संदर्भ:
हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने महिला राजनीतिक कार्यकर्ताओं को POSH अधिनियम, 2013 के दायरे में शामिल करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया। यह याचिका अधिवक्ता एम.जी. योगमाया द्वारा दायर की गई थी। याचिका में दलील दी गई थी कि राजनीतिक दलों को “नियोक्ता” (Employer) माना जाना चाहिए और उनके दफ़्तरों को “कार्यस्थल” (Workplace) की श्रेणी में लाया जाना चाहिए।
सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ:
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने राजनीतिक दलों को कानूनन “नियोक्ता” मानने की मांग पर सवाल उठाए।
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- अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि राजनीतिक दलों को नियोक्ता और उनके कार्यालयों को कार्यस्थल माना गया तो यह “पैंडोरा का बॉक्स” (यानी ऐसी स्थिति जिससे कई नई और जटिल समस्याएँ उत्पन्न हो जाएँ) खोलने जैसा होगा, क्योंकि तब अनौपचारिक, बिना वेतन वाले और लगातार बदलते राजनीतिक माहौल (जैसे पार्टी कार्यालयों और चुनावी अभियानों) को भी कानूनी नियंत्रण में लाना पड़ेगा।
- अंततः पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि इस प्रकार का बदलाव न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता, बल्कि यह विधायिका का कार्य है।
- अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि राजनीतिक दलों को नियोक्ता और उनके कार्यालयों को कार्यस्थल माना गया तो यह “पैंडोरा का बॉक्स” (यानी ऐसी स्थिति जिससे कई नई और जटिल समस्याएँ उत्पन्न हो जाएँ) खोलने जैसा होगा, क्योंकि तब अनौपचारिक, बिना वेतन वाले और लगातार बदलते राजनीतिक माहौल (जैसे पार्टी कार्यालयों और चुनावी अभियानों) को भी कानूनी नियंत्रण में लाना पड़ेगा।
पॉश (POSH) अधिनियम के बारे में:
साल 2013 में लागू किया गया POSH अधिनियम भारत का पहला ऐसा विशेष कानून है, जिसका मुख्य उद्देश्य कार्यस्थलों पर महिलाओं के साथ होने वाले यौन उत्पीड़न को रोकना और उससे जुड़े मामलों का समाधान सुनिश्चित करना है। यह अधिनियम सुप्रीम कोर्ट द्वारा 1997 में जारी विशाखा दिशानिर्देशों पर आधारित है।
पॉश (POSH) अधिनियम की मुख्य बातें:
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- दायरा: यह कानून सभी महिला कर्मचारियों पर लागू होता है, चाहे वे सरकारी विभागों, निजी कंपनियों, गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) या असंगठित क्षेत्रों में काम कर रही हों।
- यौन उत्पीड़न की परिभाषा: इसमें अवांछित शारीरिक स्पर्श, यौन प्रस्ताव, अशोभनीय या यौन संकेत वाले बयान और किसी भी प्रकार का मौखिक या अमौखिक आचरण शामिल है।
- नियोक्ता की ज़िम्मेदारियाँ:
- जिन संस्थानों में 10 या उससे अधिक कर्मचारी हों, वहाँ आंतरिक शिकायत समिति (ICC) का गठन अनिवार्य है।
- जिन कार्यस्थलों पर 10 से कम कर्मचारी हों, वहाँ शिकायतें स्थानीय शिकायत समिति (LCC) को भेजी जानी चाहिए।
- कार्यस्थल पर नियमित रूप से जागरूकता और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना आवश्यक है।
- प्रत्येक नियोक्ता का कर्तव्य है कि वह सुरक्षित और सम्मानजनक कार्य वातावरण सुनिश्चित करना चाहिए।
- जिन संस्थानों में 10 या उससे अधिक कर्मचारी हों, वहाँ आंतरिक शिकायत समिति (ICC) का गठन अनिवार्य है।
- दंड: यदि संस्थान कानून का पालन नहीं करते, तो उन पर जुर्माना लगाया जा सकता है और गंभीर मामलों में उनका व्यवसायिक लाइसेंस तक रद्द किया जा सकता है।
- दायरा: यह कानून सभी महिला कर्मचारियों पर लागू होता है, चाहे वे सरकारी विभागों, निजी कंपनियों, गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) या असंगठित क्षेत्रों में काम कर रही हों।
इस अधिनियम का मूल उद्देश्य यह है कि हर महिला को किसी भी क्षेत्र में गरिमा, सुरक्षा और समानता के साथ काम करने का अधिकार मिले।
निष्कर्ष:
कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है और यह संविधान में निहित समानता, गरिमा और स्वतंत्रता के सिद्धांतों के खिलाफ है। POSH अधिनियम, अंतरराष्ट्रीय समझौतों जैसे CEDAW से भी जुड़ा है और यह केवल एक कार्यस्थल नीति नहीं बल्कि संवैधानिक सुरक्षा कवच है। हालाँकि, यह हालिया फैसला दिखाता है कि राजनीति जैसे कुछ अनौपचारिक क्षेत्र अभी भी इसके दायरे से बाहर हैं। इसलिए कानून में सुधार आवश्यक है। जैसे-जैसे अधिक महिलाएँ चुनावी राजनीति, अभियान प्रबंधन और जमीनी स्तर की गतिविधियों में शामिल हो रही हैं, उनके लिए यौन उत्पीड़न से मुक्त राजनीतिक माहौल का कानूनी प्रावधान होना बेहद ज़रूरी है।