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Blog / 21 Jul 2025

पश्चिमी घाट में नई लाइकेन प्रजाति की खोज

संदर्भ:

भारत के पुणे स्थित MACS-अघारकर अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने पश्चिमी घाट में लाइकेन की एक नई प्रजाति की खोज की है, जो जैव विविधता की दृष्टि से विश्व के सबसे समृद्ध और संवेदनशील क्षेत्रों में से एक है। इस नई क्रस्टोज (पपड़ीदार) लाइकेन का नाम एलोग्राफा इफ्यूसोरेडिका (Allographa effusosoredica) रखा गया है। यह खोज न केवल भारत की विशिष्ट वनस्पतियों की सूची को और समृद्ध करती है, बल्कि उष्णकटिबंधीय पारिस्थितिकी तंत्रों में पाए जाने वाले सहजीवी जीवन रूपों और उनके विकास की जटिलता को समझने में भी अहम भूमिका निभाती है।

एलोग्राफा इफ्यूसोरेडिका की प्रमुख विशेषताएं:

         इस लाइकेन में नॉर्स्टिक्टिक एसिड नामक एक दुर्लभ रासायनिक यौगिक पाया जाता है, जो इसकी विशिष्टता को दर्शाता है।

         यह एफ्यूज सोरेडिया नामक विशेष संरचनाओं के माध्यम से अलैंगिक प्रजनन करती है, जो इसके प्रसार में सहायक होते हैं।

         इसमें Trentepohlia प्रजाति का एक शैवाल (algal partner) सहजीवी भागीदार के रूप में मौजूद होता है, जो प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से पोषण प्रदान करता है।

         इसकी बनावट Graphis glaucescens जैसी अन्य लाइकेन प्रजातियों से काफी मिलती-जुलती है, जिससे Graphidaceae परिवार में वर्गीकरण को लेकर विकासवादी (evolutionary) और टैक्सोनॉमिक प्रश्न खड़े होते हैं।

आधुनिक डीएनए अनुक्रमण तकनीकों (जैसे mtSSU, LSU, RPB2, ITS मार्कर) से यह पुष्टि हुई कि यह प्रजाति एलोग्राफा इफ्यूसोरेडिका के नज़दीक है, जिससे आनुवंशिक विकास की बेहतर समझ मिलती है।

New Lichen species reveals ancient symbiosis in the Western Ghats |  Department Of Science & Technology

लाइकेन के बारे में:

लाइकेन कोई अकेला जीव नहीं होता, बल्कि यह एक सहजीवी संघटन (symbiotic association) होता है जो मुख्य रूप से एक कवक (fungus) और एक फोटोबायोंट (अर्थात् प्रकाश संश्लेषण करने वाला जीव, जैसे कि हरा शैवाल या सायनोबैक्टीरिया) के बीच स्थापित होता है।

         कवक लाइकेन को आकार और सुरक्षा देता है।

         शैवाल सूर्य की रोशनी से भोजन बनाता है।

इनका आकार छोटा होने के बावजूद ये:

         बंजर भूमि में मिट्टी बनाने में सहायक होते हैं,

         कई कीटों का भोजन बनते हैं,

         पर्यावरण की गुणवत्ता को मापने के लिए बायोइंडिकेटर की तरह काम करते हैं।

यह नई खोज इस बात को उजागर करती है कि अभी भी इन सूक्ष्म लेकिन आवश्यक जीवों के बारे में हमें बहुत कुछ जानना बाकी है।

महत्त्व:

         यह खोज दर्शाती है कि लाइकेन में कवक और शैवाल के बीच का संबंध अत्यंत जटिल और परस्पर निर्भर होता है, जो सहजीवी जीवन की बारीकियों को समझने में मदद करता है।

         विशेष रूप से, इसमें मौजूद Trentepohlia प्रजाति के शैवाल की भूमिका इसके अस्तित्व और कार्यप्रणाली में बेहद महत्वपूर्ण है।

         यह प्रजाति पश्चिमी घाट जैसे वैश्विक जैव विविधता हॉटस्पॉट में पाई गई है, जिससे ऐसे संवेदनशील पारिस्थितिक क्षेत्रों के संरक्षण की आवश्यकता और भी स्पष्ट होती है।

         यह अध्ययन Allographa वंश के लिए नए आणविक (molecular) मानक निर्धारित करता है, जिससे भारत की लाइकेन विविधता की वैज्ञानिक समझ और सूची दोनों को सुदृढ़ता मिलती है।

प्रभाव:

         यह खोज इस बात को पुनः रेखांकित करती है कि पश्चिमी घाट जैसी संवेदनशील जैव विविधता क्षेत्रों के संरक्षण के लिए ठोस प्रयासों की अत्यधिक आवश्यकता है।

         यह इंगित करती है कि भारत में विशेषकर जैव विविधता हॉटस्पॉट्स में पाई जाने वाली लाइकेन प्रजातियों पर अधिक गहराई से आणविक स्तर पर शोध (molecular research) किया जाना आवश्यक है।

         यह अध्ययन सहजीवी जीवों के बीच मौजूद जटिल और अब तक अस्पष्ट आनुवंशिक संबंधों को उजागर करता है, जिससे हमें प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्रों की आंतरिक कार्यप्रणाली और परस्पर निर्भरता को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलती है।

निष्कर्ष:
यह शोध भारत की छिपी जैव विविधता और सहजीवी पारिस्थितिक तंत्रों को समझने की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह बताता है कि हमें जैव विविधता हॉटस्पॉट्स जैसे पश्चिमी घाट में आणविक स्तर पर और अधिक शोध करने की आवश्यकता है। यह भी याद दिलाता है कि चाहे कोई क्षेत्र कितना भी अध्ययन किया गया हो, प्रकृति हमेशा नई खोजों से चकित कर सकती है, जैसे-जैसे जलवायु संकट गहराता जा रहा है, ऐसे जीवों का अध्ययन और संरक्षण करना केवल वैज्ञानिक प्राथमिकता नहीं, बल्कि
पारिस्थितिक ज़रूरत बन चुका है।