संदर्भ:
हाल ही में आईआईटी दिल्ली और आईआईटी गांधीनगर के शोधकर्ताओं ने ‘जिला बाढ़ गंभीरता सूचकांक’ (District Flood Severity Index - DFSI) नामक सूचकांक विकसित किया है।
जिला बाढ़ गंभीरता सूचकांक के विषय में :
· अधिकांश मौजूदा बाढ़ सूचकांक बाढ़ की भयावहता, जैसे कि जलमग्न क्षेत्र या बाढ़ की घटनाओं की संख्या, पर केंद्रित होते हैं।
· हालाँकि, ये सूचकांक बाढ़ से होने वाली मानवीय क्षति—जैसे मृत्यु, चोट और विस्थापन—को पर्याप्त रूप से प्रतिबिंबित नहीं करते, जबकि ये तत्व आपदा प्रबंधन और नीतिगत योजना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं।
· भारत में जिला प्रशासन शासन और राहत कार्यों की प्रमुख इकाई है। ऐसे में, जिला-स्तरीय बाढ़ गंभीरता सूचकांक (DFSI) नीति-निर्माताओं को संसाधनों के प्रभावी आवंटन और प्राथमिकता निर्धारण में सहायक हो सकता है।
डीएफएसआई के घटक:
डीएफएसआई में कई कारक शामिल होते हैं:
• बाढ़ की घटनाओं की औसत अवधि (दिनों में)
• ऐतिहासिक रूप से बाढ़ग्रस्त ज़िले के क्षेत्र का प्रतिशत
• बाढ़ से हुई मौतों और चोटों की कुल संख्या
• प्रभावित लोगों के सापेक्ष प्रभाव के पैमाने का आकलन करने के लिए ज़िले की जनसंख्या
यह समग्र दृष्टिकोण बाढ़ की गंभीरता की एक अधिक समग्र समझ प्रदान करता है, जो बाढ़ के भौतिक और सामाजिक दोनों आयामों को दर्शाता है।
निहितार्थ:
विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि केवल बाढ़ की घटनाओं की संख्या, किसी क्षेत्र में बाढ़ की गंभीरता का सटीक आकलन नहीं कर सकती।
· उदाहरण स्वरूप, केरल का तिरुवनंतपुरम ज़िला यद्यपि बार-बार बाढ़ का सामना करता है, फिर भी वहाँ मृत्यु दर कम होने के कारण गंभीरता के पैमाने पर यह अपेक्षाकृत नीचे आता है। इसके विपरीत, पटना जैसे ज़िले, जहाँ बाढ़ की घटनाएँ अपेक्षाकृत कम हैं, अधिक मानवीय क्षति के कारण गंभीरता के उच्च स्तर पर आंके जाते हैं।
· यह स्थिति इस बात को रेखांकित करती है कि बाढ़ आकलन में मानवीय कारकों—जैसे मृत्यु, चोट और विस्थापन—को शामिल करना नीतिगत और प्रशासनिक दृष्टि से अत्यंत आवश्यक है।
भविष्य का दायरा:
· हालांकि डीएफएसआई एक महत्वपूर्ण प्रगति है, शोधकर्ताओं का कहना है कि वर्तमान में इसमें बाढ़ग्रस्त कृषि भूमि की सीमा जैसे कुछ डेटा शामिल नहीं हैं। भविष्य में इसमें और अधिक विस्तृत स्थानिक डेटा और शहरी-ग्रामीण अंतर शामिल किए जाएँगे। डीएफएसआई बाढ़ शमन रणनीतियों का मार्गदर्शन कर सकता है, पूर्व चेतावनी प्रणालियों में सुधार कर सकता है और बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में आपदा-रोधी योजना को सशक्त बनाने में भी सहायक हो सकता है।
भारत में बाढ़ स्थिति :
बाढ़ भारत की सबसे विनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं में से एक है, जो लगभग 40 मिलियन हेक्टेयर (भूमि का 10%) क्षेत्र प्रभावित करती है। सिंधु-गंगा-ब्रह्मपुत्र के मैदान सबसे अधिक बाढ़-प्रवण हैं, जिनमें असम, बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य अत्यधिक संवेदनशील हैं।
• खराब जल निकासी और अनियोजित विकास के कारण शहरी बाढ़ में वृद्धि हो रही है। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के परिणामस्वरूप वर्षा की तीव्रता में वृद्धि हो रही है, जिससे बाढ़ की आवृत्ति और उसकी गंभीरता दोनों में वृद्धि देखी जा रही है।
• अचानक बाढ़, आवास विनाश और विस्थापन बाढ़ के सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभावों को और बढ़ा देते हैं।
निष्कर्ष:
डीएफएसआई भारत की बाढ़ प्रबंधन रणनीति के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा, जिसमें केवल बाढ़ के पानी पर ध्यान केंद्रित करने से लेकर लोगों और प्रभाव को भी शामिल किया जाएगा। यह बढ़ती चरम मौसम की घटनाओं के युग में जलवायु-रोधी योजना बनाने और संवेदनशील आबादी की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है।