संदर्भ:
नीलगिरी चाय उद्योग इस समय लगातार लागत–मूल्य संकट से जूझ रहा है। अच्छी पैदावार होने के बावजूद छोटे चाय उत्पादकों को हरी पत्तियों की लगातार गिरती कीमतों के कारण गंभीर आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
नीलगिरी चाय के सामने चुनौतियाँ:
- हरी पत्तियों (GTL) की कम कीमतें: अक्सर उत्पादन लागत से भी कम दाम मिलते हैं।
- अधिक कारखाने: सीमित और मौसमी पैदावार के लिए बहुत ज़्यादा फैक्ट्रियाँ प्रतिस्पर्धा कर रही हैं।
- नीलामी में समस्याएँ: सही दाम तय नहीं हो पाता, धांधली और अग्रिम अनुबंधों का दबाव रहता है।
- निर्यात पर निर्भरता: रूस/सोवियत संघ पर ज़्यादा भरोसा, नए बाज़ारों में विविधता की कमी।
- गुणवत्ता की दिक्कतें: मिलावट और असमान गुणवत्ता से ब्रांड की साख गिरती है।
- बढ़ती लागत: मज़दूरी और इनपुट महंगे होने से छोटे किसानों पर बोझ बढ़ता है।
समाधान:
- खेती और प्रोसेसिंग में नई तकनीक और नवाचार अपनाना।
- नए बाज़ार और उत्पादों में विविधता लाना।
- नीतिगत सुधार, सब्सिडी और संस्थागत सहयोग को मज़बूत करना।
ये कार्यवाहियां निम्नलिखित के लिए आवश्यक हैं:
· लगातार लागत-मूल्य संकट पर काबू पाना
· नीलगिरी चाय उद्योग की दीर्घकालिक स्थिरता और विकास सुनिश्चित करना
· नीलगिरी चाय की एक प्रीमियम वैश्विक उत्पाद के रूप में प्रतिष्ठा को पुनर्जीवित करना
नीलगिरी चाय के बारे में:
नीलगिरी चाय मुख्य रूप से तमिलनाडु के नीलगिरी ज़िले में उगाई जाती है। यह अपनी तेज़, सुगंधित और भरपूर स्वाद वाली चाय के लिए मशहूर है। इसमें ऑर्थोडॉक्स और CTC (क्रश-टीयर-करल) दोनों किस्में शामिल हैं। यह विशेष रूप से आइस्ड टी ब्लेंड्स के लिए दुनिया भर में पसंद की जाती है।
- नीलगिरी का भौगोलिक वातावरण चाय के लिए उपयुक्त है, इसकी ऊँचाई (1,000–2,500 मीटर), वर्ष में दो मानसून और अच्छी जलनिकासी वाली लेटेराइट मिट्टी इसकी विशेषताएँ हैं।
- इस क्षेत्र की चाय उद्योग में लगभग 46,000 छोटे किसान, करीब 34,000 हेक्टेयर भूमि पर खेती करते हैं।
- नीलगिरी चाय को भौगोलिक संकेत (GI) दर्जा वर्ष 2008 में प्राप्त हुआ।
भारत का चाय उद्योग:
भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चाय उत्पादक है। यहाँ की चाय अपनी उच्च गुणवत्ता, भौगोलिक संकेतों, आधुनिक प्रसंस्करण तकनीकों, नवाचार और रणनीतिक मार्केटिंग के लिए प्रसिद्ध है।
· वर्ष 2022 में भारत में कुल 6.19 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में चाय की खेती की गई।
· वित्त वर्ष 2024 में चाय का उत्पादन लगभग 1,382 मिलियन किलोग्राम तक पहुँचा।
· भारत दुनिया का सबसे बड़ा चाय उपभोक्ता देश भी है, जहाँ लगभग 80% उत्पादन घरेलू खपत में इस्तेमाल होता है।
प्रमुख चाय उत्पादक क्षेत्र:
· असम: असम घाटी और कछार क्षेत्र
· पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, डुआर्स, तराई
· दक्षिण भारत: तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक (कुल राष्ट्रीय उत्पादन का लगभग 17%)
निर्यात प्रवृत्तियाँ:
· भारत दुनिया के शीर्ष 5 चाय निर्यातकों में शामिल है , जो कुल वैश्विक निर्यात में लगभग 10% का योगदान देता है । काली चाय (96%) निर्यात में सबसे आगे है, उसके बाद नियमित और हरी चाय का स्थान है।
· भारत 25 से अधिक देशों को चाय का निर्यात करता है, जिनमें संयुक्त अरब अमीरात, अमेरिका, इराक, ब्रिटेन और रूस जैसे शीर्ष खरीदार शामिल हैं , जो सामूहिक रूप से निर्यात का 50% से अधिक हिस्सा हैं।
सरकारी सहयोग:
भारत सरकार ने 1953 में चाय बोर्ड की स्थापना की थी, जो चाय उद्योग को नियंत्रित और बढ़ावा देता है। इसके प्रमुख कार्यक्रम:
- भारतीय मूल की पैकेज्ड चाय का प्रचार-प्रसार: मार्केटिंग और ट्रेड फेयर में मदद।
- चाय विकास और संवर्धन योजना (2021-26): उत्पादकता, गुणवत्ता सुधार, छोटे किसानों और मज़दूरों का कल्याण, अनुसंधान एवं बाज़ार विस्तार पर फोकस।
निष्कर्ष:
नीलगिरि चाय, जो कभी एक बहुमूल्य वैश्विक निर्यात थी, अब संरचनात्मक और आर्थिक खतरों का सामना कर रही है। नीलामी प्रणालियों में सुधार, गुणवत्ता नियंत्रण में सुधार और बाज़ार पहुँच को बढ़ाना, इसकी विरासत और इससे जुड़ी आजीविका को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।