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Blog / 19 Jun 2025

पोर्टुलाका भारत

संदर्भ:
राजस्थान के जयपुर के पास अरावली की पहाड़ियों में एक नई फूलदार पौधे की प्रजाति पोर्टुलाका भारत की खोज हुई है। यह दुर्लभ खोज, ऐतिहासिक गलताजी मंदिर के पास स्थित शुष्क और पथरीली ढलानों में की गई, जो भारत के शुष्क क्षेत्रों की छुपी हुई जैव विविधता को उजागर करती है और कम खोजे गए क्षेत्रों में आवास संरक्षण के महत्व को रेखांकित करती है।

अनुसंधान की मुख्य विशेषताएँ:
पोर्टुलाका भारत एक नई खोजी गई फूलदार पौधे की प्रजाति है, जो अरावली की पहाड़ियों की सूखी ढलानों की पथरीली दरारों में पाई गई है। अब तक, इस प्रजाति के केवल 10 पौधे ही वन्य रूप में पाए गए हैं, जिससे यह अत्यंत दुर्लभ और संकटग्रस्त मानी जाती है।
इस पौधे को हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर और लखनऊ में नियंत्रित परिस्थितियों में उगाया गया ताकि इसके विकास पैटर्न और बनावट की स्थिरता को समझा जा सके। राष्ट्रीय हर्बेरियम संग्रह से तुलना करने के बाद इसे आधिकारिक रूप से नई प्रजाति के रूप में मान्यता दी गई।
मौजूदा जानकारी की कमी के कारण इसे फिलहाल IUCN रेड लिस्ट के दिशानिर्देशों के अनुसार "डेटा अपर्याप्त" (Data Deficient) की श्रेणी में रखा गया है।
इस खोज को औपचारिक रूप से अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक जर्नल Phytotaxa में प्रकाशित किया गया है। शोध दल में कोलकाता और देहरादून स्थित भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण (BSI) के सदस्य शामिल थे।

Portulaca Bharat

पोर्टुलाका भारत की वनस्पति विशेषताएँ
विपरीत दिशा में और थोड़े अंदर की ओर मुड़े हुए पत्ते
हल्के पीले रंग के फूल जिनके सिरे क्रीम-सफेद रंग में बदलते हैं
परागकण धारकों (stamen filaments) पर ग्रंथियुक्त रोयें
शुष्क परिस्थितियों के अनुकूल मोटी जड़ प्रणाली

ये विशेषताएँ पोर्टुलाका भारत को भारत में पाए जाने वाले अन्य पोर्टुलाका वंश के पौधों से अलग बनाती हैं। यह वंश कठोर और रसदार पौधों का समूह है, जो उष्णकटिबंधीय और अर्ध-शुष्क पर्यावरण में पाए जाते हैं।

पारिस्थितिकीय महत्व
पोर्टुलाका वंश में विश्व स्तर पर लगभग 153 प्रजातियाँ हैं, जिनमें से 11 भारत में ज्ञात हैं, और इनमें से 4 स्थानिक (endemic) हैं।
पोर्टुलाका भारत भारत की स्थानिक वनस्पतियों में एक नया योगदान देता है और अरावली जैसे अर्ध-शुष्क क्षेत्रों के पारिस्थितिक महत्व को दर्शाता है।
अरावली पर्वतमाला, जो पृथ्वी की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है, अद्वितीय सूक्ष्म-आवासों का समर्थन करती है और पौधों की स्थानिकता के लिए एक हॉटस्पॉट मानी जाती है।

संरक्षण संबंधी चिंताएँ
पोर्टुलाका भारत की केवल एक ही ज्ञात आबादी है और यह विशिष्ट आवास परिस्थितियों पर निर्भर है, जिससे यह जलवायु परिवर्तन, भूमि क्षरण और आवास क्षति के प्रति संवेदनशील बन जाती है।
शोधकर्ताओं ने लक्षित फील्ड सर्वेक्षण, इन सिटू  (प्राकृतिक आवास में) संरक्षण और एक्स सिटू (प्राकृतिक आवास के बाहर) संरक्षण उपायों की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है।
अरावली जैसे शुष्क पारिस्थितिक तंत्रों को अक्सर संरक्षण योजनाओं में नजरअंदाज कर दिया जाता है, जबकि इनका जैव विविधता में महत्वपूर्ण योगदान है।

व्यापक प्रभाव
पोर्टुलाका भारत की खोज निम्नलिखित क्षेत्रों में नए शोध मार्ग खोलती है:
फाइटोजियोग्राफिकल अनुसंधान (वनस्पति वितरण का अध्ययन), शुष्क क्षेत्रों में विकासात्मक पैटर्न को समझने के लिए।
संरक्षण जीवविज्ञान, विशेष रूप से सीमित क्षेत्र में पाई जाने वाली प्रजातियों पर ध्यान केंद्रित करना।
जलवायु सहनशीलता अध्ययन, विशेषकर चरम परिस्थितियों में अनुकूलित पौधों के माध्यम से।

निष्कर्ष
पोर्टुलाका भारत, केवल एक वनस्पति खोज नहीं है बल्कि यह भारत की शुष्क भूमि में छिपी हुई पारिस्थितिक संपदा का एक सामयिक स्मरण करवाता है। ऐसी दुर्लभ प्रजातियों और उनके नाजुक आवासों की रक्षा के लिए संरक्षण उपायों को मजबूत करना और वैज्ञानिक सर्वेक्षणों में निवेश करना आवश्यक है।