सन्दर्भ:
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) ने उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) की कार्यप्रणाली में एक बड़ा संशोधन प्रस्तावित किया है, ताकि आवास मुद्रास्फीति के मापन को अधिक सटीक और प्रतिनिधित्व बनाया जा सके।
पृष्ठभूमि:
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) भारत में खुदरा मुद्रास्फीति का प्रमुख मापदंड है और यह भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण ढांचे का नाममात्र एंकर (nominal anchor) के रूप में कार्य करता है।
वर्तमान उपभोक्ता मूल्य सूचकांक प्रणाली में:
· आवास (Housing) का भार शहरी क्षेत्रों में 21.67 प्रतिशत और संपूर्ण भारत स्तर पर 10.07 प्रतिशत है।
· अर्थशास्त्रियों ने लंबे समय से यह संकेत किया है कि यह दृष्टिकोण परिवारों द्वारा अनुभव की जाने वाली वास्तविक मुद्रास्फीति को कम दर्शाता है, विशेष रूप से महामारी के बाद किराए में वृद्धि और ग्रामीण आवास लागतों के बढ़ने के परिप्रेक्ष्य में।
नए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पद्धति की मुख्य विशेषताएँ:
आगामी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) बेस संशोधन (संभावित रूप से 2026 की शुरुआत में लागू होने वाला) के साथ, नया ढांचा ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में वास्तविक बाजार गतिशीलता को बेहतर तरीके से पकड़ने का प्रयास करेगा।
· अब किराए से संबंधित डेटा सभी चयनित आवासों से मासिक रूप से एकत्र किया जाएगा, जबकि पहले यह केवल एक-छठे नमूने के लिए हर छह महीने में लिया जाता था।
· यह विस्तार अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के तकनीकी परामर्श के अनुरूप है, ताकि किराए के अनुमान में “नीचे की ओर पक्षपात (downward bias)” से बचा जा सके।
ग्रामीण क्षेत्र के लिए, गृह उपभोग व्यय सर्वेक्षण (HCES) 2023–24 के डेटा का उपयोग किया जाएगा, जिसमें किराए पर रहने वाले और स्वामित्व वाले (owner-occupied) दोनों घरों का भुगतान किया गया किराया और काल्पनिक किराया (imputed rent) दर्ज किया गया है।
यह वर्तमान प्रणाली से एक बड़ा परिवर्तन है, जिसमें ग्रामीण आवास को शामिल नहीं किया गया था क्योंकि पुराने HCES 2011–12 में तुलनात्मक डेटा उपलब्ध नहीं था।
रियायती या नियोक्ता द्वारा प्रदान किए गए आवास को बाहर करके, नया सूचकांक उन विकृतियों को समाप्त करता है जो वेतनमान से जुड़े गैर-बाजार किरायों के कारण उत्पन्न होती थीं, न कि वास्तविक बाजार दरों के कारण।
यह सुधार भारत के CPI ढांचे को वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुरूप बनाता है और भारतीय रिज़र्व बैंक तथा नीति-निर्माताओं द्वारा मौद्रिक व राजकोषीय निर्णयों में प्रयुक्त मुद्रास्फीति संकेतकों की विश्वसनीयता को बढ़ाता है।
MoSPI ने इस प्रस्ताव पर 20 नवंबर 2025 तक जन प्रतिक्रिया (public feedback) आमंत्रित की है, जो पारदर्शिता और हितधारक परामर्श के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को पुनः पुष्टि करता है।
महत्त्व:
1. मुद्रास्फीति का अधिक सटीक मापन
आवास व्यय परिवारों के कुल खर्च का बड़ा हिस्सा होता है, और इसमें अशुद्धि से संपूर्ण CPI विकृत हो सकता है। ग्रामीण किराए को शामिल करने और गैर-बाजार आवासों को हटाने से परिवारों पर पड़ने वाले वास्तविक मुद्रास्फीति दबावों की अधिक सटीक झलक मिलेगी।
2. बेहतर नीतिगत निर्माण
सटीक CPI डेटा निम्नलिखित के लिए अत्यंत आवश्यक है:
o RBI की मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण नीति के तहत मौद्रिक नीति निर्धारण हेतु।
o सरकार की कल्याणकारी सूचकांक व्यवस्था, जैसे महंगाई भत्ता (Dearness Allowance) समायोजन के लिए।
o राजकोषीय नीतियों से संबंधित निर्णयों हेतु — जैसे सब्सिडी, सामाजिक आवास और गरीबी के आकलन।
3. सांख्यिकीय आधुनिकीकरण (Statistical Modernisation)
यह पहल भारत की CPI पद्धति को वैश्विक मानकों के करीब लाती है, जैसे- विकसित अर्थव्यवस्थाओं में शहरी और ग्रामीण दोनों आवास सूचकांकों को सम्मिलित कर हेडलाइन मुद्रास्फीति (headline inflation) की गणना की जाती है।
