संदर्भ:
हाल ही में खगोलविदों की एक टीम ने एक महत्वपूर्ण खोज की है। उन्होंने पृथ्वी से लगभग 82 प्रकाश वर्ष दूर, एंटलिया नक्षत्र में स्थित एक दुर्लभ चौगुनी तारा प्रणाली (Quadruple Star System) UPM J1040−3551 AabBab की पहचान की है। इस प्रणाली में दो ठंडे टी-प्रकार के ब्राउन ड्वार्फ (भूरे बौने तारे) शामिल हैं, जो दो युवा लाल बौने तारों के चारों ओर परिक्रमा कर रहे हैं। यह खोज कम द्रव्यमान वाले तारों और उप-तारकीय पिंडों (sub-stellar objects) के निर्माण तथा उनके विकास को समझने में एक नई दिशा प्रदान करती है।
तारे के बारे में:
तारा गैस का एक विशाल और प्रकाशमान गोला होता है, जिसे गुरुत्वाकर्षण अपने साथ बाँधे रखता है। यह मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम से बना होता है। इसके केंद्र में होने वाला नाभिकीय संलयन (nuclear fusion) भारी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न करता है, जो प्रकाश और ऊष्मा के रूप में बाहर निकलती है।
· तारे आकाशगंगाओं (galaxies) की मूल इकाई हैं। केवल हमारी आकाशगंगा "मिल्की वे" में ही लगभग 100 अरब तारे मौजूद हैं, जिनमें हमारा सूर्य भी शामिल है।
· तारे ही कार्बन, नाइट्रोजन और ऑक्सीजन जैसे भारी तत्वों का निर्माण करते हैं, जो जीवन के लिए अत्यावश्यक हैं।
· सूर्य के बाद पृथ्वी के सबसे निकट स्थित तारा प्रॉक्सिमा सेंटॉरी (Proxima Centauri) है, जो एक लाल बौना तारा (red dwarf star) है।
तारों का निर्माण:
· तारे का जन्म अणु बादलों (molecular clouds) में होता है। ये गैस और धूल से बने ठंडे तथा घने क्षेत्र होते हैं, जिन्हें “स्टेलर नर्सरी” (stellar nurseries) कहा जाता है।
· जब इन बादलों में कोई हलचल या व्यवधान उत्पन्न होता है, तो वे गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से सिकुड़ने लगते हैं और धीरे-धीरे एक प्रोटोस्टार (protostar) का निर्माण करते हैं।
· समय के साथ तापमान बढ़ने पर इनके भीतर नाभिकीय संलयन (nuclear fusion) शुरू हो जाता है। इसके बाद तारा मुख्य अनुक्रम चरण (main sequence stage) में प्रवेश करता है, जहाँ से वह प्रकाश और ऊर्जा का उत्सर्जन करता है।
तारों का अंत:
जब किसी तारे के भीतर मौजूद हाइड्रोजन समाप्त हो जाती है, तो वह मुख्य अनुक्रम चरण से बाहर निकल जाता है। सूर्य जैसे मध्यम आकार के तारे पहले लाल दानव (Red Giant) बनते हैं, फिर अपनी बाहरी परतों को छोड़कर उन्हें ग्रहीय नीहारिका (Planetary Nebula) का रूप दे देते हैं। अंततः उनके केंद्र में एक श्वेत बौना (White Dwarf) शेष रह जाता है।
- यदि कोई श्वेत बौना अपने साथी तारे से अतिरिक्त द्रव्यमान खींच लेता है, तो उसमें नोवा (Nova) विस्फोट हो सकता है।
- वे तारे जिनका द्रव्यमान चंद्रशेखर सीमा (1.4 सूर्य द्रव्यमान) से अधिक होता है, वे सुपरनोवा (Supernova) विस्फोट में बदल जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप उनके अवशेष या तो न्यूट्रॉन तारे (Neutron Stars) बनते हैं या फिर ब्लैक होल (Black Hole)।
- न्यूट्रॉन तारे अत्यधिक घने पिंड होते हैं, जिन्हें अक्सर उनके शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र के कारण पल्सर (Pulsars) या मैग्नेटार (Magnetars) के रूप में देखा जाता है।
ब्लैक होल और ब्रह्मांडीय पुनर्चक्रण:
यदि किसी तारे के केंद्र का द्रव्यमान तीन सूर्य द्रव्यमान से अधिक हो जाए, तो वह सिकुड़कर "ब्लैक होल" बन जाता है, जहाँ से प्रकाश भी बाहर नहीं निकल सकता।
- ब्लैक होल को सीधे नहीं देखा जा सकता, लेकिन इनके चारों ओर घूमते "अक्रेशन डिस्क" (accretion disk) से निकलने वाली एक्स-रे और गामा किरणों से इनका पता लगाया जाता है।
- "नोवा" और "सुपरनोवा" से बाहर निकली सामग्री ब्रह्मांड में नए तारों के निर्माण का आधार बनती है। इस प्रकार यह एक "कॉस्मिक चक्र" (cosmic cycle) को पूरा करता है।
लाल बौने तारे (Red Dwarfs):
लाल बौने तारे हमारी आकाशगंगा में सबसे छोटे और सबसे सामान्य तारे हैं। इनका द्रव्यमान सूर्य के 0.08 से 0.6 गुना तक होता है। इनकी सतह का तापमान लगभग 4000°C होता है और इनकी चमक (luminosity) बहुत कम होती है।
· ये तारे अपना ईंधन बहुत धीरे-धीरे खर्च करते हैं, इसलिए ये तारे खरबों वर्षों तक जलते रह सकते हैं, जबकि बड़े तारे अपेक्षाकृत जल्दी समाप्त हो जाते हैं।
· पृथ्वी के सबसे निकट स्थित तारा प्रॉक्सिमा सेंटॉरी (Proxima Centauri) भी एक लाल बौना तारा है।
ब्राउन ड्वार्फ (Brown Dwarfs):
ब्राउन ड्वार्फ ऐसे खगोलीय पिंड होते हैं, जिनकी विशेषताएँ ग्रह और तारे के बीच होती हैं।
- ये तारों की तरह गैस और धूल के सिकुड़ने से बनते हैं, लेकिन इनमें पर्याप्त द्रव्यमान नहीं होता कि हाइड्रोजन संलयन लगातार हो सके।
- इस वजह से इन्हें "विफल तारे" (failed stars) भी कहा जाता है।
- इनका द्रव्यमान बृहस्पति (Jupiter) से 70 गुना तक हो सकता है।
- इनका वायुमंडल गैस दानव ग्रहों (जैसे बृहस्पति और शनि) जैसा होता है, जिसमें अणु और जलवाष्प के बादल पाए जाते हैं।
निष्कर्ष:
UPM J1040−3551 AabBab की खोज, ब्राउन ड्वार्फ तथा तारकीय प्रणालियों के निर्माण की विविध प्रक्रियाओं को समझने की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इस अनोखी प्रणाली का अध्ययन खगोलविदों को न केवल ब्राउन ड्वार्फ की विशेषताओं को गहराई से समझने में मदद करेगा, बल्कि यह भी बताएगा कि वे ब्रह्मांडीय संरचना और विकास में कैसी भूमिका निभाते हैं।