संदर्भ:
हाल ही में चेन्नई स्थित राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (एनबीए) ने आंध्र प्रदेश जैव विविधता बोर्ड (एपीबीबी) को लाल चंदन (Pterocarpus santalinus) पर केंद्रित संरक्षण पहल के लिए 82 लाख रुपये की वित्तीय सहायता स्वीकृत की है। यह वित्तपोषण जैव विविधता अधिनियम, 2002 के तहत परिकल्पित एक्सेस एंड बेनिफिट शेयरिंग (एबीएस) तंत्र के अंतर्गत प्रदान किया गया है।
निधि के उद्देश्य:
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- इस पहल का मुख्य लक्ष्य 1 लाख लाल चंदन के पौधे तैयार करना है, जिन्हें फॉरेस्ट क्षेत्र से बाहर पेड़ लगाने के कार्यक्रम (Trees Outside Forests – ToF) के तहत किसानों को वितरित किया जाएगा। इससे संरक्षण के प्रयासों को ग्रामीण आजीविका के अवसरों से जोड़ा जाएगा।
- यह पहल नीचे से ऊपर (bottom-up) दृष्टिकोण पर आधारित है, जिसमें स्थानीय हितधारक, जैव विविधता प्रबंधन समितियां और किसान शामिल होंगे। यह नर्सरी निर्माण, पौधरोपण, रखरखाव और निगरानी के सभी चरणों में भागीदारी सुनिश्चित करेगा।
- मुख्य उद्देश्य जंगलों में मौजूद प्राकृतिक लाल चंदन की आबादी पर दबाव कम करना है, ताकि अवैध कटाई और तस्करी रोकी जा सके और स्थानीय स्तर पर कानूनी पुनर्जनन (Regeneration) को बढ़ावा दिया जा सके।
- इस पहल का मुख्य लक्ष्य 1 लाख लाल चंदन के पौधे तैयार करना है, जिन्हें फॉरेस्ट क्षेत्र से बाहर पेड़ लगाने के कार्यक्रम (Trees Outside Forests – ToF) के तहत किसानों को वितरित किया जाएगा। इससे संरक्षण के प्रयासों को ग्रामीण आजीविका के अवसरों से जोड़ा जाएगा।
महत्व:
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- यह मंजूरी दर्शाती है कि कैसे एक्सेस एंड बेनिफिट शेयरिंग (एबीएस) तंत्र के माध्यम से उपयोगकर्ता संरक्षण के लिए वित्तीय योगदान करते हैं और "उपयोगकर्ता भुगतान करते हैं, समुदाय लाभान्वित होते हैं" के सिद्धांत को व्यवहार में लागू करते हैं।
- लाल चंदन के पौधों को ToF के तहत किसानों तक पहुँचाकर यह पहल पारिस्थितिक पुनर्स्थापन को ग्रामीण आजीविका से जोड़ती है। कानूनी रूप से विकसित किए गए बागान अवैध कटाई को कम करने में सहायक होंगे।
- यह कदम भारत की जैव विविधता संधि (CBD) और कुनमिंग–मॉन्ट्रियल फ्रेमवर्क के संकल्पों के अनुरूप है, जो लाभ-साझेदारी और पारिस्थितिकी तंत्र के पुनर्स्थापन को प्रोत्साहित करते हैं।
- यह मंजूरी दर्शाती है कि कैसे एक्सेस एंड बेनिफिट शेयरिंग (एबीएस) तंत्र के माध्यम से उपयोगकर्ता संरक्षण के लिए वित्तीय योगदान करते हैं और "उपयोगकर्ता भुगतान करते हैं, समुदाय लाभान्वित होते हैं" के सिद्धांत को व्यवहार में लागू करते हैं।
भारत का एक्सेस एंड बेनिफिट शेयरिंग (एबीएस) तंत्र:
भारत में एबीएस तंत्र का संचालन जैव विविधता अधिनियम, 2002 के अंतर्गत किया जाता है। यह तंत्र जैविक संसाधनों और उनसे जुड़ी पारंपरिक जानकारी तक पहुँच को नियंत्रित करता है, चाहे उसका उपयोग वाणिज्यिक हो या अनुसंधान के लिए। इसके दो प्रमुख सिद्धांत हैं:
• पूर्व सूचित सहमति (Prior Informed Consent – PIC): किसी भी जैव संसाधन तक पहुँचने से पहले राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA) या राज्य जैव विविधता बोर्ड (SBBs) से अनुमति लेना अनिवार्य है।
• परस्पर सहमति शर्तें (Mutually Agreed Terms – MAT): उपयोगकर्ता और संसाधन प्रदाता के बीच लाभ बाँटने की शर्तों पर आपसी समझौता होता है। यह लाभ आर्थिक और गैर-आर्थिक भी हो सकता है।
लाल चंदन के बारे में:
लाल चंदन एक स्थानिक और लुप्तप्राय वृक्ष प्रजाति है, जो केवल आंध्र प्रदेश के पूर्वी घाटों में पाई जाती है। अपने सीमित आवास और संकटग्रस्त स्थिति (IUCN लाल सूची: संकटग्रस्त) के कारण यह पारिस्थितिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है। आर्थिक दृष्टि से भी इसका विशेष महत्व है, क्योंकि इसकी समृद्ध लाल लकड़ी का उपयोग सौंदर्य प्रसाधनों, औषधियों, फर्नीचर और संगीत वाद्ययंत्रों में किया जाता है। इसे विशेष रूप से चीन और जापान जैसे निर्यात बाजारों में किया जाता है।
लाल चंदन के संरक्षण हेतु कानूनी प्रावधान:
• भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: इसे अनुसूची-IV में शामिल किया गया है, जिससे इसका कानूनी संरक्षण सुनिश्चित होता है।
• आंध्र प्रदेश वन अधिनियम (संशोधन 2016): लाल चंदन से जुड़े अपराधों को गंभीर और गैर-जमानती बना दिया गया है।
• CITES (परिशिष्ट-II): अंतरराष्ट्रीय व्यापार को नियंत्रित किया गया है, ताकि अत्यधिक शोषण से बचाया जा सके।
इन सभी कानूनी उपायों का उद्देश्य तस्करी, आवास हानि और अवैध व्यापार जैसी चुनौतियों से लाल चंदन की रक्षा करना है।
निष्कर्ष:
आंध्र प्रदेश में लाल चंदन के संरक्षण के लिए एनबीए द्वारा 82 लाख रुपये की स्वीकृति एबीएस नीति को व्यवहार में लागू करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह पहल जैव विविधता के उपयोग और उसके संरक्षण में पुनर्निवेश का सेतु बनती है और स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करती है।

