संदर्भ:
एशियाई जंगली कुत्ता (क्यूऑन अल्पिनस), जिसे आमतौर पर ढोल कहा जाता है, असम के काजीरंगा-करबी आंगलोंग क्षेत्र (KKAL) में वर्षों बाद दोबारा देखा गया है। लंबे समय से माना जा रहा था कि यह प्रजाति इस क्षेत्र से पूरी तरह विलुप्त हो चुकी है। यह महत्वपूर्ण खोज जर्नल ऑफ थ्रेटेंड टैक्सा में प्रकाशित एक अध्ययन में सामने आई है। यह पुनर्खोज वन्यजीव गलियारों की संरक्षण की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
अध्ययन की प्रमुख बातें:
· इस अध्ययन ने केकेएएल के अमगुरी कॉरिडोर में लुप्तप्राय कैनिड के बारे में पहली बार कैमरा-ट्रैप साक्ष्य उपलब्ध कराया।
· वर्ष 2022 में छह बार ढोल की तस्वीरें ली गईं।
· सभी तस्वीरों में केवल एक ही ढोल दिखाई दिया, जो राष्ट्रीय राजमार्ग-37 से लगभग 375 मीटर और नजदीकी मानव बस्ती से 270 मीटर की दूरी पर था।
· यह शोध 25,000 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले चार महत्वपूर्ण वन्यजीव गलियारों पर केंद्रित था:
o पनबाड़ी
o हल्दीबाड़ी
o कंचनजुरी
o अमगुरी
· काजीरंगा-करबी आंगलोंग क्षेत्र क्षेत्र इंडो-बर्मा जैव विविधता हॉटस्पॉट में आता है, जो दुनियाभर में अपनी समृद्ध जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध है।
· ढोल की मौजूदगी यह दिखाती है कि ये गलियारे जैविक रूप से बेहद मूल्यवान हैं और यहां बाघ, तेंदुआ, हाथी सहित कई अन्य प्रजातियां भी पाई जाती हैं।
विलुप्त प्रजाति-ढोल के बारे में:
ढोल एक संकटग्रस्त मांसाहारी प्राणी है, जो दक्षिण, मध्य और दक्षिण-पूर्व एशिया में पाया जाता है। यह अत्यंत सामाजिक जानवर है और आमतौर पर 10 से 30 सदस्यों के झुण्ड में रहता है।
· ढोल शिकार में बहुत कुशल होते हैं और अपने से बड़े शिकार को भी मार सकते हैं।
· जब शिकार की उपलब्धता कम हो जाती है, तो यह अकेले या जोड़ी में भी शिकार करने में सक्षम होते हैं।
· पहले यह प्रजाति पूरे एशिया में फैली हुई थी, लेकिन अब इसका वास मूल क्षेत्र के केवल एक-चौथाई हिस्से तक ही सीमित रह गया है।
· वर्तमान में ढोल भारत, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, चीन, म्यांमार, थाईलैंड, इंडोनेशिया और मलेशिया के कुछ इलाकों में ही पाए जाते हैं।
· इसके सामने मुख्य खतरे निम्न हैं:
o तेजी से घटते जंगल और आवास क्षेत्र
o शिकार योग्य प्रजातियों की कमी
o मनुष्यों द्वारा पशुओं पर हमले के प्रतिशोध में मार दिया जाना
संरक्षण का महत्त्व:
· ढोल की वापसी वन्यजीव संरक्षण नीति के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत है। यह दर्शाता है कि काजीरंगा-करबी आंगलोंग क्षेत्र (KKAL) जैसे बड़े वन परिदृश्य में मौजूद वन्यजीव गलियारे अब भी सक्रिय और प्रभावी हैं। यदि इन गलियारों का उचित प्रबंधन और संरक्षण किया जाए, तो ये दुर्लभ और संकटग्रस्त प्रजातियों के अस्तित्व को सुरक्षित रखने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
· यह अध्ययन इस बात को भी रेखांकित करता है कि वन्यजीव गलियारों की सुरक्षा और पुनर्स्थापना केवल बाघ और हाथी जैसी चर्चित प्रजातियों के लिए ही नहीं, बल्कि ढोल जैसे कम चर्चित शिकारी जीवों के लिए भी अत्यंत आवश्यक है।
निष्कर्ष:
असम में ढोल की वापसी यह संकेत देती है कि भारत की जैव विविधता में अभी भी पुनरुत्थान की क्षमता है, लेकिन यह असुरक्षित और कई खतरों से घिरी हुई भी है। यह उदाहरण दर्शाता है कि यदि हम सतर्क निगरानी रखें, नियमित संरक्षण प्रयास करें और जंगलों की रक्षा सुनिश्चित करें, तो विलुप्त होती प्रजातियों को भी पुनर्जीवित किया जा सकता है। अमगुरी जैसे वन्यजीव गलियारों की सुरक्षा केवल बाघों और हाथियों जैसी चर्चित प्रजातियों के लिए नहीं, बल्कि ढोल जैसे कम चर्चित लेकिन पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण शिकारी प्रजातियों के लिए भी अत्यावश्यक है। यह खोज न केवल आशा की किरण है, बल्कि यह भी याद दिलाती है कि तेजी से बदलते पर्यावरणीय परिदृश्य में संरक्षण रणनीतियों को और अधिक मजबूत, सक्रिय और समावेशी बनाना आज की ज़रूरत है।