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Blog / 25 Dec 2025

भारतीय राज्यों से संबंधित सांख्यिकी का हैंडबुक, 2024-25

संदर्भ:

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा प्रकाशित भारतीय राज्यों से संबंधित सांख्यिकी का हैंडबुक, 2024–25 से यह स्पष्ट होता है कि भारत में प्रति व्यक्ति आय के मामले में दक्षिणी राज्यों का वर्चस्व निरंतर बना हुआ है। राष्ट्रीय स्तर पर शीर्ष स्थानों पर अधिकांश दक्षिणी राज्य ही शामिल हैं और वे बड़े उत्तरी राज्यों की तुलना में अब भी उल्लेखनीय रूप से आगे हैं। यह स्थिति भारत में उत्तरदक्षिण आर्थिक असमानता के गहरे और स्थायी स्वरूप को रेखांकित करती है।

मुख्य निष्कर्ष:

      • प्रति व्यक्ति आय के आधार पर राष्ट्रीय स्तर के शीर्ष दस राज्यों में पाँच दक्षिणी राज्य शामिल हैं। दिल्ली के बाद तेलंगाना दूसरे स्थान पर है, जहाँ वर्तमान मूल्यों पर प्रति व्यक्ति शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद ₹3,87,623 दर्ज किया गया है। इसके पश्चात कर्नाटक (₹3,80,906), तमिलनाडु (₹3,61,619), केरल (₹3,08,338) और आंध्र प्रदेश (₹2,66,240) का स्थान है।
      • इसके विपरीत, महाराष्ट्र ₹3,09,340 की प्रति व्यक्ति आय के साथ छठे स्थान पर स्थित है, जबकि मध्य प्रदेश (₹1,52,615), उत्तर प्रदेश (₹1,08,572) और बिहार (₹69,321) सूची के निचले पायदान पर बने हुए हैं। विशेष रूप से, सर्वाधिक प्रति व्यक्ति आय वाले दक्षिणी राज्य और बिहार के बीच का अंतर पाँच गुना से भी अधिक है, जो भारत में क्षेत्रीय आय असमानताओं की गंभीरता को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।

आर्थिक उत्पादन और दक्षिणी राज्यों की बढ़त:

      • कुल आर्थिक उत्पादन के आँकड़े भी दक्षिणी राज्यों की आर्थिक मजबूती और समृद्धि को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं। तमिलनाडु और कर्नाटक दक्षिण भारत के प्रमुख आर्थिक केंद्रों के रूप में उभरकर सामने आते हैं, जिनका शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद क्रमशः ₹27.92 लाख करोड़ और ₹26.03 लाख करोड़ दर्ज किया गया है। इनके बाद तेलंगाना (₹14.87 लाख करोड़) और आंध्र प्रदेश (₹14.22 लाख करोड़) का स्थान है, जबकि केरल का शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद ₹11.11 लाख करोड़ रहा है।
      • यद्यपि महाराष्ट्र ₹39.57 लाख करोड़ के साथ भारत की सबसे बड़ी राज्य अर्थव्यवस्था बना हुआ है, किंतु प्रति व्यक्ति आय के संदर्भ में वह केरल से केवल मामूली रूप से ही आगे है। वहीं, उत्तर प्रदेश का शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद लगभग ₹26 लाख करोड़ है, जो तमिलनाडु और कर्नाटक के समकक्ष है, फिर भी उसकी प्रति व्यक्ति आय देश में न्यूनतम स्तरों में बनी हुई है। यह स्थिति दर्शाती है कि अत्यधिक जनसंख्या के कारण कुल आय में हुई वृद्धि का लाभ प्रति व्यक्ति स्तर पर सीमित रह जाता है।

राजकोषीय स्थिति और राजस्व क्षमता:

      • यह हैंडबुक राज्यों की राजस्व संग्रहण क्षमता में मौजूद उल्लेखनीय असमानताओं को उजागर करती है। तमिलनाडु और कर्नाटक ने क्रमशः ₹1.95 लाख करोड़ और ₹1.89 लाख करोड़ का सशक्त स्वयं का कर राजस्व अर्जित किया है। इनके पश्चात तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और केरल का स्थान आता है।
      • लगभग सभी राज्यों में राजकोषीय घाटा अपेक्षाकृत ऊँचा बना हुआ है। दक्षिणी राज्यों में तमिलनाडु का राजकोषीय घाटा सबसे अधिक दर्ज किया गया, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर महाराष्ट्र ₹3.42 लाख करोड़ के साथ स्वयं का कर राजस्व संग्रहण में अग्रणी होने के बावजूद उल्लेखनीय राजकोषीय घाटे से जूझ रहा है। वहीं, बिहार में सीमित राजस्व आधार के बावजूद लगातार बना हुआ घाटा उधारी तथा केंद्र से प्राप्त अनुदानों पर उसकी संरचनात्मक निर्भरता को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।

महँगाई, ग़रीबी और सामाजिक परिणाम:

      • सामाजिक संकेतकों में भी स्पष्ट क्षेत्रीय असमानताएँ दिखाई देती हैं। अधिकांश दक्षिणी राज्यों में महँगाई अपेक्षाकृत नियंत्रित बनी रही, जबकि बिहार और उत्तर प्रदेश में महँगाई दर तुलनात्मक रूप से अधिक दर्ज की गई। ग़रीबी के आँकड़े सबसे तीव्र अंतर को सामने लाते हैं, केरल में बहुआयामी ग़रीबी दर मात्र 0.55 प्रतिशत है, जो देश में न्यूनतम है, जबकि बिहार में यह दर 33.76 प्रतिशत तक पहुँच जाती है।
      • स्वास्थ्य पर होने वाला व्यय राज्यों के बीच अपेक्षाकृत समान पाया गया है, क्योंकि यह मुख्यतः जनसंख्या के आकार और जनसांख्यिकीय आवश्यकताओं से प्रभावित होता है, न कि केवल आय स्तर से। समग्र रूप से, यह हैंडबुक भारत के विकास पथ में उत्तरदक्षिण विभाजन की निरंतरता को उजागर करती है और इस तथ्य पर बल देती है कि अधिक समावेशी तथा समान आर्थिक विकास सुनिश्चित करने के लिए संतुलित क्षेत्रीय विकास की तत्काल आवश्यकता है।