संदर्भ:
विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर भारत ने दो नई आर्द्रभूमियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संरक्षित क्षेत्रों की सूची में शामिल कराया है। ये स्थल “उदयपुर स्थित मेनार वेटलैंड कॉम्प्लेक्स और फालोदी में स्थित खीचन वेटलैंड हैं। इन दोनों के शामिल होने के साथ ही भारत में रामसर स्थलों की कुल संख्या बढ़कर 91 हो गई है।
रामसर कन्वेंशन के बारे में:
- रामसर कन्वेंशन एक अंतर-सरकारी संधि है, जिस पर 1971 में ईरान के रामसर शहर में हस्ताक्षर किए गए थे। इसका उद्देश्य आर्द्रभूमियों का संरक्षण और उनका सतत (टिकाऊ) उपयोग सुनिश्चित करना है। इस संधि के तहत जिन आर्द्रभूमियों को मान्यता दी जाती है, उन्हें "रामसर स्थल" या "अंतरराष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमियाँ" कहा जाता है।
- इस कन्वेंशन के अनुसार, आर्द्रभूमियों की परिभाषा बहुत व्यापक है। इसमें वे सभी क्षेत्र शामिल हैं जो पीटलैंड या जल के क्षेत्र , चाहे प्राकृतिक हों या कृत्रिम, स्थायी हों या अस्थायी, जिनका पानी स्थिर हो या बहता हो, ताजा, खारा या नमकीन हो। यहाँ तक कि वे समुद्री क्षेत्र भी शामिल हैं जहाँ ज्वार के समय पानी की गहराई छह मीटर से अधिक नहीं होती।
- किसी आर्द्रभूमि को रामसर स्थल घोषित करने के लिए उसमें निम्न में से एक या अधिक मानदंडों को पूरा करना आवश्यक होता है, जैसे:
• किसी दुर्लभ या विशेष प्रकार की आर्द्रभूमि का प्रतिनिधित्व करना
• संकटग्रस्त, लुप्तप्राय या अति संकटग्रस्त प्रजातियों को आश्रय देना
• प्रवासी पक्षियों और मछलियों के लिए सुरक्षित आवास प्रदान करना
मेनार वेटलैंड कॉम्प्लेक्स के बारे में:
मेनार वेटलैंड कॉम्प्लेक्स दक्षिणी राजस्थान में स्थित है और इसमें तीन प्रमुख तालाब “ब्रह्म तालाब, धान्द तालाब और खेड़ा तालाब” शामिल हैं। ये तालाब आसपास की कृषि भूमि से जुड़े हुए हैं, जो मानसून के दौरान जलभराव के कारण एक विशाल आर्द्रभूमि में बदल जाती है। यह मौसमी जलभराव पक्षियों के लिए एक आदर्श प्राकृतिक आवास प्रदान करता है।
यहाँ की जैव विविधता उल्लेखनीय है:
- कुल 110 जल पक्षी प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से 67 प्रवासी पक्षी हैं।
- यह क्षेत्र दो अत्यंत संकटग्रस्त प्रजातियों “सफेद पीठ वाले गिद्ध और लंबी चोंच वाले गिद्ध” को भी आश्रय प्रदान करता है।
खीचन वेटलैंड के बारे में:
खीचन वेटलैंड उत्तर-पश्चिमी राजस्थान के थार मरुस्थल क्षेत्र में स्थित है। इसमें दो प्रमुख जल स्रोत “रात्रि नदी और विजयसागर तालाब" शामिल हैं, साथ ही आसपास की झाड़ियों और नदी किनारे की भूमि भी इसका हिस्सा हैं। यह शुष्क और अर्ध-रेगिस्तानी परिदृश्य पक्षियों के लिए अत्यंत अनुकूल वातावरण प्रदान करता है।
यहाँ की प्रमुख विशेषताएँ हैं:
- 150 से अधिक पक्षी प्रजातियाँ, जिनमें कई प्रवासी पक्षी भी शामिल हैं।
- हर वर्ष सर्दियों में आने वाली डेमोइसेल क्रेनों की विशाल झुंड, जिनकी संख्या 22,000 से अधिक होती है।
वैश्विक और एशियाई रैंकिंग:
· वैश्विक रैंकिंग: भारत ( 91) विश्व स्तर पर यूनाइटेड किंगडम (176 साइट) और मैक्सिको (144 साइट) के बाद तीसरे स्थान पर है।
· एशियाई नेतृत्व: रामसर स्थलों की संख्या के मामले में भारत एशिया में अग्रणी है ।
आर्द्रभूमियों का महत्व:
आर्द्रभूमियाँ अत्यंत महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र हैं, जो न केवल प्रकृति की विविधता को बनाए रखने में सहायक हैं, बल्कि मानव जीवन के लिए भी अनेक लाभ प्रदान करती हैं:
- जैव विविधता का संरक्षण: ये क्षेत्र विभिन्न वनस्पतियों और जीव-जंतुओं का आवास हैं और विशेष रूप से प्रवासी पक्षियों के लिए सुरक्षित आश्रय स्थल प्रदान करते हैं।
- बाढ़ नियंत्रण: आर्द्रभूमियाँ अतिरिक्त जल को अपने भीतर समाहित कर लेती हैं, जिससे बाढ़ की संभावना कम हो जाती है और जल प्रवाह संतुलित रहता है।
- जल संसाधन का स्रोत: ये पीने के पानी, सिंचाई और औद्योगिक उपयोग के लिए आवश्यक जल का एक प्रमुख स्रोत हैं।
- प्रवासी पक्षियों का ठिकाना: ये स्थल प्रवासी पक्षियों के प्रवास मार्ग और उनके जीवन चक्र में अहम भूमिका निभाते हैं, जिससे वैश्विक पारिस्थितिक संतुलन बना रहता है।
निष्कर्ष:
भारत में रामसर स्थलों की बढ़ती संख्या यह स्पष्ट संकेत देती है कि देश पर्यावरण संरक्षण और पारिस्थितिक संतुलन को लेकर प्रतिबद्ध है। मेनार और खीचन जैसे आर्द्रभूमि क्षेत्रों को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिलना न केवल जैव विविधता संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भविष्य की पीढ़ियों के लिए इन मूल्यवान पारिस्थितिकी तंत्रों को सुरक्षित रखने की दिशा में एक सराहनीय प्रयास भी है।