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Blog / 09 Sep 2025

प्रोटीन लैंग्वेज मॉडल्स

संदर्भ:

मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) के शोधकर्ताओं की एक टीम ने प्रोटीन लैंग्वेज मॉडल (pLM) की कार्यप्रणाली को समझने में एक महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है। ये एआई-आधारित मॉडल यह अनुमान लगाने में मदद करते हैं कि प्रोटीन किस प्रकार मुड़ते (fold) हैं और किस तरह कार्य करते हैं, जो नई दवाओं और टीकों की डिज़ाइन के लिए बेहद आवश्यक जानकारी है। अब तक ये मॉडल एक ब्लैक बॉक्सकी तरह माने जाते थे, अर्थात ये सटीक परिणाम तो देते थे, लेकिन उनकी कार्यप्रणाली को स्पष्ट रूप से समझ पाना मुश्किल था। इस चुनौती को हल करने के लिए MIT टीम ने स्पार्स ऑटोएन्कोडर्स नामक तकनीक का उपयोग किया, जिसकी मदद से इन मॉडलों की आंतरिक प्रक्रियाओं को समझने और उनके पीछे छिपे पैटर्न को उजागर करने में मदद मिली।

प्रोटीन लैंग्वेज मॉडल्स के बारे में:

·        प्रोटीन 20 प्रकार के अमीनो एसिड्स से बने होते हैं, जो एक निश्चित क्रम (sequence) में जुड़े रहते हैं। यही क्रम प्रोटीन को जटिल त्रिआयामी (3D) संरचना में मोड़ देता है और वही संरचना उसके कार्य (function) को निर्धारित करती है।

·        प्रोटीन लैंग्वेज मॉडल्स (pLMs) को लाखों प्रोटीन अनुक्रमों पर प्रशिक्षित किया जाता है। इनका काम भाषा मॉडलों (जैसे ChatGPT) की तरह होता है, लेकिन अंतर सिर्फ इतना है कि जहाँ भाषा मॉडल अगला शब्द अनुमानित करते हैं, वहीं pLMs अगला अमीनो एसिड पूर्वानुमान करते हैं।

·        अनुक्रमों के पैटर्न सीखकर pLMs ये कार्य कर सकते हैं:

o   प्रोटीन की संरचना का पूर्वानुमान लगाना

o   प्रोटीन के कार्य का सुझाव देना

o   नई दवाओं और टीकों के डिज़ाइन में सहायता करना

·        लेकिन चुनौती यह रही कि इनके भीतर काम करने की प्रक्रिया को समझना बहुत कठिन था। न्यूरल नेटवर्क की संरचना इतनी जटिल है जिससे यह निर्धारित करना मुश्किल हो जाता है कि कौन सा न्यूरॉन विशिष्ट पैटर्न को पहचानने या पूर्वानुमान लगाने के लिए ज़िम्मेदार है।

नवाचारपूर्ण समाधान:

  • इस जटिल समस्या को हल करने के लिए MIT के शोधकर्ताओं ने स्पार्स ऑटोएन्कोडर्स नामक तकनीक का उपयोग किया। ये अपेक्षाकृत छोटे न्यूरल नेटवर्क होते हैं, जिन्हें प्रोटीन लैंग्वेज मॉडल्स की आंतरिक गतिविधियों पर प्रशिक्षित किया गया। इनकी विशेषता यह है कि ये जटिल डेटा से अलग-अलग पैटर्न को अलग करके स्पष्ट रूप से सामने लाते हैं।
  • इस प्रक्रिया से वैज्ञानिक यह समझ पाते हैं कि मॉडल ने कौन-सी जानकारी सीखी है और प्रत्येक फीचर वास्तव में क्या दर्शाता है। इन विशेषताओं का गहराई से विश्लेषण करने पर मॉडल की भविष्यवाणियों को अधिक स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है। परिणामस्वरूप दवाओं और टीकों की डिज़ाइन में इन मॉडलों का इस्तेमाल अधिक भरोसे और सटीकता के साथ किया जा सकता है।

शोध के लाभ:

         दवा की खोज: प्रोटीन के महत्वपूर्ण हिस्सों की पहचान करके डिज़ाइन को तेज़ करना।

         वैक्सीन डिज़ाइन: लक्षित प्रोटीन पर और अधिक सटीकता से काम करना।

         एआई पारदर्शिता: वैज्ञानिक अनुसंधान में एआई मॉडलों को अधिक समझने योग्य और भरोसेमंद बनाना।

निष्कर्ष:

यह नवीन तकनीक प्रोटीन अनुसंधान में क्रांति ला सकती है। इससे वैज्ञानिकों को जटिल जैविक डेटा को बेहतर तरीके से समझने और अधिक प्रभावी उपचार विकसित करने में मदद मिलेगी। प्रोटीन लैंग्वेज मॉडल्स की कार्यप्रणाली को उजागर करके शोधकर्ता नए जैविक दृष्टिकोण खोज सकते हैं और चिकित्सा तथा बायोटेक्नोलॉजी में बड़े नवाचारों का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।