संदर्भ:
हाल ही में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) द्वारा भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) के सहयोग से किए गए एक अध्ययन में दिल्ली के स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों में मोटापा और उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) के मामलों में चिंताजनक वृद्धि सामने आई है। यह अध्ययन 6 से 19 वर्ष की उम्र के 3,888 छात्रों पर आधारित है, जिनमें सरकारी और निजी दोनों स्कूलों के विद्यार्थी शामिल थे। यह रिपोर्ट दिल्ली के बच्चों के बीच उभरते एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट की ओर संकेत करती है।
मुख्य निष्कर्ष:
मोटापे का प्रसार
· सामान्य मोटापा: कुल मिलाकर 13.4%;
o निजी स्कूल: 24.02%
o पब्लिक स्कूल: 4.48%
· केंद्रीय (उदर) मोटापा: कुल मिलाकर 9.2%;
o निजी स्कूल: 16.77%
o पब्लिक स्कूल: 1.83%
2006 में हुए एक अध्ययन में मोटापे की दर सिर्फ 5% थी, जो अब तेजी से बढ़ गई है।
हाई ब्लड प्रेशर और मेटाबोलिक समस्याएं
· उच्च रक्तचाप: सार्वजनिक और निजी दोनों स्कूलों में 7.4%।
· उपवास ग्लूकोज में कमी: निजी स्कूल के छात्रों में 2.37 गुना अधिक।
· मेटाबोलिक सिंड्रोम: निजी स्कूल के छात्रों में 3.51 गुना अधिक।
चिंताजनक बात यह रही कि 34% बच्चों में डिस्लिपिडेमिया (खून में कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड का असंतुलन) पाया गया।
थिन-फैट सिंड्रोम (दिखने में दुबले लेकिन अंदर से बीमार)
रिपोर्ट में "थिन-फैट" या "MONW" (मेटाबोलिकली मोटा लेकिन सामान्य वजन वाला) स्थिति का भी ज़िक्र किया गया है।
हालाँकि 68% किशोरों का बीएमआई (BMI) सामान्य था, लेकिन उनमें से 43% मेटाबोलिक रूप से अस्वस्थ थे।
· MONW की स्थिति:
o सरकारी स्कूलों में: 46%
o निजी स्कूलों में: 35%
· कम HDL (अच्छा कोलेस्ट्रॉल):
o सरकारी स्कूलों में: 62%
o निजी स्कूलों में: 53%
इसका मतलब है कि सामान्य वजन होना अच्छा स्वास्थ्य होने की गारंटी नहीं है, खासकर उन बच्चों में जो कम पोषक आहार लेते हैं और ज्यादा शारीरिक गतिविधि नहीं करते।
मुख्य निहितार्थ:
बच्चों में बढ़ती गैर-संक्रामक बीमारियाँ (NCDs): मोटे बच्चों में बढ़ता मेटाबोलिक सिंड्रोम और खराब शुगर नियंत्रण भविष्य में गंभीर बीमारियों के खतरे को बढ़ाते हैं, जो पहले केवल बड़ों में देखी जाती थीं।
इसका प्रभाव:
· जीवन भर इलाज का खर्च बढ़ता है,
· बड़े होकर कामकाजी क्षमता घटती है,
· और देश की स्वास्थ्य प्रणाली पर बोझ बढ़ता है।
इसलिए जरूरी है कि बचपन से ही बच्चों की नियमित स्वास्थ्य जांच और सामुदायिक स्तर पर स्क्रीनिंग कार्यक्रम शुरू किए जाएं।
मौजूदा उपायों की चिंताएं:
यह तथ्य कि उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) की दर सरकारी और निजी दोनों स्कूलों में लगभग समान है, इस बात को दर्शाता है कि वर्तमान स्वास्थ्य शिक्षा और जांच संबंधी प्रयास या तो पर्याप्त नहीं हैं या फिर सही तरीके से लागू नहीं हो रहे हैं।
बच्चे चाहे किसी भी सामाजिक या आर्थिक पृष्ठभूमि से आते हों, वे सभी असंतुलित आहार, शारीरिक गतिविधियों की कमी और गलत जीवनशैली जैसे जोखिमों के समान रूप से शिकार हो रहे हैं।
आवश्यक कदम:
· सभी स्कूलों में समावेशी स्वास्थ्य कार्यक्रम,
· खेल और शारीरिक शिक्षा को सख्ती से लागू करना,
· माता-पिता को बच्चों की जीवनशैली को लेकर जागरूक करना।
निष्कर्ष:
इस अध्ययन के परिणाम नीति निर्माताओं, शिक्षकों और अभिभावकों के लिए एक गंभीर चेतावनी हैं। बच्चों में बढ़ती स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने के लिए एक समग्र और बहुपक्षीय रणनीति अपनाने की आवश्यकता है। इसमें स्कूलों में पोषण संबंधी शिक्षा को मजबूत करना, शारीरिक गतिविधियों को बढ़ावा देना, स्कूल परिसरों के आसपास अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों पर नियंत्रण और बच्चों के स्क्रीन समय को सीमित करने जैसे उपाय शामिल होने चाहिए।