संदर्भ:
हाल ही में आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) ने दक्षिण पूर्व और पूर्वी एशिया में बढ़ते प्लास्टिक प्रदूषण संकट पर चिंता जताई है। यह टिप्पणी ऐसे समय पर आई है, जब वैश्विक प्लास्टिक संधि पर संयुक्त राष्ट्र की अंतिम वार्ता अगस्त 2025 में आयोजित होने वाली है।
वर्तमान स्थिति:
· आसियान प्लस थ्री (APT) क्षेत्र—जिसमें चीन, जापान और दक्षिण कोरिया के साथ 10 आसियान देश (ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम) शामिल हैं—प्लास्टिक उपयोग में अभूतपूर्व वृद्धि का सामना कर रहा है।
· OECD की रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान नीतियों के तहत इस क्षेत्र में प्लास्टिक की खपत 2022 के 152 मिलियन टन से बढ़कर 2050 तक 280 मिलियन टन तक पहुँच जाएगी।
· यह वृद्धि मुख्य रूप से पैकेजिंग उत्पादों से हो रही है, जो प्लास्टिक उपभोग का सबसे बड़ा हिस्सा हैं।
वैश्विक प्रभाव:
रिपोर्ट प्लास्टिक के जीवनचक्र से होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के महत्वपूर्ण योगदान पर भी प्रकाश डालती है। अनुमान है कि आसियान प्लस थ्री क्षेत्र में प्लास्टिक उत्पादन और अपशिष्ट प्रबंधन से होने वाला उत्सर्जन 2022 के 0.6 गीगाटन CO₂e से लगभग दोगुना होकर 2050 तक 1 गीगाटन CO₂e से अधिक पहुँच जाएगा।
वैश्विक प्लास्टिक संधि के बारे में:
वैश्विक प्लास्टिक संधि, जिसका आधिकारिक शीर्षक "प्लास्टिक प्रदूषण समाप्त करें: एक अंतर्राष्ट्रीय कानूनी रूप से बाध्यकारी साधन की ओर" है, प्लास्टिक प्रदूषण की बढ़ती समस्या से निपटने के लिए बातचीत के अधीन एक ऐतिहासिक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है।
इसका उद्देश्य प्लास्टिक के पूरे जीवनचक्र—उत्पादन से लेकर निपटान तक—के प्रबंधन के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी उपाय लागू करना है, जिससे हमारे समय की सबसे गंभीर पर्यावरणीय चुनौतियों में से एक का समाधान किया जा सके।
उद्देश्य:
यह संधि वर्ष 2040 तक प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने और प्लास्टिक के लिए एक चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने का प्रयास करती है। इसमें टिकाऊ प्रथाओं की ओर बदलाव शामिल हैं, जो प्लास्टिक के उपयोग के सभी चरणों—डिज़ाइन, उत्पादन, उपभोग और निपटान—में प्रबंधन पर जोर देते हैं। एक चक्रीय प्रणाली स्थापित करके, इस संधि का उद्देश्य प्लास्टिक कचरे को न्यूनतम करना और वैश्विक स्तर पर इसके पर्यावरणीय प्रभाव को कम करना है।
वार्ता के मुख्य क्षेत्र:
वार्ता प्रक्रिया के दौरान चर्चाएँ निम्नलिखित पर केंद्रित हैं:
• एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक (जैसे स्ट्रॉ, बैग और बोतलें) को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना।
• पुनर्चक्रणीयता (Recycle) के लिए डिज़ाइन मानक तय करना ताकि प्लास्टिक उत्पादों का पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग आसान हो सके।
• अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए एक ढाँचा तैयार करना, विशेष रूप से प्लास्टिक प्रदूषण की सीमा पार प्रकृति को देखते हुए।
भारत का दृष्टिकोण:
प्लास्टिक के सबसे बड़े उपभोक्ताओं और उत्पादकों में से एक होने के कारण, भारत इस संधि के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की स्थिति है। यद्यपि भारत ने अब तक औपचारिक रूप से अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है, किंतु संभावना है कि वह ऐसा संतुलित दृष्टिकोण अपनाएगा जो पर्यावरण संरक्षण तथा विकासात्मक आवश्यकताओं—दोनों के मध्य संतुलन स्थापित करे। सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) के प्रति भारत की प्रतिबद्धता और वैश्विक पर्यावरणीय शासन में उसकी सुदृढ़ होती भूमिका इस संदर्भ में निर्णायक सिद्ध हो सकती है।
निष्कर्ष:
जब विश्व वैश्विक प्लास्टिक संधि पर संयुक्त राष्ट्र वार्ता के अंतिम चरण की तैयारी कर रहा है, OECD की रिपोर्ट यह संकेत देती है कि त्वरित और ठोस कार्रवाई की आवश्यकता है। दक्षिण-पूर्व और पूर्वी एशिया, जो वैश्विक प्लास्टिक रिसाव का एक-तिहाई से अधिक योगदान करते हैं, को प्लास्टिक प्रदूषण पर नियंत्रण तथा पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य की सुरक्षा हेतु निर्णायक कदम उठाने होंगे।