संदर्भ:
पंजाब और हरियाणा के बीच जारी जल-विवाद को और अधिक गंभीर बनाते हुए, पंजाब सरकार ने राज्य विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) द्वारा हरियाणा को 4,500 क्यूसेक अतिरिक्त जल छोड़ने के हालिया निर्देश का विरोध किया गया।
पृष्ठभूमि:
भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) एक केंद्रीय संस्था है, जो भाखड़ा और ब्यास नदी परियोजनाओं का प्रबंधन करती है। हाल ही में बोर्ड ने हरियाणा को 4,500 क्यूसेक अतिरिक्त जल छोड़ने का आदेश जारी किया, जिसे पंजाब सरकार ने एकतरफा और अन्यायपूर्ण करार दिया है। पंजाब का कहना है कि यह निर्णय, राज्य के पहले से ही संकटग्रस्त जल संसाधनों पर अतिरिक्त बोझ डालने वाला है।
पंजाब विधानसभा का प्रस्ताव:
- कोई अतिरिक्त जल नहीं: प्रस्ताव में स्पष्ट किया गया कि पंजाब जल संकट का सामना कर रहा है और वह अपनी कानूनी हिस्सेदारी से अधिक जल देने में असमर्थ है।
- बीबीएमबी के निर्देश को अस्वीकार: विधानसभा ने कहा कि हरियाणा को अतिरिक्त जल आपूर्ति का निर्णय पंजाब से परामर्श किए बिना लिया गया, इसलिए यह अस्वीकार्य है।
- बीबीएमबी की संरचना और भूमिका पर पुनर्विचार की मांग: प्रस्ताव में बीबीएमबी के राजनीतिकरण की आशंका जताते हुए इसके कार्यप्रणाली और संरचना में सुधार की आवश्यकता पर बल दिया गया, ताकि पंजाब के नदी जल पर अधिकार सुरक्षित रह सकें।
- डैम सुरक्षा अधिनियम, 2021 को रद्द करने की मांग: पंजाब ने इस कानून को संघीय ढांचे के विरुद्ध बताते हुए इसे राज्यों के प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण की कोशिश करार दिया और इसे निरस्त करने की मांग दोहराई।
भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB) के बारे में:
- यह बोर्ड पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 की धारा 79 के तहत स्थापित हुआ था।
- इसे पहले भाखड़ा प्रबंधन बोर्ड कहा जाता था।
मुख्य कार्य:
- भाखड़ा-नंगल तथा ब्यास (सतलुज लिंक और पोंग डैम) परियोजनाओं का संचालन, प्रबंधन और रख-रखाव।
- पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली एवं चंडीगढ़ को जल एवं विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करना।
जल वितरण पर संवैधानिक और कानूनी ढांचा
संवैधानिक प्रावधान:
• राज्य सूची (प्रवेश 17): जल आपूर्ति, सिंचाई, नहरों और जल निकासी संबंधी विषयों पर राज्यों को अधिकार प्राप्त हैं।
• संघ सूची (प्रवेश 56): केंद्र सरकार को अंतर-राज्यीय नदियों के विकास और नियंत्रण का अधिकार प्राप्त है।
• अनुच्छेद 262: संसद को यह अधिकार देता है कि वह अंतर-राज्यीय नदी जल विवादों के समाधान हेतु विधिक प्रावधान बना सके।
महत्वपूर्ण विधिक प्रावधान:
• नदी बोर्ड अधिनियम, 1956: यह अधिनियम केंद्र सरकार को नदी विकास एवं प्रबंधन हेतु परामर्शदात्री भूमिका निभाने वाले नदी बोर्डों की स्थापना की अनुमति देता है।
• अंतर-राज्यीय जल विवाद अधिनियम, 1956: जब संबंधित राज्य आपसी सहमति से विवाद सुलझाने में असफल हों, तब केंद्र सरकार न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) गठित कर सकती है, जो विवाद का निपटारा करता है।
निष्कर्ष:
पंजाब विधानसभा द्वारा पारित यह प्रस्ताव केंद्र सरकार की जल प्रबंधन नीतियों को सीधी संवैधानिक चुनौती प्रदान करता है। जल संकट की बढ़ती गंभीरता और राज्यों के बीच गहराते तनाव के बीच यह मुद्दा अब केवल प्रशासनिक निर्णय नहीं, बल्कि नीति-निर्माण, न्यायिक व्याख्या और भारत के संघीय ढांचे की मूल अवधारणाओं से जुड़ी व्यापक बहस का विषय बनता जा रहा है। आने वाले समय में केंद्र सरकार और न्यायपालिका की भूमिका निर्णायक होगी, जो यह निर्धारित करेगी कि भारत के जटिल नदी जल प्रबंधन तंत्र में राज्यीय अधिकार, पारिस्थितिक संतुलन और जल की न्यायसंगत उपलब्धता के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित किया जाए।