संदर्भ:
नीति आयोग ने “भारत की ब्लू इकॉनमी: गहरे समुद्र और अपतटीय मत्स्य पालन की क्षमता का उपयोग करने की रणनीति” शीर्षक से एक नई रणनीति रिपोर्ट जारी की है। यह रिपोर्ट तटीय जल से परे समुद्री मत्स्य क्षेत्र की अब तक अप्रयुक्त क्षमता के अन्वेषण पर केंद्रित है। अध्ययन में इस क्षेत्र को पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ, आर्थिक रूप से व्यवहार्य और सामाजिक रूप से समावेशी बनाने के लिए एक चरणबद्ध रोडमैप प्रस्तुत किया गया है।
मुख्य बिंदु:
-
- भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मत्स्य उत्पादक देश है, जो लगभग 3 करोड़ लोगों की आजीविका को सहारा देता है।
- वित्त वर्ष 2023–24 में मछली और मत्स्य उत्पादों का निर्यात ₹60,523 करोड़ रहा।
- भारत की 11,098 किमी लंबी समुद्री तटरेखा, 9 तटीय राज्य और 4 केंद्र शासित प्रदेश, तथा 2 मिलियन वर्ग किमी से अधिक का विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) है।
- इसके बावजूद, गहरे समुद्र और अपतटीय मत्स्य संसाधन (Deep Sea & Offshore Fisheries) अब भी बड़े पैमाने पर अप्रयुक्त हैं।
- अनुमानतः 7.16 मिलियन टन की संभावित वार्षिक पैदावार (पारंपरिक और गैर-पारंपरिक प्रजातियाँ सम्मिलित) उपलब्ध हो सकती है।
- वर्तमान में भारत के पास उच्च समुद्री मत्स्य पालन के लिए बहुत कम पंजीकृत जहाज हैं, उदाहरण के लिए, हिंद महासागर टूना आयोग क्षेत्र में केवल 4 भारतीय ध्वज वाले जहाज पंजीकृत हैं, जबकि श्रीलंका और ईरान में एक-एक हजार से अधिक जहाज पंजीकृत हैं।
- भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मत्स्य उत्पादक देश है, जो लगभग 3 करोड़ लोगों की आजीविका को सहारा देता है।
मुख्य सिफारिशें एवं रणनीतिक हस्तक्षेप:
|
हस्तक्षेप का क्षेत्र |
विवरण |
|
विनियामक एवं विधिक सुधार (Regulatory & Legal Reform) |
EEZ (12–200 नौटिकल मील) में मत्स्य पालन हेतु एकीकृत कानून लागू करना, जहाज पंजीकरण कानूनों को अद्यतन करना, नोडल निकायों की जिम्मेदारियाँ परिभाषित करना। |
|
संस्थागत सुदृढ़ीकरण एवं क्षमता निर्माण (Institutional Strengthening & Capacity Building) |
वैज्ञानिक अनुसंधान क्षमता बढ़ाना, रीयल-टाइम डाटा संग्रह, मछली भंडार का मानचित्रण, जहाजों की ट्रैकिंग व निगरानी प्रणाली विकसित करना। |
|
नौका आधुनिकीकरण एवं अवसंरचना उन्नयन (Fleet Modernisation & Infrastructure Upgrade) |
बेहतर नौकाओं के लिए प्रोत्साहन (लंबी दूरी, सुरक्षा, ठंडा भंडारण), गहरे समुद्र के लैंडिंग केंद्रों का विकास, कनेक्टिविटी सुधार। |
|
सततता एवं पारिस्थितिक तंत्र आधारित प्रबंधन (Sustainability & Ecosystem-based Management) |
अत्यधिक मछली पकड़ने पर रोक, समुद्री आवासों की रक्षा, ‘बाय कैच’ कम करना, पर्यावरण अनुकूल मत्स्य तकनीकें अपनाना। |
|
वित्तपोषण एवं संसाधन जुटाव (Finance & Resource Mobilisation) |
समर्पित ‘डीप सी फिशिंग डेवलपमेंट फंड’ बनाना, पीपीपी (PPP) मॉडल अपनाना, सॉफ्ट लोन व बीमा कवर प्रदान करना तथा केंद्र और राज्य योजनाओं का समन्वय सुनिश्चित करना। |
|
सामुदायिक भागीदारी एवं समावेशन (Community Participation & Inclusivity) |
तटीय मछुआरा समुदायों को शामिल करना, सहकारी समितियों को सशक्त बनाना, समूह-स्वामित्व मॉडल अपनाना, मछुआरों के कौशल विकास को बढ़ावा देना। |
चुनौतियाँ:
-
- विनियामक खामियाँ: वर्तमान कानून बिखरे हुए हैं; EEZ में 12 नौटिकल मील से आगे मत्स्य पालन के लिए विशिष्ट कानून का अभाव है।
- उच्च लागत: गहरे समुद्र में मत्स्य पालन हेतु जहाज, प्रसंस्करण इकाइयाँ, कोल्ड चेन व निगरानी प्रणाली महँगी हैं, छोटे मछुआरे इन्हें वहन नहीं कर सकते।
- पर्यावरणीय जोखिम: गहरे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र नाजुक हैं; अत्यधिक मछली पकड़ने, बाय कैच और आवास क्षति का खतरा रहता है।
- अवसंरचना की कमी: गहरे समुद्र के लैंडिंग केंद्र, कोल्ड स्टोरेज और बड़े जहाजों के लिए बंदरगाह क्षमता सीमित है।
- शासन एवं समन्वय की चुनौती: केंद्र व राज्य सरकारों, और समुद्री, मत्स्य, पर्यावरण तथा रक्षा एजेंसियों के बीच बेहतर तालमेल आवश्यक है।
- विनियामक खामियाँ: वर्तमान कानून बिखरे हुए हैं; EEZ में 12 नौटिकल मील से आगे मत्स्य पालन के लिए विशिष्ट कानून का अभाव है।
निष्कर्ष:
नीति आयोग की यह रिपोर्ट भारत की ब्लू इकॉनमी को एक नई दिशा देने वाली है। यदि इसे प्रभावी ढंग से लागू किया जाए तो यह भारत के गहरे समुद्री और अपतटीय मत्स्य क्षेत्र में एक परिवर्तनकारी क्रांति ला सकती है जिससे उत्पादन बढ़ेगा, निर्यात में वृद्धि होगी, मछुआरों की आजीविका सशक्त होगी, और साथ ही समुद्री पारिस्थितिकी की रक्षा भी सुनिश्चित होगी।

