संदर्भ:
हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने मराठा वीर रघुजी भोसले प्रथम की शाही तलवार को लंदन में आयोजित सोथेबीज़ की नीलामी से पुनः प्राप्त किया। इस ऐतिहासिक तलवार की कुल क़ीमत ₹47.15 लाख रही, जिसमें परिवहन, बीमा और संचालन शुल्क शामिल हैं। यह पहल भारत की सांस्कृतिक विरासत को पुनः प्राप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
· यह तलवार मराठा साम्राज्य की सैन्य परंपरा और उत्कृष्ट शिल्पकला का अनमोल प्रतीक मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि यह तलवार 1817 की सिताबुल्दी की लड़ाई के बाद अंग्रेजों ने लूट ली थी या फिर उन्हें भेंट की गई थी।
रघुजी भोसले प्रथम के बारे में:
· रघुजी भोसले प्रथम नागपुर स्थित भोसले राजवंश के संस्थापक थे और 18वीं सदी की शुरुआत में छत्रपति शाहू महाराज के प्रमुख सेनानायक के रूप में कार्यरत थे। उन्हें 'सेनासाहेब सुभा' की उपाधि प्रदान की गई थी।
· उन्होंने 1745 और 1755 में बंगाल व उसके साथ ही ओडिशा, छत्तीसगढ़, सम्बलपुर और दक्षिण भारत तक कई सफल सैन्य अभियान चलाए। दक्षिण भारत में उन्होंने कर्नूल और कडप्पा के नवाबों को पराजित किया था।
· उनकी वीरता, रणनीतिक कौशल और नेतृत्व क्षमता के कारण इन क्षेत्रों में मराठा प्रभाव मज़बूती से स्थापित हुआ। बाद में उनके वंश ने विदर्भ जैसे क्षेत्रों पर शासन किया, जो लोहा और तांबे जैसी उपयोगी धातुओं के लिए प्रसिद्ध था। यही धातुएं उस समय हथियार निर्माण में प्रमुखता से प्रयुक्त होती थीं।
तलवार की बनावट व शैली:
भारत के युद्धक इतिहास में अनेक प्रकार की तलवारें प्रचलित थीं, जिनमें दो प्रमुख शैलियाँ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं:
1. खंडा तलवारें
- उत्पत्ति: भारत में 9वीं–10वीं सदी से प्रचलित।
- प्रयोगकर्ता: राजपूत, सिख और मराठा योद्धाओं द्वारा व्यापक रूप से उपयोग की जाती थीं।
- मुख्य विशेषताएं:
- सीधी और दोधारी (दोनों ओर धार वाली) तलवारें, जो प्रभावशाली वार के लिए उपयुक्त थीं।
- हिन्दू परंपरा के अनुरूप टोकरीनुमा मूठ (हैंडल) और हाथ की सुरक्षा हेतु विशेष रक्षक कवच।
- पूरी तरह से भारतीय लोहा या इस्पात से निर्मित।
2. फिरंगी तलवारें
- संकरणीय शैली: इन तलवारों में यूरोप में बनी ब्लेड (अक्सर जर्मनी के सोलिंगेन (Solingen) नगर से) को भारतीय ढंग की मूठ से जोड़ा जाता था।
- रघुजी भोसले की तलवार की विशेषताएं:
- ब्लेड: सीधी और एक धार वाली यूरोपीय तलवार की ब्लेड।
- मूठ: ‘मुल्हेरी’ शैली की भारतीय मूठ, जिस पर सोने की बारीक कोफ्तगिरी (इनले वर्क) की गई है।
- हैंडल की पकड़: हरे रंग के कपड़े से लिपटी हुई, जो इसके शाही या धार्मिक उपयोग का संकेत देती है।
- उत्कीर्ण लेख: मूठ पर देवनागरी लिपि में सोने से जड़ा हुआ शिलालेख “श्रीमंत रघोजी भोसले सेनासाहेब सुभा फिरंग”, जो इस तलवार को रघुजी भोसले प्रथम से सीधे जोड़ता है।
निष्कर्ष:
यह तलवार केवल एक ऐतिहासिक धरोहर नहीं, बल्कि मराठा साम्राज्य की वीरता, रणनीति और शिल्पकला का जीवंत प्रतीक है। इसकी वापसी न केवल हमारी सांस्कृतिक अस्मिता को सशक्त करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि भारत अपने विलुप्त या लूटे गए सांस्कृतिक धरोहरों को पुनः प्राप्त करने और उन्हें संरक्षित रखने के प्रति सजग और संकल्पित है।