संदर्भ:
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने डिजिटल ऋण दिशा-निर्देश, 2025 जारी किए हैं, जिनका उद्देश्य भारत में तेजी से बढ़ते डिजिटल ऋण पारिस्थितिकी तंत्र को सुव्यवस्थित और मजबूत बनाना है। इन दिशा-निर्देशों का उद्देश्य उधारकर्ताओं की सुरक्षा को बढ़ाना, डेटा पारदर्शिता सुनिश्चित करना और विनियमित संस्थाओं (Regulated Entities - REs) द्वारा जिम्मेदार डिजिटल ऋण देने को प्रोत्साहित करना है।
दिशा-निर्देशों का उद्देश्य
• जिम्मेदार डिजिटल ऋण देने की प्रथाओं को बढ़ावा देना।
• ग्राहक संरक्षण तंत्र को मजबूत करना।
• ऋण वितरण और वसूली में डेटा गोपनीयता और पारदर्शिता सुनिश्चित करना।
• विनियमित संस्थाओं और ऋण सेवा प्रदाताओं (Lending Service Providers - LSPs) दोनों की जवाबदेही बढ़ाना।
डिजिटल लेंडिंग के लिए प्रमुख दिशा-निर्देश
1. डिजिटल ऋण समझौते
• ऋण सेवा प्रदाताओं (LSPs) से जुड़ी सभी डिजिटल ऋण गतिविधियां विनियमित संस्थाओं (RE) के साथ एक अनुबंध के माध्यम से औपचारिक रूप से स्थापित की जानी चाहिए।
• इस अनुबंध में दोनों पक्षों की भूमिकाएं, अधिकार और दायित्व स्पष्ट रूप से परिभाषित होने चाहिए।
2. LSPs पर बढ़ी हुई जांच-पड़ताल
• विनियमित संस्थाओं (Res) को LSP के निम्नलिखित पहलुओं का पूरा मूल्यांकन करना अनिवार्य है:
o तकनीकी क्षमता
o डेटा गोपनीयता प्रथाएं
o उधारकर्ता के साथ व्यवहार में निष्पक्षता
o पिछला प्रदर्शन और अनुपालन रिकॉर्ड
3. उधारकर्ता डेटा संग्रह
• ऋण वितरण से पहले REs को निम्नलिखित जानकारी एकत्र और रिकॉर्ड करनी होगी:
o आयु
o पेशा
o आय का विवरण
• यह जानकारी ऑडिट उद्देश्यों के लिए संग्रहीत की जाएगी।
उधारकर्ता सुरक्षा उपाय
1. ऋण से बाहर निकलने के लिए कूलिंग-ऑफ अवधि
• उधारकर्ताओं को ऋण से बाहर निकलने का स्पष्ट विकल्प दिया जाना चाहिए।
• यह अवधि RE की बोर्ड नीति द्वारा निर्धारित होगी, लेकिन कम से कम एक दिन की होनी चाहिए।
• इस अवधि के दौरान कोई भी जुर्माना नहीं लिया जा सकता।
2. क्रेडिट लिमिट बढ़ाने के लिए सहमति जरूरी
• REs को उधारकर्ता की क्रेडिट लिमिट को स्वचालित रूप से बढ़ाने की अनुमति नहीं है।
• केवल उधारकर्ता के स्पष्ट अनुरोध और दस्तावेजी सहमति के बाद ही यह संभव है।
3. ऋण वितरण पर कड़े दिशानिर्देश
• ऋण की राशि सीधे उधारकर्ता के बैंक खाते में ही भेजी जानी चाहिए।
• केवल निम्नलिखित मामलों में अपवाद मान्य हैं:
o कानूनी या विनियामक निर्देश
o REs के बीच को-लेंडिंग व्यवस्था
o विशिष्ट उद्देश्य के लिए ऋण, जो सीधे अंतिम लाभार्थी को वितरित किया जाता है
• LSPs या किसी तीसरे पक्ष के खातों में भुगतान की अनुमति नहीं है।
डेटा सुरक्षा
1. जरूरत-आधारित डेटा संग्रह
• REs और LSPs केवल आवश्यक उधारकर्ता डेटा ही एकत्र कर सकते हैं।
• इसके लिए उधारकर्ता की स्पष्ट सहमति अनिवार्य है।
2. डेटा भंडारण की सीमा
• LSPs केवल बुनियादी व्यक्तिगत जानकारी (जैसे नाम, पता, संपर्क विवरण) ही संग्रहित कर सकते हैं।
• डेटा की सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी RE पर होगी।
3. शिकायत निवारण प्रणाली
• REs और LSPs दोनों को नोडल शिकायत निवारण अधिकारी नियुक्त करने होंगे।
• इन अधिकारियों के संपर्क विवरण निम्न स्थानों पर प्रदर्शित किए जाने चाहिए:
o RE, LSP और DLA की वेबसाइटों पर
o उधारकर्ता को जारी की गई मुख्य तथ्य विवरणिका (Key Fact Statement - KFS) पर
नियामक रिपोर्टिंग
1. डिजिटल लेंडिंग ऐप्स (DLAs) की सार्वजनिक निर्देशिका
• RBI एक सार्वजनिक निर्देशिका बनाएगा जिसमें सभी वैध DLAs सूचीबद्ध होंगे।
• इससे उधारकर्ता यह सत्यापित कर सकेंगे कि कोई ऐप वास्तव में किसी विनियमित वित्तीय संस्था से संबद्ध है या नहीं।
2. क्रेडिट सूचना कंपनियों (CICs) को रिपोर्टिंग
• REs को DLAs के माध्यम से (LSPs सहित) वितरित सभी ऋणों की जानकारी CICs को रिपोर्ट करना अनिवार्य है, चाहे ऋण का प्रकार या अवधि कुछ भी हो।
निष्कर्ष:
डिजिटल ऋण दिशा-निर्देश, 2025 एक व्यापक नियामक परिवर्तन का संकेत देते हैं जो भारत के बढ़ते डिजिटल ऋण पारिस्थितिकी तंत्र के अवसरों और जोखिमों दोनों को मान्यता देता है।