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Blog / 29 Aug 2025

खुले में शौच पर डब्लूएचओ और यूनिसेफ की रिपोर्ट

संदर्भ:

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और यूनिसेफ (UNICEF) की संयुक्त निगरानी योजना (JMP) ने 2428 अगस्त 2025 को आयोजित वर्ल्ड वॉटर वीक के दौरान प्रोग्रेस ऑन हाउसहोल्ड ड्रिंकिंग वाटर एंड सैनीटेशन 20002024: स्पेशल फोकस ऑन इनइक्वैलिटीज़शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया कि कम-आय वाले देशों में खुले में शौच की समस्या अभी भी वैश्विक औसत से कई गुना अधिक बनी हुई है। यह स्थिति 2030 तक सतत विकास लक्ष्य-6 (SDG-6) अर्थात सभी के लिए स्वच्छ पानी और स्वच्छताहासिल करने के प्रयासों के लिए गंभीर चुनौती चुनौती बन रही है।

रिपोर्ट की प्रमुख बातें:

1. खुले में शौच:

·         कम-आय वाले देशों में खुले में शौच की दर अब भी वैश्विक औसत से चार गुना अधिक है।

·         यही वह आय वर्ग है जो 2030 तक इस प्रथा को पूरी तरह समाप्त करने के लक्ष्य की ओर अग्रसर नहीं है।

2. स्वच्छता में प्रगति:

·         वैश्विक स्तर पर सुरक्षित शौचालयों तक पहुंच 2015 के 48% से बढ़कर 2024 में 58% हो गई।

·         इस अवधि में लगभग 1.2 अरब लोगों को स्वच्छ और सुरक्षित शौचालय की सुविधा प्राप्त हुई।

3. पेयजल तक पहुंच:

·         2015 से 2024 के बीच सुरक्षित पेयजल की वैश्विक पहुंच 68% से बढ़कर 74% हो गई।

·         ग्रामीण क्षेत्रों में यह 50% से बढ़कर 60% हुई, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 83% पर स्थिर रही।

4. असमानताएं:
पानी और स्वच्छता सेवाओं की उपलब्धता में गहरी असमानताएं अब भी मौजूद हैं:

·         शहर और गाँव के बीच का अंतर

·         विभिन्न आय वर्गों के बीच असमानता

·         जातीय अल्पसंख्यकों और आदिवासी समुदायों की स्थिति

·         विकलांग व्यक्तियों की चुनौतियाँ

इसके अतिरिक्त, महिलाओं और लड़कियों पर पानी लाने का बोझ असमान रूप से अधिक पड़ता है।

5. मासिक धर्म स्वास्थ:

·         70 देशों में किए गए सर्वेक्षण से पता चला कि सभी आय वर्गों की महिलाएँ अब भी मासिक धर्म स्वच्छता से जुड़ी गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही हैं।

6. आवश्यक कदम:

·         कम-आय वाले देशों को पानी तक पहुंच में 7 गुना तेजी और स्वच्छता व स्वच्छता सेवाओं में 18 गुना अधिक प्रगति की आवश्यकता है।

·         निम्न-मध्य आय वाले देशों को अपनी वर्तमान प्रगति की गति को कम-से-कम दोगुना करना होगा।

परिणाम:

1. जनस्वास्थ्य पर खतरे:

  • खुले में शौच से पानी प्रदूषित होता है, जिससे दस्त, डायरिया जैसी बीमारियां और बच्चों की मृत्यु बढ़ती है।
  • यह पोषण और स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक असर डालता है।

2. मानवाधिकारों का उल्लंघन:

  • संयुक्त राष्ट्र ने पानी और स्वच्छता तक पहुंच को मौलिक मानवाधिकार माना है।
  • लगातार बनी असमानताएं सामाजिक बहिष्कार और अन्याय को और गहरा करती हैं।

3. लैंगिक और शैक्षिक असर:

  • शौचालय और मासिक धर्म स्वच्छता की कमी से लड़कियों की स्कूल उपस्थिति प्रभावित होती है।
  • पानी लाने का बोझ महिलाओं की शिक्षा और रोज़गार के अवसरों को सीमित करता है।

4. सतत विकास लक्ष्यों पर असर (SDG Setbacks):

  • खुले में शौच खत्म न कर पाना सिर्फ SDG 6 को ही नहीं, बल्कि SDG 1 (गरीबी खत्म करना), SDG 3 (अच्छा स्वास्थ्य), SDG 5 (लैंगिक समानता), और SDG 10 (असमानता घटाना) की प्रगति को प्रभावित करती है।

निष्कर्ष:

यह रिपोर्ट बताती है कि पानी और स्वच्छता के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर अच्छी प्रगति हुई है, लेकिन असमानता अब भी सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है। विशेषकर कम-आय और हाशिए पर रहने वाले क्षेत्रों में बदलाव की गति पर्याप्त नहीं है।

2030 तक सभी को पानी और स्वच्छता (WASH) उपलब्ध कराने के लिए देशों को चाहिए कि:

  • सबसे कमजोर और हाशिए पर रहने वाली आबादी को नीतियों और फंडिंग में प्राथमिकता दिया जाये।
  • स्थानीय स्तर पर सटीक डेटा इकट्ठा करें ताकि उपेक्षित समुदायों की जरूरतें पहचानी जा सकें।
  • स्वच्छता ढांचे (इंफ्रास्ट्रक्चर), व्यवहार परिवर्तन कार्यक्रमों और कम्युनिटी-लेड टोटल सैनीटेशन (CLTS) जैसी पहलों में बड़े पैमाने पर निवेश किया जाये।