सन्दर्भ:
भारतीय रिज़र्व बैंक ने विनियमित संस्थाओं (Regulated Entities – REs) द्वारा वैकल्पिक निवेश कोषों (Alternative Investment Funds – AIFs) में किए जाने वाले निवेश को लेकर नए मसौदा दिशानिर्देश जारी किए हैं। इन प्रस्तावित नियमों का उद्देश्य निवेश पर निगरानी को सुदृढ़ करना और AIFs के संभावित दुरुपयोग को रोकना है। ये मसौदा दिशानिर्देश सार्वजनिक व संबंधित पक्षों की राय के लिए जारी किए गए हैं। प्राप्त सुझावों की समीक्षा के बाद, आरबीआई इन नियमों को अंतिम रूप देकर लागू करेगा।
नए मसौदा दिशानिर्देशों के मुख्य प्रस्ताव:
1. एकल RE द्वारा अधिकतम निवेश सीमा:
अब कोई भी एकल रेगुलेटेड संस्था किसी AIF स्कीम के कुल फंड में अधिकतम 10% तक ही निवेश कर सकेगी।
2. सभी REs के संयुक्त निवेश की सीमा:
किसी एक AIF स्कीम में सभी REs द्वारा कुल मिलाकर किया गया निवेश अब स्कीम के कुल फंड का 15% से अधिक नहीं हो सकता।
3. 5% तक के निवेश पर कोई अतिरिक्त प्रतिबंध नहीं:
अगर कोई RE किसी AIF स्कीम में उसके कुल फंड का 5% या उससे कम निवेश करता है, तो उस पर अतिरिक्त शर्तें लागू नहीं होंगी।
4. कनेक्टेड निवेश पर प्रावधान:
अगर कोई RE 5% से ज्यादा निवेश करता है, और वह AIF किसी ऐसे उधारकर्ता को लोन देता है जो उस RE से किसी रूप में जुड़ा हुआ है (सिर्फ इक्विटी शेयर और कुछ विशेष कन्वर्टिबल इंस्ट्रूमेंट्स को छोड़कर), तो उस RE को अपने उस हिस्से के निवेश पर 100% प्रावधान (Provisioning) करना होगा।
(नोट: रेगुलेटेड संस्थाएं वे वित्तीय संस्थाएं होती हैं जो RBI जैसे नियामक निकायों के नियंत्रण में काम करती हैं।)
नए मसौदा दिशानिर्देशों के प्रमुख प्रस्ताव:
· एकल RE द्वारा निवेश की अधिकतम सीमा: अब कोई भी एकल विनियमित संस्था (RE) किसी AIF स्कीम के कुल कोष (कॉर्पस) का अधिकतम 10% ही निवेश कर सकेगी।
· सभी REs के सामूहिक निवेश की सीमा: किसी एक AIF स्कीम में सभी REs द्वारा किया गया कुल निवेश अब उस स्कीम के कुल कोष का 15% से अधिक नहीं हो सकेगा।
· 5% तक के निवेश पर कोई अतिरिक्त प्रतिबंध नहीं: यदि कोई RE किसी AIF स्कीम में उसके कुल कोष का 5% या उससे कम निवेश करता है, तो उस पर कोई अतिरिक्त शर्तें लागू नहीं होंगी।
· जुड़ी हुई इकाइयों में निवेश पर प्रावधान: यदि कोई RE 5% से अधिक निवेश करता है, और वह AIF किसी ऐसे उधारकर्ता को ऋण देता है जो उस RE से किसी रूप में संबद्ध है (इक्विटी शेयरों और कुछ विशेष कन्वर्टिबल इंस्ट्रूमेंट्स को छोड़कर), तो उस RE को अपने उस हिस्से के निवेश पर 100% प्रावधान करना होगा।
विनियमित संस्थाएं (REs) वे वित्तीय संस्थान होते हैं जो RBI जैसे नियामक निकायों के अधीन कार्य करते हैं।
नियमों में बदलाव का उद्देश्य:
यह नया ढांचा निम्नलिखित लक्ष्यों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है:
- निवेश में सावधानी और सतर्कता को बढ़ावा देना।
- अप्रत्यक्ष रूप से लोन की वापसी में देरी (evergreening) को रोकना।
- संस्थागत निवेश में पारदर्शिता और जवाबदेही लाना।
- जुड़े हुए उधारकर्ताओं और हितों के टकराव (conflict of interest) के जोखिम को कम करना।
अपेक्षित प्रभाव:
इन बदलावों से निम्नलिखित लाभ मिल सकते हैं:
- वैकल्पिक निवेश फंड्स के माध्यम से फंसे हुए या संबंधित उधारकर्ताओं तक पैसा पहुंचाने की कोशिशों पर रोक लगेगी।
- REs को ज्यादा विविध क्षेत्रों में निवेश करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा।
- वित्तीय संस्थाओं को निवेश के नियमों को लेकर ज्यादा स्पष्टता और स्थिरता मिलेगी।
- जोखिम प्रबंधन के साथ नवाचार को बढ़ावा देने वाला बेहतर निवेश वातावरण तैयार होगा।
वैकल्पिक निवेश कोष (एआईएफ) के बारे में:
वैकल्पिक निवेश फंड्स ऐसे निजी निवेश फंड होते हैं जो भारतीय या विदेशी निवेशकों से धन जुटाते हैं और उसे विभिन्न परिसंपत्तियों (asset classes) जैसे प्राइवेट इक्विटी, वेंचर कैपिटल, रियल एस्टेट, हेज फंड्स आदि में लगाते हैं।
- भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के अनुसार, AIFs को तीन श्रेणियों में “श्रेणी I, श्रेणी II और श्रेणी III बांटा गया है। ये श्रेणियाँ उनके निवेश के तरीकों, जोखिम के स्तर और नियामकीय लाभों के आधार पर अलग होती हैं।
- भारत में वैकल्पिक निवेश फंड्स को सेबी के "वैकल्पिक निवेश फंड्स विनियम, 2012" के तहत रेगुलेट किया जाता है।
निष्कर्ष:
आरबीआई का यह कदम, सेबी द्वारा निर्धारित वर्तमान वैकल्पिक निवेश फंड्स दिशानिर्देशों के साथ समन्वय स्थापित करने की एक व्यापक रणनीति का हिस्सा है। इसका प्रमुख उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वित्तीय बाजार के सभी प्रतिभागियों के लिए एक समान, संतुलित और पारदर्शी नियामकीय ढांचा उपलब्ध हो, जो सतर्क निवेश व्यवहार को प्रोत्साहित करे और जोखिमों का प्रभावी प्रबंधन सुनिश्चित करे।