नेपाल विवाद

संदर्भ:
हाल ही में भारत और चीन के बीच लिपु-लेख दर्रे के माध्यम से सीमा व्यापार पुनः शुरू करने के समझौते ने भारत और नेपाल के मध्य एक राजनयिक विवाद को जन्म दिया है। नेपाल का दावा है कि लिपु-लेख क्षेत्र उसकी संप्रभुता के अंतर्गत आता है, जबकि भारत का कहना है कि नेपाल के क्षेत्रीय दावे "न तो उचित हैं और न ही ऐतिहासिक तथ्यों एवं प्रमाणों पर आधारित हैं।

कालापानी-लिपु-लेख-लिंपियाधुरा क्षेत्रीय विवाद:

  • कालापानी-लिपु-लेख-लिंपियाधुरा क्षेत्र भारत, नेपाल और चीन के बीच स्थित एक त्रिसंधि (tri-junction) क्षेत्र है।
    नेपाल का दावा है कि यह क्षेत्र उसके अधिकार क्षेत्र में आता है और इसका आधार वह 1816 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ हुई सुगौली संधि को मानता है। संधि के अनुसार, महाकाली नदी के पूर्व का क्षेत्र नेपाल का अंग माना गया है, और नेपाल का तर्क है कि लिपु-लेख इसी क्षेत्र में स्थित है।
  • वर्ष 2019 में भारत सरकार द्वारा प्रकाशित एक नए राजनीतिक मानचित्र में इस क्षेत्र को उत्तराखंड राज्य का हिस्सा दर्शाया गया, जिसका नेपाल ने तीव्र विरोध किया।
  • इसके जवाब में, नेपाल ने अपने संविधान और आधिकारिक मानचित्र में संशोधन करते हुए कालापानी, लिपु-लेख और लिंपियाधुरा को शामिल किया, जिससे यह विवाद और गहराया।

भारत-चीन सीमा व्यापार बहाली के विषय में:

         भारत और चीन ने सीमा व्यापार को फिर से शुरू करने के उद्देश्य से तीन प्रमुख दर्रों लिपु लेख (उत्तराखंड), शिपकी ला (हिमाचल प्रदेश) और नाथू ला (सिक्किम)के माध्यम से व्यापार को पुनः आरंभ करने का निर्णय लिया है। भारत का कहना है कि लिपु लेख दर्रे के माध्यम से व्यापार वर्ष 1954 में प्रारंभ हुआ था और इसका नेपाल से कोई संबंध नहीं है।

विवाद के मुख्य बिंदु:

         लिपुलेख क्षेत्र को लेकर भारत और नेपाल के दृष्टिकोण में स्पष्ट मतभेद हैं। भारत का मानना है कि लिपु लेख एक ऐतिहासिक व्यापार मार्ग है, जिसका उपयोग वर्ष 1954 से हो रहा है, और यह मार्ग भारत-चीन के बीच द्विपक्षीय समझौते का हिस्सा रहा है। भारत नेपाल के दावों को ऐतिहासिक रूप से आधारहीन मानता है।

         वहीं, नेपाल का तर्क है कि 1816 की सुगौली संधि के अनुसार महाकाली नदी के पूर्व का क्षेत्र नेपाल का अंग है और लिपु लेख उसी के अंतर्गत आता है। नेपाल का यह भी कहना है कि चूंकि यह क्षेत्र विवादित है, इसलिए भारत और चीन के बीच इस पर किसी भी प्रकार की गतिविधि या समझौता करने से पहले नेपाल से परामर्श किया जाना चाहिए।

लिपु लेख का महत्व:

लिपु लेख दर्रा भारत, नेपाल और तिब्बत (चीन) के बीच एक त्रि-संधि बिंदु पर स्थित है, जो इसे भौगोलिक और रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण बनाता है। यह दर्रा न केवल भारत-चीन सीमा व्यापार के लिए, बल्कि कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग के रूप में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

भारत-नेपाल संबंध:

         भारत और नेपाल के बीच संबंधों की नींव 1950 की शांति और मैत्री संधि पर आधारित है, जो खुली सीमाएं, मुक्त आवाजाही और पारस्परिक विशेषाधिकारों की व्यवस्था प्रदान करती है। भारत, नेपाल का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार और विकास सहायता प्रदाता है, जो बुनियादी ढांचे जैसे सड़क, हवाई अड्डे और स्वास्थ्य सुविधाएं विकसित करने में योगदान देता है।

         नेपाल की भौगोलिक स्थिति उसे भारत के लिए एक रणनीतिक बफर बनाती है, लेकिन चुनौतियाँ भी मौजूद हैंजैसे सीमा विवाद, व्यापार असंतुलन, और नेपाल-चीन के गहरे होते संबंध। साथ ही, नेपाल में 1950 की संधि पर पुनर्विचार की आंतरिक मांगें भी उभर रही हैं, जो क्षेत्रीय भू-राजनीतिक बदलावों को दर्शाती हैं।

निष्कर्ष:

लिपु लेख क्षेत्र को लेकर भारत और नेपाल के बीच राजनयिक विवाद सीमा विवादों की जटिलता और कूटनीतिक समाधान की आवश्यकता को दर्शाता है। दोनों देशों के बीच पुराने और मजबूत संबंध हैं, और वे इसे बनाए रखने के इच्छुक हैं। इसलिए, क्षेत्रीय दावों को रचनात्मक संवाद और कूटनीति के माध्यम से सुलझाना आवश्यक है। नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली की आगामी भारत यात्रा इस मुद्दे पर बातचीत और साझा समाधान खोजने का अवसर प्रदान कर सकती है।