संदर्भ:
हाल ही में भारत के कर्नाटक राज्य के चिक्कमगलूर ज़िले के मुदिगेरे तालुक के मधुगुंडी क्षेत्र (जो पश्चिमी घाट की तलहटी में स्थित है) में पिलिया मलेनाडु (Pilia Malenadu) नाम की एक नई मकड़ी की प्रजाति खोजी गई है।
इस प्रजाति के बारे में:
• वंश (Genus): यह प्रजाति पिलिया वंश की है, जो जम्पिंग स्पाइडर के साल्टिसिडे (Salticidae) परिवार से संबंधित है।
• नामकरण: इस प्रजाति का नाम “पिलिया मलेनाडु” उस क्षेत्र “मलेनाडु” के सम्मान में रखा गया है, जिसका अर्थ है “पहाड़ियों की भूमि”।
• आवास: ये मकड़ियाँ केवल दो विशेष पौधों “मेमेंसाइलन अम्बेलाटम (Memecylon umbellatum) और मेमेंसाइलन मालाबारिकम (Memecylon malabaricum)” पर पाई गईं। इससे स्पष्ट होता है कि इनका निवास स्थान अत्यंत सीमित और विशिष्ट पारिस्थितिक परिस्थितियों वाला है।
• नमूने: वैज्ञानिकों ने पहली बार इस वंश के नर और मादा दोनों नमूनों की पहचान की है, जिससे नई व महत्वपूर्ण शारीरिक संरचना (Morphological) की जानकारी प्राप्त हुई है।
खोज का महत्व:
यह खोज अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि पिलिया वंश की किसी मकड़ी की यह पहली आधिकारिक दर्ज उपस्थिति है जो लगभग 120 वर्षों के बाद मिली है। इससे पहले इस वंश की आखिरी ज्ञात प्रजाति 1902 में केरल में दर्ज की गई थी।
· यह खोज वैज्ञानिकों को पिलिया वंश की संरचना, पहचान और वर्गीकरण को अधिक सटीक रूप से समझने में मदद कर सकती है।
· यह मकड़ी पश्चिमी घाट में पाई गई है, जो जैव-विविधता का एक प्रमुख केंद्र है। यह दर्शाता है कि इस क्षेत्र में अभी भी कई अज्ञात और दुर्लभ प्रजातियाँ मौजूद हैं।
मलेनाडु क्षेत्र के बारे में:
मकड़ी का नाम पिलिया मलेनाडु कर्नाटक के मलेनाडु क्षेत्र से लिया गया है। “मलेनाडु” शब्द कन्नड़ भाषा के दो शब्दों से मिलकर बना है “मले” यानी बारिश और “नाडु” यानी भूमि, अर्थात “बारिश की भूमि”। यह क्षेत्र पश्चिमी घाट का प्रमुख हिस्सा है और इसकी विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
1. अधिक वर्षा: यहाँ भारी मानसूनी वर्षा होती है, जिससे घने जंगल और सदाबहार नदियाँ बनती हैं।
2. घना वन क्षेत्र: इस क्षेत्र में सदाबहार और अर्ध-सदाबहार उष्णकटिबंधीय वन पाए जाते हैं, जहाँ अनेक दुर्लभ और स्थानिक (Endemic) पौधे व जीव रहते हैं।
3. विशिष्ट सूक्ष्म आवास (Microhabitats): यहाँ के जंगलों में मेमेसिलॉन अम्बेलैटम (Memecylon umbellatum) और मेमेसिलॉन मालाबारिकम (Memecylon malabaricum) जैसे पौधों के नीचे छोटे-छोटे पारिस्थितिक स्थान हैं, जहाँ पिलिया मलेनाडु पाई गई।
4. जैव विविधता का केंद्र: यह क्षेत्र यूनेस्को विश्व धरोहर सूची में शामिल पश्चिमी घाट का हिस्सा है और यहाँ अनेक स्थानिक तथा दुर्लभ पौधे, उभयचर, सरीसृप और कीट पाए जाते हैं।
निष्कर्ष:
पिलिया मलेनाडु की खोज यह दर्शाती है कि भारत की जैव विविधता में अभी भी अनेक रहस्य छिपे हुए हैं, विशेषकर पश्चिमी घाट जैसे क्षेत्रों में। ऐसे पारिस्थितिक तंत्रों की रक्षा करना अत्यंत आवश्यक है, ताकि दुर्लभ और स्थानिक प्रजातियाँ सुरक्षित रह सकें। इससे न केवल पर्यावरणीय संतुलन बना रहेगा, बल्कि वैज्ञानिक अनुसंधान और ज्ञान में भी महत्वपूर्ण वृद्धि होगी।
