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Blog / 03 May 2025

तेलंगाना में मिलीं नई अभिलेखीय खोज

सन्दर्भ:

प्राचीन दक्षिण भारतीय इतिहास के अध्ययन में एक महत्वपूर्ण प्रगति करते हुए, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की अभिलेख शाखा ने तेलंगाना के पेद्दापल्ली ज़िले के समीप गुंडारम रिज़र्व फ़ॉरेस्ट में एक अभिलेखीय सर्वेक्षण के दौरान ग्यारह अज्ञात अभिलेखों की पहचान की है। ये खोज दक्षिण भारत के प्रारंभिक ऐतिहासिक काल, विशेष रूप से सातवाहन वंश के शासनकाल के दौरान, उस क्षेत्र की सांस्कृतिक, राजनीतिक और धार्मिक परिस्थितियों को समझने में नई दिशाएँ प्रदान करती हैं।

खोज की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

ये अभिलेख पहली शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर छठी शताब्दी ईस्वी तक के समय को दर्शाते हैं। यह काल भारत के इतिहास में बहुत बदलावों का समय था, क्षेत्रीय शक्तियाँ उभर रही थीं, बौद्ध धर्म और ब्राह्मण परंपराएँ  फैल रही थीं और दक्कन क्षेत्र में व्यापारिक नेटवर्क विकसित हो रहे थे।

                    सातवाहन वंश, जिसने इस समय दक्कन के बड़े हिस्से पर शासन किया, इस क्षेत्र की सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संरचना को गहराई से प्रभावित करता था।

                    ये नए अभिलेख उस काल के इतिहास में कई जरूरी जानकारियाँ जोड़ते हैं।

ASI documents 11 ancient inscriptions in Telangana strengthening ties to  Asmaka and early Deccan history

मुख्य अभिलेख और उनका महत्व:

गुंडारम की चट्टानों पर मिले दो विशेष अभिलेख इतिहास के लिए बेहद महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं।

                    पहला अभिलेख: यह प्रारंभिक ब्राह्मी लिपि में लिखा गया है और इसमें हारितिपुत्र वंश के एक व्यक्ति का ज़िक्र है, जो संभवतः छुटु वंश से जुड़ा था। छुटु वंश एक छोटा राजवंश था जो सातवाहनों के समकालीन या अधीनस्थ माना जाता है।

    •  इस व्यक्ति ने बौद्ध भिक्षुओं के लिए एक गुफा खुदवाई थी, जिससे उस समय बौद्ध धर्म को मिल रहे संरक्षण का पता चलता है।
    • उसने खुद को सातवाहन राजकुमार कुमार हकुसिरी का मित्र बताया है। यह जानकारी उस समय के राजवंशों के बीच संबंध और राजनीतिक गठबंधनों की झलक देती है।
  •   दूसरा अभिलेख: यह अपने धार्मिक प्रतीकों के लिए उल्लेखनीय है। इसकी शुरुआत त्रिशूल और डमरू जैसे प्रतीकों से होती है, जो शैव धर्म से जुड़े माने जाते हैं।

o       इसके बाद यह उल्लेख किया गया है कि पहाड़ी के पूर्व की भूमि सिरी देवरा की है।

o       यह दक्षिण भारत में पहली बार है जब किसी प्रारंभिक अभिलेख में इस तरह के धार्मिक चिन्हों का प्रयोग हुआ है, जिससे यह संकेत मिलता है कि राजनैतिक सत्ता और धार्मिक पहचान के बीच संबंध बनना शुरू हो गया था।

व्यापक प्रभाव:

ये खोजें न केवल दक्षिण भारत की प्रारंभिक अभिलेखीय सामग्री में योगदान देती हैं, बल्कि इस बात को भी दर्शाती हैं कि उस समय धर्म, राजनीति और समाज के बीच किस तरह का तालमेल था।

                    त्रिशूल और डमरू जैसे चिन्हों का प्रयोग यह दिखाता है कि राजनैतिक शक्ति को धार्मिक प्रतीकों के ज़रिये वैध ठहराने की प्रवृत्ति उस समय शुरू हो रही थी, जो आगे चलकर भारतीय इतिहास में और गहराई से दिखने लगी।

निष्कर्ष:

गुंडारम में मिले ये अभिलेख इस बात को रेखांकित करते हैं कि सुनियोजित अभिलेखीय सर्वेक्षण भारत के प्राचीन इतिहास की अनदेखी परतों को उजागर करने में अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।इन अभिलेखों का दस्तावेज़ीकरण करके भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने न केवल तेलंगाना के क्षेत्रीय इतिहास को समृद्ध किया है, बल्कि प्राचीन दक्षिण भारत की राजनीतिक और धार्मिक संरचनाओं को समझने में भी एक अमूल्य योगदान दिया है।