संदर्भ :
हाल ही में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक बांग्लादेशी महिला को ज़मानत प्रदान की, जो फरवरी 2025 से धोखाधड़ी, जालसाज़ी और भारत में अवैध प्रवास के आरोपों में हिरासत में थी। अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लेख करते हुए स्पष्ट किया कि जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार केवल भारतीय नागरिकों तक सीमित नहीं है, बल्कि भारत की धरती पर मौजूद हर व्यक्ति को यह सुरक्षा प्राप्त है। न्यायालय ने यह भी कहा कि बिना मुकदमे के लंबे समय तक हिरासत “अपरिवर्तनीय अन्याय” के समान है।
शासन और कानून पर प्रभाव:
1. अनुच्छेद 21 का दायरा विदेशी नागरिकों तक: यह निर्णय सर्वोच्च न्यायालय की उस व्याख्या के अनुरूप है जिसमें कहा गया है कि अनुच्छेद 21 में प्रयुक्त शब्द “व्यक्ति” केवल भारतीय नागरिकों तक सीमित नहीं है, बल्कि विदेशी नागरिकों को भी इसमें शामिल किया गया है। यह भारत की संवैधानिक नैतिकता और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दायित्वों को मज़बूती प्रदान करता है।
2. ज़मानत अधिकार है, विशेषाधिकार नहीं: अदालत ने यह रेखांकित किया कि ट्रायल से पहले दी गई हिरासत हमेशा न्यायसंगत और संतुलित होनी चाहिए। विशेषकर उन व्यक्तियों के लिए, जो हाशिये पर हैं या नागरिकता से वंचित हैं, ज़मानत उनके अधिकारों की सुरक्षा का अहम साधन है।
3. मानवीय दृष्टिकोण से न्याय: अदालत ने यह स्वीकार किया कि विदेशी नागरिकों विशेषकर महिला नागरिक के लिए ज़मानत राशि और ज़मानतदार की शर्तें पूरी करना बेहद कठिन होता है। इसलिए महिला को व्यक्तिगत मुचलके पर रिहा किया गया।
4. विदेशी व शरणार्थी कानून पर प्रभाव: यह मामला भारत में विदेशी नागरिकों और शरणार्थियों से जुड़े कानूनों के प्रति विकसित हो रही न्यायिक दृष्टि को आगे बढ़ाता है। साथ ही यह हिरासत, निर्वासन नीति और मानवाधिकार सुरक्षा में मौजूद खामियों और सुधार की आवश्यकता को भी उजागर करता है।
बीएनएसएस (BNSS) में ज़मानत के प्रावधान:
ज़मानत वह प्रक्रिया है, जिसमें किसी अपराध के संदिग्ध या अभियुक्त व्यक्ति को अस्थायी रूप से इस भरोसे पर रिहा किया जाता है कि वह अदालत द्वारा बुलाए जाने पर उपस्थित होगा।
· पहले ज़मानत की परिभाषा मुख्यतः न्यायिक व्याख्या से मिलती थी, लेकिन BNSS, 2023 की धारा 479 ने इसे वैधानिक रूप से परिभाषित कर दिया है।
· BNSS में यह भी प्रावधान है कि गिरफ़्तारी के समय अभियुक्त को गिरफ़्तारी के कारण बताए जाने चाहिए। यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 22 में निहित है और CrPC की धारा 50 के अनुरूप है।
मुख्य बदलाव :
· BNSS के तहत पहली बार अपराध करने वाले अभियुक्त को, यदि वह अधिकतम सज़ा की एक-तिहाई अवधि जेल में बिता चुका है, तो उसे ज़मानत मिल सकेगी।
· पहले CrPC में यह अवधि आधी सज़ा पूरी करने के बाद ही लागू होती थी।
· हालांकि, यह सुविधा उन अभियुक्तों को नहीं मिलेगी जिनके खिलाफ एक से अधिक मुकदमे या आरोप लंबित हैं।
विदेशी नागरिकों को मिलने वाले मौलिक अधिकार:
भारत में विदेशी नागरिकों को भी कुछ मौलिक अधिकार प्राप्त हैं :
- अनुच्छेद 14 : कानून के समक्ष समानता
- अनुच्छेद 20 : अपराधों के लिए दोषसिद्धि से सुरक्षा
- अनुच्छेद 21 : जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण
- अनुच्छेद 21A : बच्चों को प्राथमिक शिक्षा का अधिकार
- अनुच्छेद 23 : मानव तस्करी और बंधुआ मज़दूरी का निषेध
- अनुच्छेद 24 : कारखानों में बाल मज़दूरी पर प्रतिबंध
- अनुच्छेद 25-28 : धर्म की स्वतंत्रता और उससे जुड़े अधिकार
निष्कर्ष:
उच्च न्यायालय का यह निर्णय स्पष्ट करता है कि भारत के संवैधानिक मूल्य केवल नागरिकों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि देश की सीमाओं के भीतर उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति, चाहे वह किसी भी राष्ट्रीयता का हो, उनका लाभ उठा सकता है। यह निर्णय इस बात की पुष्टि करता है कि भारतीय लोकतंत्र की बुनियाद न्याय, समानता और मानवीय गरिमा पर टिकी है।