सन्दर्भ:
एक प्रमुख खाद्य और पेय उद्योग संघ का कहना है कि “पाम ऑयल फ्री” या “नो पाम ऑयल” जैसे लेबल भ्रामक हैं, क्योंकि ये वैज्ञानिक तथ्यों की बजाय मार्केटिंग रणनीतियों पर आधारित होते हैं। हाल के वर्षों में कई ऑनलाइन प्रभावशाली लोग और सेलिब्रिटी पाम ऑयल को “हानिकारक” बताकर इसे स्वास्थ्य के लिए खतरा बता चुके हैं। यह बहस इस सवाल को जन्म देती है कि क्या पाम ऑयल को लेकर किए जा रहे दावे वैज्ञानिक प्रमाणों पर आधारित हैं, या फिर ये सिर्फ उपभोक्ताओं को प्रभावित करने की एक प्रचार तकनीक हैं।
खाद्य तेलों की संरचना को समझना:
पाम ऑयल का उपयोग भारत में 19वीं सदी से हो रहा है। यह लंबे समय तक खराब न होने, सस्ती कीमत और तटस्थ स्वाद के कारण काफी लोकप्रिय है। अधिकतर पैक्ड खाद्य पदार्थ “जैसे चिप्स, बिस्किट, आइसक्रीम और चॉकलेट” में इसका व्यापक रूप से उपयोग होता है।
वनस्पति तेल मुख्य रूप से तीन प्रकार के फैटी एसिड से मिलकर बने होते हैं:
• सैचुरेटेड फैटी एसिड (SFA): यह शरीर में एलडीएल (बुरा कोलेस्ट्रॉल) बढ़ाता है।
• मोनोअनसैचुरेटेड फैटी एसिड (MUFA): यह हृदय स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है।
• पॉलीअनसैचुरेटेड फैटी एसिड (PUFA): यह हृदय और मस्तिष्क के लिए जरूरी होता है।
पाम ऑयल का तरल भाग, जिसे पामोलीन कहते हैं, उसमें प्रति 100 ग्राम में लगभग 40 ग्राम SFA और 40 ग्राम MUFA होता है, जबकि शेष हिस्सा PUFA होता है।
इसके विपरीत, सरसों, सूरजमुखी और सफोला जैसे तेलों में SFA बहुत कम (10 ग्राम से भी कम) होता है और PUFA की मात्रा अधिक होती है। वहीं, जिन्हें अक्सर स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है, “जैसे देसी घी और नारियल तेल” उनमें SFA की मात्रा काफी अधिक होती है (घी में लगभग 70 ग्राम और नारियल तेल में करीब 90 ग्राम प्रति 100 ग्राम) होती है।
सैचुरेटेड फैट से जुड़े स्वास्थ्य जोखिम:
यदि भोजन में सैचुरेटेड फैट की मात्रा अधिक हो जाए, तो यह शरीर पर कई नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, जैसे:
• एलडीएल कोलेस्ट्रॉल का बढ़ना
• शरीर में सूजन की संभावना बढ़ना
• इंसुलिन की संवेदनशीलता में कमी
• हृदय रोग, स्ट्रोक और टाइप-2 मधुमेह का खतरा बढ़ जाना
ऐसी वसा जो सामान्य तापमान पर ठोस या अर्ध-ठोस होती हैं, जैसे पाम ऑयल, घी, नारियल तेल, मक्खन और लार्ड (सूअर की चर्बी) उनमें सैचुरेटेड फैटी एसिड स्वाभाविक रूप से अधिक पाया जाता है। इनका अत्यधिक सेवन लंबे समय में सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। इसलिए इनका उपयोग सीमित मात्रा में और संतुलित आहार के हिस्से के रूप में किया जाना चाहिए।
ट्रांस फैट और हाइड्रोजनेशन:
जब तरल वनस्पति तेल को अर्ध-ठोस बनाने के लिए हाइड्रोजनेट किया जाता है, तब उसमें ट्रांस फैटी एसिड (TFA) बनते हैं। इनसे कई स्वास्थ्य समस्याएं जुड़ी हैं:
• हृदय रोग
• मधुमेह
• कुछ प्रकार के कैंसर
• तंत्रिका तंत्र से जुड़ी बीमारियां
एक खास बात यह है कि पाम ऑयल को हाइड्रोजनेट करने की जरूरत नहीं होती क्योंकि यह पहले से ही अर्ध-ठोस होता है। यही कारण है कि 1990 के दशक में जब हाइड्रोजनेटेड तेलों को लेकर स्वास्थ्य चिंताएं बढ़ीं, तब पाम ऑयल की मांग बढ़ गई। इसके अलावा, पाम ऑयल में टोकोट्राइएनॉल्स जैसे लाभकारी यौगिक होते हैं, जो एंटीऑक्सीडेंट की तरह काम करते हैं और कोलेस्ट्रॉल कम करने में मदद कर सकते हैं।
सुरक्षित सेवन के लिए आहार संबंधी दिशा-निर्देश (ICMR के अनुसार):
• ऐसे तेलों का उपयोग करें जिनमें सैचुरेटेड फैट (SFA) कम और पॉलीअनसैचुरेटेड फैट (PUFA) अधिक हो। बेहतर परिणाम के लिए दो या अधिक तेलों को मिलाकर उपयोग करना फायदेमंद होता है।
• प्रतिदिन तेल की खपत 20 से 50 ग्राम (लगभग 4 से 10 चम्मच) होनी चाहिए, जो व्यक्ति की शारीरिक सक्रियता पर निर्भर करती है। अगर दिनचर्या अधिकतर बैठने की है, तो सेवन 20 से 30 ग्राम तक सीमित रखना चाहिए।
• तेल को बार-बार गर्म नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे PUFA ऑक्सीकरण होकर हानिकारक यौगिकों में बदल सकता है, जो दिल की बीमारी और कैंसर जैसी समस्याओं का कारण बन सकते हैं। अगर तेल को दोबारा उपयोग करना अनिवार्य हो, तो उसे हल्की आंच पर पकाने के लिए इस्तेमाल करें और दो दिनों के भीतर ही समाप्त कर दें।
• शरीर को आवश्यक स्वस्थ फैटी एसिड्स मुख्य रूप से मेवे, बीज (जैसे अलसी और चिया), सोयाबीन, अंडे और समुद्री मछलियों से मिलने चाहिए, जो पोषण के बेहतर स्रोत हैं।
निष्कर्ष:
पाम ऑयल को लेकर चल रही बहस यह दर्शाती है कि पोषण विज्ञान और जनधारणाओं के बीच अक्सर बड़ा अंतर होता है। हालांकि पाम ऑयल में कुछ अन्य वनस्पति तेलों की तुलना में सैचुरेटेड फैट की मात्रा अधिक होती है, लेकिन यदि इसका संतुलित और सीमित मात्रा में उपयोग किया जाए, तो यह स्वास्थ्य के लिए विशेष रूप से हानिकारक नहीं है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि जिन विकल्पों—जैसे घी और नारियल तेल—को आमतौर पर “सेहतमंद” माना जाता है, उनमें सैचुरेटेड फैट की मात्रा पाम ऑयल से भी अधिक होती है। "पाम ऑयल फ्री" जैसे प्रचारात्मक लेबल उपभोक्ताओं को गुमराह कर सकते हैं। इसके बजाय, आवश्यकता इस बात की है कि लोगों को तेलों के संतुलित मिश्रण, मॉडरेशन में सेवन और समग्र पोषण संतुलन के बारे में वैज्ञानिक और स्पष्ट जानकारी दी जाए। जब लोग सही तथ्यों के आधार पर फैसले लेंगे, तभी वे स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर हृदय रोग, मधुमेह जैसी जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों के जोखिम को कम कर पाएंगे।